जब रूस की सारी शर्तें माननी थीं तो यूक्रेन को युद्ध में क्यों झोंका? जानिए जेलेंस्की से कहां हुई गलती

By टीम प्रभासाक्षी | Mar 11, 2022

रशिया और यूक्रेन के बीच चल रहे भीषण युद्ध के बीच अब राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने नाटो में शामिल होने की जिद छोड़ दी है और धीरे धीरे अब रूस की शर्तों को मानने के लिए तैयार हो रहे हैं। रूस ने यूक्रेन से युद्ध विराम के लिए जो 4 शर्ते रखी थीं उन पर यूक्रेन के राष्ट्रपति बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं।


नाटो रूस से टकराव नहीं चाहता

जेलेंस्की का कहना है कि वह इस बात को समझ चुके हैं कि नाटो रूस के साथ टकराव से डरता है और इसलिए वह यूक्रेन को अपना सदस्य नहीं बना सकता। इसलिए अब हमने तय किया है कि हम नाटो को ज्वाइन करने के लिए भीख नहीं मांगेंगे। युद्धविराम के लिए पुतिन की पहली शर्त भी यही थी जिस पर यूक्रेनी राष्ट्रपति ने सहमति दे दी है।


दोनेस्तक और लुहांस्क को आजाद देश के रूप में मान्यता

रूस की दूसरी शर्त यह थी कि पूर्वी यूक्रेन के दोनेस्तक और लुहांस्क क्षेत्र को आजाद देश के रूप में मान्यता दें और जेलेंस्की इस बात पर भी बातचीत के लिए तैयार हैं।


यूक्रेन क्रीमिया पर छोड़े दावा

रूस की तीसरी शर्त थी कि यूक्रेन क्रीमिया के नियंत्रण को सैद्धांतिक मंजूरी दे और यह स्वीकार करे कि वह क्रीमिया पर अपना दावा नहीं करेगा। जेलेंस्की ने पुतिन की इस मांग पर बातचीत करने की सहमति जताई है।


सरेंडर को तैयार यूक्रेनी राष्ट्रपति

रूस की चौथी मांग थी कि  जेलेंस्की की अपनी सेना को सरेंडर करने के लिए कहें वह इसके लिए भी तैयार हो गए हैं। उन्होंने कहा है कि वह इस संघर्ष को शांति से और बातचीत से सुलझाना चाहते हैं।


युद्ध रोकने पर विचार कर सकते हैं रूसी राष्ट्रपति

रूस की ओर से भी ऐसे संकेत मिले हैं कि वह युद्ध विराम लागू करने पर विचार कर सकता है। रूस ने इस बात को स्पष्ट किया है कि उसका मकसद यूक्रेन की मौजूदा सरकार या राष्ट्रपति को सत्ता से बेदखल करना नहीं है और रूस यूक्रेन को एक आजाद देश मानता है।

 

अब इन सबके  बाद जो एक सवाल मन में उठता है वह यह कि जब जेलेंस्की को रूस की सारी शर्तें माननी थीं तो उन्होंने अपने देश को युद्ध की आग में क्यों झोंक दिया? क्योंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने नाटो को लेकर अब जो रुख अपनाया है, वह अगर पहले यही बात सोचते तो शायद युद्ध नहीं होता और यूक्रेन के हजारों नागरिकों और सैनिकों की जान बच जाती।


पश्चिम ने दिया यूक्रेन को धोखा

जेलेंस्की ने पश्चिमी देशों पर जरूरत से ज्यादा यकीन कर लिया और यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई। रूस के साथ लड़ते हुए यूक्रेन को 15 दिन हो चुके हैं और इन 15 दिनों में यूक्रेन ने अमेरिका और नाटो से जो भी मदद मांगी, उसे केवल इंकार ही किया गया।


नाटो ने भी नहीं दिया साथ

यूक्रेन के राष्ट्रपति की नेतृत्व क्षमता और उनकी कार्यशैली पर भी सवाल हैं। यूक्रेन की राष्ट्रपति को लग रहा था कि अगर रूस यूक्रेन की तरफ आंख उठाकर देखेगा तो अमेरिका और पश्चिम के देश अपनी सेना के साथ यूक्रेन पहुंच जाएंगे और उनके देश की रक्षा करेंगे। लेकिन इन देशों ने ऐसा कुछ नहीं किया। जिस नाटो पर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने यकीन करके रूस के साथ युद्ध का जोखिम उठाया, उसी ने यह कह दिया कि वह ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे रूस को यह लगे कि नाटो युद्ध में शामिल है।


तजुर्बा न होना जेलेंस्की की गलती

जेलेंस्की  ने अपने फैसले लेने में कई सारी गलतियां की और शायद इसका एक बड़ा कारण है कि उनके पास वैश्विक राजनीति और कूटनीति का कोई लंबा तजुर्बा नहीं है। अगर उनके पास तजुर्बा होता तो शायद वो यूक्रेन के इतिहास से सीख लेते और नाटो पर कभी भरोसा नहीं करते। क्योंकि नाटो के इन्हीं देशों ने बुडापेस्ट मेमोरेंडम के दौरान यूक्रेन के परमाणु हथियार नष्ट करा दिए थे और फिर इसके समझौते की शर्तों का पालन नहीं किया था। शर्त यह थी कि भविष्य में कभी यूक्रेन पर हमला हुआ तो अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश यूक्रेन की रक्षा करेंगे।

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