तलाक पर इंसाफ अभी अधूरा है, क्या है तलाक ए हसन? जिसके खिलाफ SC पहुंचीं मुस्लिम महिलाएं

By अभिनय आकाश | Aug 03, 2022

मोदी सरकार ने सत्ता में दूसरी बार कदम रखते ही मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने का कदम उठाया। मोदी सरकार ने तीन तलाक पर पाबंदी के लिए 'मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019' को पारित किया। तीन तलाक के मुद्दे के खिलाफ एक  बड़ा अभियान चलाया गया और आखिरकार तीन तलाक को पूरी तरह से प्रतिबंधित भी कर दिया गया। जिसके बाद समझा गया कि मुस्लिम महिलाएं कम से कम इस अत्याचार से तो अब मुक्त हो जाएंगी। क्योंकि इस कानून में कोई व्यक्ति अगर तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे देता है। तो फिर उसकी जगह जेल में है। नए कानून में तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन इस कानून को अधूरा इंसाफ बताते हुए मुस्लिम महिलाएं अदालतों में पहुंच गई हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन का मसला पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तलाक-ए-हसन और किसी भी अन्य तरीके से तलाक की प्रक्रिया को खत्म करने की अपील की गई है। इस तरह के तलाक को गैरकानूनी और अवैध घोषित करने की मांग की गई है। 

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इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीकों का जिक्र है- 

तलाक़-ए-बिद्दत: इसमें शौहर, बीवी को एक ही बार में तीन बार बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है। तीन तलाक के बाद, शादी तुरंत टूट जाती है। इसी पर हाल ही में कानून बनाकर प्रतिबंध भी लगाया गया है, इसे ही ट्रिपल तलाक भी कहते हैं। इसमें पति किसी भी जगह, किसी भी समय फोन पर या लिख कर पत्नी को तलाक दे सकता है। इसके बाद शादी तुरंत खत्म हो जाती है। इसमें एक बार तीन दफा तलाक कहने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता है। इस प्रक्रिया में भी तलाकशुदा पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं। हालांकि उसके लिए हलाला की प्रक्रिया को अपनाया जाता है। 

तलाक-ए-एहसन: इसमें शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक धर्म न चल रहा हो. इसे तीन महीने में वापस भी लिया जा सकता है, जिसे 'इद्दत' कहा जाता है। इसमें तीन बार तलाक बोला जाना जरूरी नहीं है। इसमें एक बार तलाक कहने के बाद पति-पत्नी एक ही छत के नीचे 3 महीने तक रहते हैं। तीन महीने में अगर दोनों में सहमति बन जाती है तो तलाक नहीं होता है। इसे अन्य रूप में कहे तो पति चाहे तो तीन महीने के भीतर तलाक वापस ले सकता है। सहमति नहीं होने की स्थिति में महिला का तलाक हो जाता है। हालांकि पति-पत्नी चाहे तो दोबारा निकाह कर सकते हैं। लेकिन यहां भी पत्नी को हलाला जैसी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। 

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तलाक-ए-हसन मुस्लिम समुदाय से जुड़ी तलाक की एक प्रक्रिया है, जिसमें पति अपनी पत्नी को तीन महीने में तीन बार एक-एक कर तलाक बोलता है और उसके बाद तलाक मान लिया जाता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी पूरी तरह से लागू रहती है। लेकिन तीसरी बार तलाक कहते ही शादी तुरंत खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा निकाह कर सकते हैं। हालांकि पत्नी को हलाला से गुजरना पड़ता है। हलाला से आशय महिला को दूसरे शख्स से शादी के बाद उससे तलाक लेना पड़ता है। 

तलाक-ए-हसन की क्या है प्रक्रिया

जानकारी के मुताबिक तलाक-ए-हसन तब प्रयोग की जानी चाहिए जब बीवी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो। वहीं तीनों तलाक के ऐलान में प्रत्येक के बीच एक महीने का अंतराल होना चाहिए। इस तरह से दोनों के बीच परहेज की अवधि इन तीन लगातार तलाक के बीच की समय सीमा में होनी चाहिए। संयम, या ‘इद्दत’ 90 दिनों यानी तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए निर्धारित होता है। इस संयम की अवधि के दौरान, अगर शौहर या बीवी संबंध बनाते हैं या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है। इस प्रकार के तलाक को स्थापित करने का मजहबी मकसद तात्कालिक तलाक की बुराई को रोकना था। हालांकि लगातार इसके साइड इफेक्ट भी सामने आ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन पर लिया था संज्ञान

इससे पहले, जस्टिस ए एस बोपन्ना और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने तलाक-ए-हसन मामले पर याचिकाकर्ता बेनज़ीर हीना द्वारा प्रस्तावित प्रस्तावों पर ध्यान दिया था, जिसमें महिलाओं के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ असंवैधानिक और प्रतिगामी के रूप में प्रथा को खत्म करने की मांग की गई थी। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट में  तलाक-ए-हसन के खिलाफ एक और याचिका दायर की गई है।  मुंबई की रहने वाली नाजरीन निशा ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

खत्म हो तलाक ए हसन की प्रथा

तलाक-ए-हसन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत एक जनहित याचिका के रूप में एक नई रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें तलाक-ए-हसन सहित एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक के सभी रूपों को शून्य और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। मुंबई की रहने वाली नजरीन निशा ने एडवोकेट आशुतोष दुबे के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने केंद्र को तलाक के लिए लिंग-तटस्थ, धर्म-तटस्थ समान आधार और सभी के लिए तलाक की एक समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए भी प्रार्थना की है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसकी शादी मुस्लिम रीति-रिवाज से हुई थी और उसके माता-पिता को दहेज देने के लिए मजबूर किया जा रहा था और इसके लिए उसे प्रताड़ित किया जा रहा था। याचिकाकर्ता को अपर्याप्त दहेज के कारण पीड़ित किया गया था और जल्द ही पति के परिवार द्वारा प्रताड़ना बार-बार शारीरिक हमले में बदल गई। याचिकाकर्ता ने बताया कि वह बीमार पड़ गई और उसे टीवी का पता चला जिसके बाद उसके पति ने उसे उसके माता-पिता के पास छोड़ दिया और उसे वापस लाने से इनकार कर दिया और बिना किसी कारण के उसे चरित्रहीन और वेश्या कहकर उसके चरित्र पर हमला किया। याचिकाकर्ता के पति ने उसे टेक्सट मैसेज के माध्यम से तलाक-ए-हसन दिया और कहा कि वह उसके लिए अनुपयुक्त है और उसे किसी भी मामले में उसकी जरूरत नहीं है। -अभिनय आकाश


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