सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ताजमहल को तोड़ दो या इसका ध्यान रखो

By संतोष उत्सुक | Aug 27, 2018

दिल ओ जान से की गई मुहब्बत और कला की अनूठी मिसाल ताजमहल के बारे में हमेशा से सुनते आए हैं कि यह संगमरमर में लिखी कविता है। चाँदनी रात में चाँदी से बनाया हुआ लगता है ताज। ग्रीष्म की दोपहरी में मृगतृष्णा के समान हो जाता है। पहली बार देखो तो ऐसा लगता है कि कहीं हम खूबसूरती के भ्रम में तो नहीं। फ्रांसीसी पर्यटक ने इसे इजीप्ट के पिरामिड से भी सुंदर अजूबा माना। एम जी फारेस्ट ने ताज को भगवान की बेटी की तरह माना जो सबसे खूबसूरत है। लार्ड कर्ज़न को अपनी पत्नी मेरी के बाद ताज अपना दूसरा प्यार लगा था। कितनी ही दिग्गज हसीनाओं ने कहा कि उनकी कब्र पर ताज बन सके तो वह कल ही मर सकती हैं।

 

कितने दशकों से ताजमहल देखने का हसीन ख्वाब पलकों पर बिठाए, कई बरस पहले, बैटरी चालित मिनी बस में ताज की ओर जा रहे थे। कुर्ता पाजामा जैकेट पहने गिलोरी चबाते एक जनाब से पूछ बैठे, ‘क्यूँ साहिब अब तो कोई फाउंडरी नहीं रह गई ताज के पास’। उदास जवाब था उनका, ‘अरे साहब एक ताज ने पूरा शहर तबाह कर दिया।' हमने कहा फाउंड्रियों का शहर तो कहीं भी बस सकता है लेकिन क्या ताजमहल दोबारा बनाया जा सकता है। हमने और पूछा, आप क्या काम करते हैं। बोले हम आर्चिओलोजी डिपार्टमेन्ट में हैं। ‘आपके मुंह से यह बात कि एक ताज ने पूरा शहर तबाह कर दिया जँचीं नहीं वापिस ले लीजिए’ और हमने सभी यात्रियों के सामने उन्हें उनके शब्द वापिस थमा दिए।

 

उनका उतरा चेहरा देखने लायक हो गया था। तब लगा था कि काश ताजमहल न होता तो इन पुरातत्व वालों, सुरक्षा कर्मियों, अफसरों व नेताओं की ज़िम्मेदारी और परेशानी कितनी कम हो जाती। आज देश के सर्वोच्च न्यायालय को यह न कहना पड़ता कि ताजमहल को तोड़ दो या इसका ध्यान रखो। खबरें बताती हैं कि सरकार के विभाग अर्ज़ियाँ ले रहे हैं ताकि ताज के पास फिर से कमर्शियल गतिविधि पनपे। इन लोगों ने ताज से क्या लेना है। आगरा का प्रशासन, प्रदेश सरकार और केंद्रीय सरकार की सोच सकारात्मक होती तो मई 2018 में दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में आगरा का नाम आठवें नंबर पर न होता। सरकारी विभागों की निरंतर अनदेखी के कारण ही जिस तरह युनेस्को दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन को ‘हेरिटेज जोन’ से हटाने की तैयारी कर रहा है। मनहूस दिन पास खड़े हैं जो चेता रहे हैं, कहीं ताजमहल के साथ ऐसा न हो। अगर हो गया तो शायद ताज से जुड़े सभी सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थानों के कर्णधार सुकून की सांस लेंगे कि चलो जान छूटी। सरकारी नौकरी से कौन किसको निकाल सकता है, निकाल देंगे तो भी क्या बदलने वाला है। हमारे लिए हर मामले में राजनीति, राष्ट्रीय समस्याओं पर तवज्जो की जगह मनोरंजन या फालतू के विवाद ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं तभी तो किसी को समझ नहीं आता कि मुहब्बत और कला की मिसाल हसीन ताजमहल है तभी उसे चाहने वाले पूरी दुनिया में करोड़ों में हैं। हर परिवार की हर पीढी ताज देखने की तमन्ना जवां रखती है।

 

ताज के पहलू में जनसमूह ऐसा दिखता है मानो खूबसूरती अपने आँचल में हजारों रंग बिरंगे फूल सहला रही हो। ताज का दीदार होते ही मुहब्बत जवान हो जाती है। पत्नी पति की ज़िंदगी भर की तल्खी पिघल जाती है और प्यार के लम्हे वक़्त को ठहरने पर मजबूर कर देते हैं। ताजमहल को तरह तरह से नुकसान पहुँचने वाले व्यवसायिक उत्प्रेरकों की समझ कभी इतनी विकसित नहीं हो पाएगी कि ताज के निर्माण में कितना प्रेम, भावना, कला प्रेम, समर्पण, सूझबूझ, कर्मठ्ता, प्रतिबद्धता का समावेश है। उस जमाने में मुग़ल सम्राट ने इस नायाब यादगार को बनाने के लिए ईरान, इराक, टर्की, सऊदी अरब, मध्यएशिया, वेनिस व फ्रांस के बेहतरीन कारीगरों को हिंदुस्तान बुलाया जिनमें लेखक, चित्रकार, पत्थर काटने व तराशने वाले, मूर्तिकार, नक्काश, पुल बनाने वाले, गुंबद बनाने वाले शामिल थे। नागौर, जेल पुर, फ़तेहपुर सीकरी, नर्बदा चार्को, सूरत, ग्वालियर, पंजाब, इजीप्ट, लंका, रूस के समुद्र और नदियों से शंख, नीलम, फिरोज़ा, हीरा, मूंगा, पन्ना, सीप, मणि व अन्य कुल 47 तरह के महंगे पत्थर जुटाए गए तब कहीं जाकर बारह साल में मुख्य इमारत व बाईस साल में कुल क्षेत्र समेत, दुनिया का पहला और आखिरी अद्वितीय दिलकश ताज बन सका।

 

पर्शिया के शिल्पकार उस्ताद ईसा अफादी की देख रेख में बीस हजार कारीगर दिन रात जुटे रहे। ताजमहल स्थापत्य कला में सघनता, सममिति व संतुलन के साथ साथ कलाकर्म की संजीदगी, प्रस्तुति व समन्वय का नायाब नमूना है। श्वेत मकराना, संगमरमर से बने ताज की पीछे यमुना बहती है। एक तरफ मस्जिद दूसरी तरफ मेहमान खाना ताजमहल के सामने बहते अनुशासित पानी, सरु के दरख्त, अन्य फूल पेड़ फव्वारे कुछ चुनिंदा जगहों पर बनाए संगमरमर के बेंच वस्तुतः नयनाभिराम संसार की रचना करते हैं। ताज जालियों, दीवालों व मेहराबों पर किए गए जड़ाऊ काम के लिए भी विशेष है। इसकी विशाल मेहराब पर उकेरी पवित्र कुरान की आयतें उच्च कोटी की कलात्मक रचना हैं।

 

यहाँ की हर चीज़ लाजवाब है। बहुत कम लोग जानते हैं कि ताजमहल की नींव ऐसे सत्ताईस कुओं पर रखी गई है जो मेहराबों से जुड़े हैं। इन कुओं का काम पानी के धक्कों को रोकना है। यह जल संबंधी स्थापत्य की विशेष पद्धति के तहत किया गया निर्माण है जैसा संभवतः हमारे देश में दूसरा नहीं होगा। अभियांत्रिकी प्रोफेसर, इतिहासकार, युनेस्को व अन्य संस्थाएं कई दशकों से चेता रहे हैं कि ताज कौन कौन से खतरे झेल रहा है। वक़्त समझा रहा है कि ताज के कलात्मक, ऐतिहासिक, पर्यटकीय, आर्थिक महात्मय को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाए। शायद उस खास बेंच पर बैठकर पता चले जिस पर दुनिया भर की मशहूर और महत्वपूर्ण शख्सियतें बैठकर फोटो खिंचवा चुकी हैं। क्या सरकार की दोहरी, तिहरी नीतियां इस अनूठे आश्चर्य को हर तरह से बचाने में सफल होंगी। कहीं अति विकास की ज़हरीली खाद ताजमहल जैसी करोड़ों उगाने वाली अद्भुत संरचना को बंजर न कर दे। 

 

-संतोष उत्सुक

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