जब इंदिरा गांधी ने लिखा था देश का काला अध्याय

By रेनू तिवारी | Jun 25, 2018

25 जून 1975 

 

रायसीना हिल्स, 

 

किसे पता था इस दिन रायसीना हिल्स से जब इंदिरा गांधी का काफिला गुजरेगा, तो हिंदुस्तान के इतिहास में ये तारिफ  ‘काला’ दिन कहलाएंगी। 

 

इस काले दिन ने पूरे दुनियां में हिंदुस्तान की पहचान एक नये नाम से करवाई जिसका नाम था ‘Emergency'।

 

उठते हैं तूफान, बवंडर उठते हैं,

जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है

दो राह, समय के रथ का घारर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

 

25 जून 1975 की शाम ढलते-ढलते, जब दिल्ली के रामलीला मैदन में जय प्रकाश नारायण की जुबान से राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये कविता फूटी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पद पर बैठी इंदिरा गांधी को अपनी गद्दी हिलती दिखी। 

 

इंदिरा डरी हुई थी और सत्ता जाने के डर में उन्होनें वो कदम उठाया जो आजादी के बाद का सबसे काला दिन साबित हुआ। वो भूल गई थी 28 साल पहले उनके पिता जवाहर लाल नेहरु ने आजाद भारत के लोकतंत्र का नियती से मिलन करवाया था। लेकिन इंदिरा सब भूल कर अपनी गद्दी बचाने के लिए उन्होंने देश में ‘आंतरिक आपतकाल’ लागू कर दिया था।

 

रामलीला मैदान से जय प्रकाश नारायण ने चलाए शब्दों के बाण, हिल गई इंदिरा सरकार

जिस रात आपातकाल की घोषणा हुई, उस रात से पहले रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में एक विशाल रैली हुई। इस रैली से ही जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हिला दी थी सत्ता और सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। 

 

आधी रात को हुई थी काले दिन की घोषणा 

25 और 26 जून की रात आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना, "भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।

 

आपातकाल के दौरान हुई घटनाएं

रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली की खबर देश में न पहुंचे इसलिए, दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई। रात को ही इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन के कमरे में बैठ कर संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था।

 

निरंकुश इंदिरा के आपात का मतलब

आपातकाल का दौर वो दौर था जब सरकार ने आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की। संविधान की धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देती है। इसके अनुसार इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं। लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी। मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे। सरकार कोई भी कानून पास करा सकती थी।

 

सभी विपक्षी नेताओं को जेल में किया बंद

देश के जितने भी बड़े नेता थे, सभी के सभी जेल में बंद कर दिया गया था। बड़े नेताओं के साथ जेल में युवा नेताओं को बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका मिला। लालू-नीतीश और सुशील मोदी जैसे बिहार के नेताओं ने इसी पाठशाला में अपनी सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पढ़ाई की।

 

मीसा कानून का मचा कहर

इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ बोलने वाले सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को दमनकारी कानून मीसा और डीआईआर के तहत देश में एक लाख ग्यारह हजार लोग जेल में ठूंस दिया गया। खुद जेपी की किडनी कैद के दौरान खराब हो गई। कर्नाटक की मशहूर अभिनेत्री डॉ. स्नेहलता रेड्डी जेल से बीमार होकर निकलीं, बाद में उनकी मौत हो गई। उस काले दौर में जेल-यातनाओं की दहला देने वाली कहानियां भरी पड़ी हैं।

 

बॉलीवुड पर भी चला सरकारी डंडा

इंदिरा के अत्याचार केवल नेताओं तक सीमित नहीं थे भारतीय सिनेमा पर भी सरकारी डंड़ा चला जिन लेखक-कवि ने जनता को जगाने की कोशिश की सब पर लाठियां बरसाई गई। और फिल्म कलाकारों तक को नहीं छोड़ा गया। कहते हैं मीडिया, कवियों और कलाकारों का मुंह बंद करने के लिए ही नहीं बल्कि इनसे सरकार की प्रशंसा कराने के लिए भी विद्या चरण शुक्ला सूचना प्रसारण मंत्री बनाए गए थे। उन्होंने फिल्मकारों को सरकार की प्रशंसा में गीत लिखने-गाने पर मजबूर किया, ज्यादातर लोग झुक गए, लेकिन किशोर कुमार ने आदेश नहीं माना। उनके गाने रेडियो पर बजने बंद हो गए-उनके घर पर आयकर के छापे पड़े। अमृत नाहटा की फिल्म 'किस्सी कुर्सी का' को सरकार विरोधी मान कर उसके सारे प्रिंट जला दिए गए। गुलजार की आंधी पर भी पाबंदी लगाई गई।

 

नसबंदी अभियान

आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे, नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। पीएम इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाया गया। 


1977 में जनता ने इंदिरा गांधी धूल चटा दी

जनता ने सिखाया सबक इमरजेंसी के दौरान सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में आतंक का माहौल पैदा कर दिया था, जिसका सबक जनता ने 1977 में एकजुट होकर न केवल कांग्रेस बल्कि इंदिरा गांधी को भी धूल चटा दी, 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी दोनों हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।

 

- रेनू तिवारी

प्रमुख खबरें

Mehbooba Mufti को मत मांगने के लिए बच्ची का इस्तेमाल करने पर कारण बताओ नोटिस जारी

BSF के जवान ने अज्ञात कारणों के चलते BSF चौकी परिसर में फाँसी लगाकर की आत्महत्या

SP ने आतंकवादियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की कोशिश की, राम का अपमान किया: Adityanath

तापीय बिजली संयंत्रों के पास मानक के मुकाबले 68 प्रतिशत कोयले का भंडार: सरकारी आंकड़ा