जब हिन्दुओं के खून से लाल हुआ था कलकत्ता, बीफ की दुकानों पर महिलाओं की नग्न लाशें हुक से रखी गई थीं लटका कर

By अभिनय आकाश | Aug 16, 2022

डायरेक्ट एक्शन डे, जिसे 1946 की ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। साल 1946, देश आजादी पाने के लिए बैचेन था। द्वीतीय विश्व युद्ध की आग पूरी तरह बुझी नहीं थी। ब्रिटेन की सरकार ये फैसला ले चुकी थी कि अंग्रेज ये देश छोड़कर चले जाएंगे। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अपने स्वार्थ के लिए एक धड़े ने भारत को बांटने का दावा पेश कर दिया था। उनकी मांग थी पश्चिम के पेशावर से लेकर पंजाब के अमृतसर और कोलकाता समेत एक अलग राष्ट्र जो सिर्फ मुसलमानो के लिए बनेगा और जिसका नाम होगा पाकिस्तान। 

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 डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक देश, एक विधान, एक निशान और एक संविधान का नारा पूरे देश में गूंज रहा था। लेकिन मुस्लिम लीग की डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा ने पूरे देश को आग से खेलने पर मजबूर कर दिया था। जिन्ना ने कहा कि अगर समय पर बंगाल का सही फैसला नहीं मिला तो...हमें अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी। भारत से हमें कोई लेना-देना नहीं। हमें तो पाकिस्तान चाहिए, स्वाधीन पाकिस्तान चाहे भारत को स्वाधीनता मिले या न मिले। गोली और बम की आवाज से कांप उठी थी भारत मां की धरती। पूर्वी बंगाल का नोआखाली जिला। मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक कत्लेआम हुआ था। कलकत्ता में 72 घंटों के भीतर 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे। 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है। 

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पत्रकार अभिजीत मजूमदार ने इसका वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ में ज़िंदा बच गए रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों के सामने मुस्लिम भीड़ की क्रूरता को देखा था। उनकी उम्र 92 साल है। इस हिसाब से उस समय वो युवावस्था में थे और उनकी उम्र 24 साल के आसपास रही होगी। उन्होंने बताया है कि कैसे राजा बाजार के बीफ की दुकानों पर हिन्दू महिलाओं की नग्न लाशें हुक से लटका कर रखी गई थीं। उन्होंने बताया कि विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने वाली कई हिन्दू छात्राओं का बलात्कार किया गया, उनकी हत्याएँ हुईं और उनकी लाशों को हॉस्टल की खिड़कियों से लटका दिया गया। रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों से हिन्दुओं की क्षत-विक्षत लाशें देखी हैं। जमीन पर खून की धार थी, जो उनके पाँव के नीचे से भी बह कर जा रही थी। इनमें से कई महिलाएँ भी थीं, जिनकी लाशों से उनके स्तन गायब थे। उनके प्राइवेट पार्ट्स पर काले रंग के निशान थे। 

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मौतों का आँकड़ा

16 अगस्त से शुरू हुआ नरसंहार 20 अगस्त तक चलता रहा। उसके बाद भी हिंसा की घटनाएँ होती रहीं। कलकत्ता छोड़ने को मजबूर हुए हिन्दुओं का पलायन शुरू हो गया। लेकिन सवाल यह है कि मुस्लिम लीग के इस नरसंहार में कितने हिन्दू मौत के घाट उतार दिए गए? कलकत्ता में ही 72 घंटों के भीतर लगभग 6,000 हिन्दू मार दिए गए। मजहबी दंगाइयों के शिकार हुए लगभग 20,000 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए और लगभग 100,000 लोगों को अपना सबकुछ छोड़कर जाना पड़ा।