जब भिंडरावाले को बाला साहेब ने दी चुनौती, किसमें इतनी हिम्मत कि शेर की मांद में आकर उसके दांत गिन सके, और फिर...

By अभिनय आकाश | Apr 29, 2022

पंजाब के पटियाला में आज जुलूस निकालने को लेकर दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प देखने को मिली। मामला इतना बढ़ गया कि दोनों ओर से पत्थरबाजी और तलावरें चलने लगीं। दरअसल, खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पुन्नू की ओर से खालिस्तान स्थापना दिवस मनाने का ऐलान किया गया था। पुन्नू ने हरियाणा के डीसी दफ्तरों पर झंडे फहराने का ऐलान किया था। जिसके जवाब में शिवसेना (बाल ठाकरे) नाम के संगठन ने इसके खिलाफ पटियाला में खालिस्तानी मुर्दाबाद मार्च निकालने का ऐलान किया था। देखते ही देखते मामला हिंसक हो गया और दोनों गुटों में जमकर झड़पें हुई। फिलहाल सुरक्षाबलों की मुस्तैदी से स्थिति पूरी तरह कंट्रोल में है। शाम को दोनों पक्षों के साथ शांति मीटिंग की जाएगी। बात खालिस्तान की हो रही है और साथ ही शिवसेना के साथ उसके टकराव की भी तो ऐसे में आज आपको ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसका जिक्र बहुत कम ही जगहों पर मिलता है।

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ये एक ऐसा टकराव था जो अगर होता तो इसकी गूंज पूरे देश को हिला कर रख देती। ये टकराव दो विचारधाराओं का टकराव था। बाला साहब ठाकरे और जरनैल सिंह भिंडरावाले के बीच का ये टकराव था। पंजाब में भिंडरावाले ने एक चरमपंथी कट्टरपंथी संत के रूप में पहचान बनाई थी। अपनी विचारधारा की वजह से भिंडरावाला की चर्चा देश-दुनिया के कई हिस्सों में होने लगी। भिंडरावाले का मानना था कि लक्ष्य को पाने के लिए हिंसा का रास्ता भी गलत नहीं है। वहीं दूसरी तरफ बाला साहेब ठाकरे दुस्साहसी, बेधड़क और ताकतवर नेता जिनके लिए शिवसैनिक हमेशा खून देने और कहीं भी, कभी भी हिंसा करने के लिए तैयार रहते थे और यही शिवसेना के लिए बड़ी ताकत बन गई। लेकिन आखिर इन दो विचारधारा वाले लोगों का टकराव आखिर कब और क्यों हुआ?

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बात मार्च 1982 की है जब शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने इंदिरा गांधी का समर्थन करते हुए जरनैल सिंह भिंडरावाले  को चुनौती दी थी कि इतना दम है तो बम्बई आकर दिखाओ। तब पता लगेगा असली योद्धा कौन? किसमें इतनी हिम्मत कि शेर की मांद में आकर उसके दांत गिन सके। कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जरनैल सिंह भिंडरावाले ने बाला साहब ठाकरे की चुनौती स्वीकारी भी और बंबई पहुंच गए। कहा जाता है कि भिंडरावाले के कारवां में कई ट्रक थे, हर ट्रक पर राइफल के साथ 4-5 युवा सिख थे। ये कारवां 5000 से अधिक लोगों का था। बंबई में प्रवेश करते ही गुरुद्वारा सिंह सभा ने उनका स्वागत किया ।   

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भिंडरावाले सीधा दादर स्थित गुरुद्वारा पहुंचे और कहा कि मैं बंबई आ गया और अब कल बंबई की सड़कों पर अकेला घूमूंगा। लेकिन मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि भिंडरावाला जितने दिन भी बंबई में रहे बाला साहब ठाकरे चुप चाप बैठे रहे। वहीं पूरे मामले को लेकर कहा जाता है कि उस वक्त बाला साहब ठाकरे ने समझदारी दिखाई। अगर दोनों का आमना सामना होता तो हिंसा का तांडव ही देखने को मिलता। हालांकि भले ही कई अपुष्ट माध्यम से मीडिया रिपोर्ट में ऐसी बात कही गई  है लेकिन कई लोग ऐसे किसी भी तरह के टकराव की घटना को गलत और मनगढ़ंत बताते हैं। 

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