जो छू लूं तुझे पूरा बदन पिघल पड़ता है (ग़ज़ल)

By डॉ. शेखावत "निकुंज" | Mar 05, 2018

हिंदी काव्य संगम मंच से जुड़े लेखक डॉ. शेखावत निकुंज द्वारा स्वरचित ग़ज़ल 'जो छू लूं तुझे पूरा बदन पिघल पड़ता है' पढ़कर आप भी किसी के प्रेम में खो जाएंगे।

मेरा दिल कहाँ खुद मुझसे सम्भल पड़ता है,

इसकी आदत है तेरे भरोसे निकल पड़ता है

 

मोम सा है जिस्म आफ़ताब सा इश्क़ तेरा,

जो छू लूं तुझे पूरा बदन पिघल पड़ता है।

 

इन अश्कों से कहिये ज़रा सलीक़े से निकलें,

ज़रा सी आहट हो ख्यालों में ख़लल पड़ता है।

 

बेसुध सा रहता है आज कल दिल इस कदर,

कोई हाथ जो थामे तेरा नाम उगल पड़ता है।

 

कहने को अंधियारा है इश्क़ की गलियों में,

लूं मगर नाम तेरा उजियारा निकल पड़ता है।

 

कभी उठता है कभी गिरता है पाने को तुझे,

सीने में कैद करूं नज़रों से फ़िसल पड़ता है।

 

ये ज़हनी सुकून है कि तेरा तस्सवुर काफ़ी है,

तू धड़कनों में बहे ये दिल का उसूल पड़ता है

 

डॉ. शेखावत "निकुंज"

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