9/11 के बाद के 20 वर्षों में दुनिया और भारत में क्या बदलाव आया?

By अभिनय आकाश | Sep 11, 2021

जलते हुए टॉवरों का नजारा और दहशत का वो खौफनाक मंजर जो आतंकवादी हमले के दो दशक बाद भी लोगों के जहन में जिंदा है। 11 सितंबर की वो स्याह तारीख को घटित इस घटना ने पुराने और नई धारा की जियो पॉलिटिक्स दोनों को ही प्रभावित किया। 1989 के दौर से ही भारत पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित और पोषित आतंकवाद के घात से घिरा हुआ है। हालांकि इस्लामिक टेरर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितनी गंभीरता से देखा गया, उतनी गंभीरता से लिया नहीं गया। जिस वक्त भारत आतंकवाद की समस्या से दो-चार हो रहा था उस दौर में ब्रिटेन और अमेरिका जैसी पश्चिमी महाशक्ति पाकिस्तान के साथ घनिष्ठता बढ़ाने में लगी थी। लेकिन 9/11 के हमले ने वैचारिक कट्टरता को उजागर किया। विडंबना ये है कि 9/11 के हमलों के बाद शुरू हुए आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी अभियान में उसका सहयोगी कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान ही बना रहा। 2011 में ओसामा बिन लादेन को अमेरिका सेना ने एबटाबाद में मारा और ये स्थान पाकिस्तानी सेना के अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी से कुछ दूरी पर है। इस घटना के दस साल बाद पाकिस्तानी अधिकारी  सार्वजनिक रूप से शिकायत करते दिखे कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उनके प्रधानमंत्री को फोन नहीं किया है। 

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9/11 के बाद के दो दशकों भारत-अमेरिका संबंधों में भारी बदलाव देखा गया है। जिसकी शुरुआती नींव पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद से ही पड़नी शुरू हो गई थी। जिसे 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा ने महत्वपूर्ण मोड़ दिया। 9/11 भारत और अमेरिका को करीब लाने में एक महत्वपूर्ण उत्प्रेरक के रूप में रहा। वर्ष 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका ने संयुक्त सत्र को संबोधित कर भारत और अमेरिका के बीच नए संबंधो की नींव रखी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी सुधार आया। 2008 में भारत और अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर डील ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को और भी मजबूत किया। 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने। इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को और मजबूती मिली। डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के खिलाफ शुरू से रवैया काफी ख़ास रहा है। 9/11 के तुरंत बाद भारत को दो घिनौने आतंकी हमलों का सामना करना पड़ा। 13 दिसंबर को संसद पर हमले के बाद 14 मई 2002 को कालूचक नरसंहार हुआ, जब भारतीय सैनिकों के परिवारों के 10 बच्चों और 8 महिलाओं सहित 31 लोगों को पाकिस्तानी आतंकवादी ने मार डाला। लेकिन भारत ने इतने गंभीर उकसावे के बावजूद वास्तव में पाकिस्तान पर कभी भी लागत नहीं थोपी। यहां तक ​​कि 2008 में 26/11 के जघन्य मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद भी, भारत ने "रणनीतिक संयम" का पालन किया। 

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प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयासों की वजह से भारत में आर्थिक बदलाव और दुनिया में भारत के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ 9/11 के बाद से भारत-अमेरिका संबंधों में तेजी आई। पिछले दो दशकों में चीन ने निर्णायक रूप से भारत से आगे निकलते देखा है। 2000 में दोनों देशों के लिए प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (निरंतर 2010 अमेरिकी डॉलर में) क्रमशः $ 1,768 और $ 827 था। 2019 तक चीन 8,242 डॉलर और भारत 2,152 डॉलर पर था। 9/11 के बाद के दो दशकों ने दुनिया को एकध्रुवीयता से हटते हुए देखा है, जिसमें चीन अमेरिका के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को चुनौती देने वाले नए ध्रुव के रूप में उभर रहा है। भारत ने भी आर्थिक उत्पादन में विनिर्माण के अपने हिस्से को बढ़ावा देने के लिए कई सुधार और नीतिगत बदलाव शुरू किए हैं। 9/11 के बाद के वर्षों में जियो पॉलिटिक्स और विश्व अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं। आने वाले दशकों में संभावित रूप से भारत वैश्विक मामलों में केंद्रीय स्थान ले सकता है, बशर्ते हम अतीत से सबक लें और आर्थिक उदारीकरण के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ें। उदारीकरण न केवल गरीबी उन्मूलन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, बल्कि यकीनन यह अब राष्ट्रीय सुरक्षा की प्रमुख रणनीति है।

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