मुक्कमल सी ज़िंदगी कुछ कम क्यूँ है?

By गुलज़ारियत | Mar 10, 2018

मुंबई के शायर समूह गुलज़ारियत की ओर से लिखी गयी यह नज़्म पाठकों को पसंद आयेगी। इसमें बड़े ही अलग अंदाज में जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली गयी है।

कुछ सवाल!

 

मुक्कमल सी ज़िंदगी कुछ कम क्यूँ है।

महफ़िल में वो आँख नम क्यूँ है।


मुस्तकबिल खड़ा है जब यूँ हाथ खोले

माज़ी से ख़फ़ा इस कदर हम क्यूँ है।


दर्द के हमदर्द बने फिरते थे जो कल तक

इन  नासूर ज़ख़्मों पर आज मरहम क्यूँ है।


सबके हिस्से की दुआएँ माँगी थी जिसने,

आज उसी की झोली गम क्यूँ है।


जिस मरासिम ने अब तक बाँधी है ये डोर

उसके वजूद पर तुझे भरम क्यूँ है।


वाइज़ की बातों में आया था ना तू  कभी

फिर आज इस प्याले में शराब कम क्यूँ है।


नफरत, जिल्लत, रंजिश सब है मगर फिर भी

मुझ में तुम क्यूँ हो तुझ में हम क्यूँ है।

 

- गुलज़ारियत

प्रमुख खबरें

Porn Star से जुड़े मामले में Trump की पूर्व करीबी सलाहकार होप हिक्स बनीं गवाह

कनाडाई पुलिस ने Nijjar की हत्या के तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया: मीडिया की खबर

लगातार कम स्कोर वाली पारियों के दौरान सही लोगों के बीच में रहने की कोशिश कर रहा था: Jaiswal

Dhoni मेरे क्रिकेट करियर में पिता जैसी भूमिका निभा रहे हैं, उनकी सलाह से लाभ मिलता है: Pathirana