भाजपा को दलित विरोधी दर्शाने वालों पर भारी पड़ गया योगी का दांव

By अजय कुमार | Jun 27, 2018

चुनावी साल में उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर उसी मुकाम पर पहुंचती दिख रही है जिसके सहारे बीजेपी ने 2014 जीता था। तब नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व के छतरी के नीचे सभी कौमों को लामबंद कर दिया था अब यही काम यूपी के सीएम योगी कर रहे हैं। भगवान राम सभी हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हैं, चाहें दलित हो या फिर अगड़ा−पिछड़ा कोई ऐसा हिन्दू नहीं होगा जिसकी भगवान राम में आस्था न हो और वह मंदिर का निर्माण नहीं चाहता हो। एक तरफ विपक्ष मुस्लिम−दलित वोटों की गोलबंदी करने में लगा है तो बीजेपी भगवान राम और अन्य अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दलितों को आरक्षण के बहाने विपक्ष की मुहिम में फूट डालने की कोशिश में लगे हैं। योगी पूछ रहे हैं कि जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी दलितों को आरक्षण दे सकता है तो एएमयू और जामिया जैसे विश्वविद्यालय क्यों दलितों को आरक्षण देने से परहेज कर रहे हैं। बीजेपी अयोध्या और अनुसूचितों के सहारे अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती है। वैसे बीजेपी का यह प्रयोग नया नहीं है। कैराना लोकसभा उप−चुनाव के समय भी बीजेपी ने एएमयू में जिन्ना की तस्वीर का मुद्दा उठाकर चुनावी बिसात पलटने की कोशिश की थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सकी थी और उसे मुंह की खानी पड़ी थी लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों ने हार नहीं मानी है। 

उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया तो लोगों को समझते देर नहीं लगी कि उनका निशाना कहां है। योगी ने सवाल खड़ा किया कि इन दोनों विश्वविद्यालयों में दलितों को आरक्षण के तहत दाखिला क्यों नहीं दिया जाता है। साथ ही यह भी जोड़ दिया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में इस तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। इसी के सहारे दलित हित की बात करने वालों को घेरते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा को बदनाम करने वाले इस मुद्दे पर क्यों खामोश हैं। योगी ने कहा कि भाजपा को दलित विरोधी दर्शाने की साजिश की जा रही है। योगी ने ऐसे मुद्दे को हवा दी है जिसकी काट आसान नहीं लग रही है। इससे पूर्व बीजेपी नेता दलितों के घर भोजन करने की मुहिम भी चला चुके थे, परंतु उसमें उन्हे कुछ हाथ नहीं लगा था।

 

दलितों के घर खाना खाने वाले बीजेपी नेताओं की कोशिशों के बीच एक बात यह भी उभर कर आई कि संघ के लोग तो पहले से ही इसे दोतरफा अभियान की तरह चला रहे थे। इसी लिये कुछ बीजेपी नेताओं ने जिस तरह दलितों के घर खाने के नाम पर खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश की उससे संघ नाराज हो गया तो संघ प्रमुख को भी कहना पड़ा कि सर्फ दलितों के घर जाकर खाना खाने से काम नहीं चलेगा। संघ प्रमुख ने साफ−साफ कहा कि समरसता अभियान तभी सफल हो सकता है जब यह दोतरफा हो। यानी सिर्फ दलितों के घर जाकर खाने से काम नहीं चलेगा, उनका भी उसी तरह अपने घर पर स्वागत करना होगा। संभवतः संघ के विचार सामने आने के बाद ही बीजेपी नेताओं की दलितों के घर भोज करने की मुहिम में कमी आ गई होगी।

 

संघ ने बीजेपी नेताओं को आईना दिखाते हुए कहा था कि अगर कोई यह सोचता है कि उसके जाने से दलित धन्य हो गए तो यह महज अहंकार है। अगर कोई खुद को बड़ा और दूसरे को छोटा मानकर उसके घर खाना खा रहा है तो यह समरसता नहीं है। अगर आप दलितों को परिवार का हिस्सा मानते हैं तब यह समरसता है। भागवत का कहना था कि दलितों के घर जाकर खाना खाने का रास्ता 1930 में गांधी जी ने दिखाया था। उस वक्त इससे फायदा हुआ था, लेकिन अब इससे आगे बढ़ने की जरूरत है।

 

बात अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की आती है तो विपक्ष बीजेपी पर हमलावर होते हुए एक ही जुमला 'राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनवायेंगे पर तारीख नहीं बतायेंगे,' बोलता है और बीजेपी के बड़े−बड़े नेता चारो खाने चित हो जाते हैं। अब जबकि यूपी से लेकर दिल्ली तक और पीएम से लेकर उप−राष्ट्रपति और राष्ट्रपति तक बीजेपी की विचारधारा का हो तो सवाल यही उठता है कि अड़चन आ कहां रही है। बीजेपी पर सबसे बड़ा आरोप तो यही लगता है कि उसने बीते चार−सवा चार वर्षों में कोर्ट से बाहर मंदिर बनाने के लिये कोई प्रयास नहीं किया। यह बात आमजन से लेकर संत समाज तक को अखरती है। इसीलिये तो श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास के 80वें जन्मदिन पर संत सम्मेलन में सीएम योगी आदित्यनाथ को अपने बीच पाकर संतों के मन का गुब्बार फूट पड़ा। उन्होंने सीएम से दो टूक कह दिया कि कोर्ट के आदेश का इंतजार किए बिना हर हाल में मंदिर निर्माण करवाया जाए।

 

राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य रामविलास वेदांती ने कहा कि जिस तरह कोर्ट के आदेश के बिना अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया गया, उसी तरह मंदिर निर्माण भी होना चाहिए। इस पर योगी थोड़ा असहज हो गये। उन्होंने कहा कि जहां आपने इतना लंबा इंतजार किया, थोड़ा इंतजार और कीजिए। जल्द ही अदालत का फैसला आने वाला है। मंदिर निर्माण के साथ बेहद सुखद और मर्यादित संदेश जाएगा। योगी ने संतों से कहा कि जो आप चाहते हैं, वही देश के करोड़ों लोगों की इच्छा है। भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां न्यायपालिका और लोकपालिका के निर्णय का सम्मान होता है। बहुत जल्द ही संवैधानिक धाराओं के तहत हल निकल आएगा। इस पर संतों ने कहा कि विधानसभा चुनाव के समय कहा गया था कि भाजपा की सरकार बनते ही मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। इसलिए सरकार को बिना देरी किए मंदिर का निर्माण शुरू करवाने के लिए ठोस फैसला करना चाहिए।

 

बहरहाल लब्बोलुआब यह है कि 2019 के चुनाव नजदीक हैं और साधु संतों को भी लगने लगा है कि अगर इस बार चूके तो मंदिर की राह बहुत मुश्किल हो जाएगी। ऐसे मे इनका दबाव अब बीजेपी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। वहीं बीजेपी के सामने समस्या यह है कि अभी भी उसका राज्यसभा में बहुमत नहीं है जिसके चलते ही वह तीन तलाक जैसे तमाम कानून नहीं पास करा पा रही है। अगर यहां बीजेपी का बहुमत होता तो शायद अभी तक भगवान राम के मंदिर का रास्ता प्रशस्त हो चुका होता।

 

-अजय कुमार

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