लंदन वाला असली है या फिर सतारा वाला? जिस 'बाघ नख' से शिवाजी ने अफजल को मारा, क्या है इसकी पूरी कहानी

By अभिनय आकाश | Jul 13, 2024

महान सेनानी वीर शिवाजी का बाघ नख जल्द ही भारत वापस आने वाला है। वो बाघ नख जिसे पहनकर वीर शिवाजी महाराज ने क्रूर अफजल खान को मौत के घात उतारा था। लेकिन लेकिन हिंदुस्तान आने से पहले ही महाराष्ट्र में उसी बाघ नख पर सियासत तेज हो गई है। महाराष्ट्र सरकार लंदन से बाघ नख वापस ला रही है। लेकिन कुछ इतिहासकार इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि असली वाला बाघ नख तो  सतारा जिले में पहले से मौजूद है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर शिवाजी महाराज का असली बाघ नख है कहां? लंदन वाला असली है या फिर सतारा वाला। असली बाघ नख की पूरी कहानी क्या है, आइए जानते हैं। 

क्या असली बाघ नख सतारा में है? 

इतिहासकार इंद्रजीत सावंत ने दावा किया है कि लंदन में जो बाघ नख है वो शिवाजी का नहीं है। बाघ नख मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में था। इतिहासकार इंद्रजीत सावंत ने ये भी दावा किया कि अफजल खान को मारने के लिए इस्तेमाल किया गया बघनखा सतारा में ही मौजूद है।  उन्होंने यह भी दावा किया था कि ‘वाघ नख’ को तीन साल के लिए 30 करोड़ रुपये के ऋण समझौते पर राज्य में लाया जा रहा है। ऐसे में सवाल है कि लंदन से वापस आ रहा बाघ नख किसका है। अगर ये शिवाजी का बाघ नख नहीं है तो फिर लंदन से इसे लाने की जरूरत क्यों है? 

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शिंदे सरकार ने क्या कहा

शिवाजी के बाघ नख को लेकर हो रहे विवाद के बाद महाराष्ट्र की शिंदे सरकार की ओर से विधानसभा में सफाई दी गई। संस्कृती मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने दावा किया कि हमें शिवाजी महाराज के अनुयायियों द्वारा फोटो के साक्ष्य किए गए थे। लंदन संग्रहालय में बाघ नख रखा गया था उस बॉक्स में उसका उल्लेख था कि इसका इस्तेमाल बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मारने के लिए किया गया था। उन्होंने कहा कि यात्रा खर्च और समझौते पर हस्ताक्षर करने में 14.08 लाख रुपये का खर्च आया। मुनगंटीवार ने सदन को बताया कि ‘वाघ नख’ को तीन साल के लिए लंदन से लाया जायेगा और 19 जुलाई से राज्य के सातारा स्थित एक संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा जायेगा। उन्होंने कहा कि लंदन स्थित संग्रहालय ने शुरू में एक वर्ष के लिए हथियार देने पर सहमति जताई थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसे तीन वर्ष के लिए राज्य में प्रदर्शन के वास्ते सौंपने के लिए राजी कर लिया।

बीजापुर की गद्दी और शिवाजी

साल 1645में औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच दुश्मनी परवान चढ़ रही थी। औरंगजेब को दक्षिण की सबेदारी से बेदखल कर दिया गया। इसी साल शिवाजी ने बीजापुर की गद्दी पर अपनी पकड़ बनानी शुरू की। उनके पिता शाहजी भोंसले पूणा की जागीर संभालते थे, लेकिन बीजापुर की रिसायत के तले रहकर। शिवाजी को ये मंजूर नहीं था। लेकिन उनके सामने एक बड़ा सवाल था कि छोटी सी जागीर का वारिस बीजापुर रियासत का सामना कैसे करता। परिस्थिति ने उन्हें एक मौका दिया। मुगल दक्कन में अपना कद मजबूत करने की फिराक में था। बीजापुर उसे रोकने में था। आदिलशाही का सारा ध्यान औरंगजेब को रोकने में था। शिवाजी को मौका मिला और उन्होंने एक एक बीजापुर के किलों को हथियाना शुरू किया। सबसे पहला किला तोड़ना था। फिरंगोजी के पास चाकन के किले का जिम्मा था। उन्होंने शिवाजी के प्रति वफादारी की शपथ लेते हुए उनके मिलिट्री कमांडर बने। इसके बाद शिवाजी ने कोंडना का किला भी हथिया लिया। बीजापपुर तक इसकी खबर पहुंची तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को बंदी बना लिया। ये दांव सफल रहा क्योंकि मजबूरन शिवाजी को अपनी कार्रवाई रोकनी पड़ी। 1649 में शाहजी की रिहाई हुई तो शिवाजी दोबारा अपने अभियान में लग गए। 1656 में मोहम्मद आदिरशाह की मौत होने पर बीजापुर का नया सुल्तान अली आदिल शाह को बनाया गया। जिसकी उम्र महज 18 साल की थी। 1659 तक शिवाजी और बीजापुर की सल्तनत के बीच तनातनी में कुछ कमी आई। तब आदिल शाह की मां ने शिवाजी पर नकेल कसने की सलाह दी। 

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धोखा देकर शिवाजी को मारने वाला था अफज़ल

अफजल खान बीजापुर के सबसे ताकतवर कमांडर में से एक थे। 7 फुट का विशालकाय अफजल खान अब तक एक भी जंग नहीं हारा था। भोंसले परिवार के साथ उसकी पुरानी अदावत थी। शिवाजी के बड़े भाई संबाजी की मौत में बड़ा रोल था। बीजापुर के बुलावे पर वो दक्कन से लौटकर वो शिवाजी से जंग लड़ने पहुंचा। उसके पास 20 हजार घुड़सवार, 15 हजार पैदल सैनिक, 100 तोपें और कई हाथी थे। शिवाजी का सामना अब तक इतनी बड़ी सेना से नहीं हुआ था। उन्हें इल्म था कि सीधी लड़ाई में हार की संभावना ज्यादा है। शिवाजी सेना सहित प्रतापगढ़ के किले में घुस गए। शिवाजी को उकसाने के लिए अफजल खान ने मंदिरों और आसपास के गांवों पर हमला किया। फिर अफजल खान ने संधि के लिए संदेशा भेजा। वादा किया कि संधि होने पर बीजापुर को उनके हिस्से का इलाका देने की बात भी कही। शिवाजी ने मुलाकात की पेशकश स्वीकार कर ली। प्रतापगढ़ किले के नीचे मिलने और फौज लेकर कोई नहीं आने की बात तय हुई। लेकिन अफजल ने गांव के आसपास अपनी सेना को तैनात कर दिया। शिवाजी ने भी अपनी सेना से तैयार रहने को कहा। 

बाघ के नाखून से बने हथियार से चीरा था पेट

शिवाजी और अफजल दोनों को एक दूसरे पर भरोसा नहीं था। लेकिन अपनी कद काठी की वजह से अफजल खान को ओवरकॉन्फिडेंस था कि वो सीधी लड़ाई में शिवाजी को परास्त कर देगा। शिवाजी ने कपड़ों के अंदर कवच पहन रखा था और ऊंगलियों में बाघ नख छिपाया हुआ था। अफजल एक पालकी में बैठकर शिवाजी से मिलने पहुंचा। 10 नवंबर 1659 के दिन अफजल ने शिवाजी से आदिलशाही की सरपरस्ती स्वीकार करने की बात कहते हुए उन्हें गले लगाया चाहा। गले लगते ही एक खंजर से शिवाजी की पीठ पर हमला किया। कवच की वजह से शिवाजी खंजर की चोट से बच गए। उन्होंने अपना बाघ नख निकाला और अफजल के पेट पर वार कर दिया। शामियाने से भागे अफजल खान को शिवाजी महाराज ने दौड़ कर पकड़ा और युद्ध क्षेत्र में उसका वध किया।  शिवाजी महाराज उसका सिर मां जीजाबाई के पास ले गए। 

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