ममता बनर्जी तो हमेशा अपनों का साथ देती हैं, इस बार पार्थ चटर्जी को अकेला क्यों छोड़ा?

By अंकित सिंह | Jul 30, 2022

देश दुनिया के विभिन्न मुद्दों पर प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में हर सप्ताह चर्चा होती है। इस बार के चाय पर समीक्षा कार्यक्रम में भी हमने पश्चिम बंगाल में बर्खास्त मंत्री पार्थ चटर्जी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई और कर्नाटक में भाजपा के युवा नेता की हत्या पर चर्चा की। हमेशा की तरह इस कार्यक्रम में मौजूद रहे प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे। नीरज कुमार दुबे से हमने पहला सवाल पश्चिम बंगाल को लेकर ही किया। हमने नीरज दुबे से पूछा कि क्या पश्चिम बंगाल में जिस तरीके से पार्थ चटर्जी की करीबी कि यहां से 55 करोड़ से ज्यादा की कैश बरामद हुए हैं, उससे ममता बनर्जी बैकफुट पर है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जो बंगाल से दृश्य आ रहे हैं, वहां के लोगों को ही नहीं, बल्कि यह पूरे देश के लोगों को भी हिला देने वाले दृश्य हैं। कैसे एक मंत्री के करीबी के यहां से नोटों का पहाड़ बरामद हो रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों के मन में यह सवाल जरूर हो रहे होंगे कि अगर एक मंत्री के पास इतना सारा पैसा है तो अन्य मंत्री जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, उनके पास कितने पैसे होंगे।


इसके साथ ही नीरज दुबे ने यह भी सवाल कर दिया कि पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी के पास क्या इतने ही पैसे थे? उन्होंने दावा किया कि ईडी के सूत्र जो बता रहे हैं उसके मुताबिक अभी और भी बड़े खुलासे होने बाकी हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा है और राजनीति में भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें कितनी मजबूत कर रखी है, उसका यह जीता जागता उदाहरण है। उन्होंने कहा कि पार्थ चटर्जी पश्चिम बंगाल में नंबर दो के मंत्री थे। तृणमूल कांग्रेस में भी उनकी हैसियत बड़ी थी। अगर बड़े मंत्री इस तरह के काम करते हैं तो सोचिए नीचे के लोग क्या करते होंगे। उन्होंने कहा कि जो पश्चिम बंगाल की सरकार पर कट मनी के आरोप लगते हैंस उसमें अब कहीं ना कहीं सच्चाई दिखने लगी है। उन्होंने कहा कि अगर नोटों के पहाड़ ऐसे ही मिलते जाए तो यह सवाल तो उठेगा ही ना कि इतना पैसा आया कहां से?

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इसके साथ ही उन्होंने ममता बनर्जी को लेकर भी चर्चा की। नीरज दुबे ने इस बात को स्वीकार किया कि इस पूरे घटनाक्रम की वजह से ममता बनर्जी बैकफुट पर आई हैं। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी एक फाइटर लेडी हैं और वह अपने हकों के लिए लड़ती हैं, अपने विधायकों और नेताओं के साथ वह खड़ी रहती हैं। 2014 से वह लगातार केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आक्रमक रही हैं। उन्होंने कहा कि उनकी छवि भी काफी साफ है। वह अपनी बात स्पष्टता के साथ रखती हैं। उन्होंने दावा किया कि यह पहला मौका है जब ममता बनर्जी 2014 के बाद दबाव में दिखाई दे रही हैं। अब तक जांच एजेंसियों की ओर से पश्चिम बंगाल में जितनी भी कार्रवाई की जा रही थी, ममता बनर्जी उसका खुलकर विरोध कर रही थीं। लेकिन पार्थ चटर्जी का मामला ऐसा पहला मामला है जहां पर ममता बनर्जी ने चुप्पी साध रखी है। ममता बनर्जी ने अब तक जांच एजेंसियों के खिलाफ कोई सवाल खड़े नहीं किए हैं। इससे जाहिर होता है कि ममता बनर्जी को भी इस बात का अंदेशा हो रहा होगा कि कहीं ना कहीं पार्थ चटर्जी ने कुछ गलत किया होगा। खबर तो यह भी आई कि पार्थ चटर्जी ने जब ममता बनर्जी को फोन पर संपर्क करने की कोशिश की तो उधर से कोई जवाब नहीं मिला।


नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा है कि ममता बनर्जी अपने लोगों के साथ, अपने पार्टी के लोगों के साथ हमेशा खड़ी रही हैं। लेकिन इस बार ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। छवि को साफ रखने की कोशिश में ही ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी को मंत्रालय से बर्खास्त किया। इसका एक कारण और भी है कि तृणमूल कांग्रेस के भीतर से भी पार्थ चटर्जी को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी थी। कहीं ना कहीं ममता बनर्जी पार्टी में किसी भी प्रकार के मतभेद नहीं रखना चाहती थीं। नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि बड़ा परिवर्तन यह दिखाई दे रहा है कि इस बार ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस ने यह आरोप नहीं लगाया है कि राजनीतिक द्वेष की वजह से पार्थ चटर्जी के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। बल्कि ममता बनर्जी की ओर से तो यह तक कह दिया क्या कि हम भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर नंबर दो पर सवाल उठ रहे हैं तो नंबर एक पर भी सवाल उठ सकते हैं। यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस और खुद ममता बनर्जी पूरे मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।

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कर्नाटक का मुद्दा

हमने अपने इस कार्यक्रम में कर्नाटक में भाजपा के युवा नेता की हत्या के बाद से उत्पन्न हुई परिस्थितियों पर भी चर्चा की। हमने सवाल पूछा कि क्या बीएस येदियुरप्पा की जगह जो बसवराज बोम्मई को लाया गया था, वह काम नहीं कर पा रहा है। इसके जवाब में नीरज दुबे ने कहा कि देखिए एक साल में देखें तो कहीं ना कहीं बसवराज बोम्मई ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसकी चर्चा हो। उन्होंने कहा कि ऐसे में चुनाव में जाने के लिए अगर कोई हमारे पास मुद्दे नहीं होते हैं तो दूसरे मुद्दों को उठाया जाता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि साफ तौर पर कर्नाटक में ध्रुवीकरण का जो प्रयास है, वह काफी लंबे समय से चल रहा है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में ध्रुवीकरण ना सिर्फ भाजपा बल्कि दूसरे दलों की ओर से भी की जा रही है। हिजाब का भी मुद्दा कर्नाटक से ही आया। उन्होंने कहा कि इन तमाम मुद्दों में हमने देखा कि ऐसे तत्वों का भंडाफोड़ हुआ जो कर्नाटक में अशांति पैदा करना चाहते हैं। पीएफआई कनेक्शन भी सामने आया है। उन्होंने कहा कि हाल के कर्नाटक के मामलों को देखें तो इसका नतीजा साफ तौर पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा। इससे सभी राजनीतिक दल अपने अपने हिसाब से लाभ उठाना चाहेंगे।


- अंकित सिंह

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