पुरूषोत्तम मास के दूसरे शनिवार को इस तरह करें पूजा, शनि देव की बरसने लगेगी कृपा

By कमल सिंघी | Sep 24, 2020

18 सितम्बर से अधिक मास प्रारंभ हो गया है। अधिकमास को मल मास या पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह अधिकमास भगवान विष्णु की पूजा के लिए खास माना जाता है। इस बार के अधिक मास में विशेष संयोग बन रहें है जो 165 वर्ष बाद बन रहें है। इसमें भगवान श्री विष्णु के साथ ही अन्य देवताओं की भी पूजा कर उन्हें प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने लगती है। अधिकमास का समापन 16 अक्टूबर को होगा। इस दौरान भगवान विष्णु की अनेक रूप में पूजा करनी चाहिए जिससे विशेष फल मिलता है। मल मास का दूसरा शनिवार 26 सितम्बर को आ रहा है। इस दिन भगवान शनि की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। हम आपको अधिकमास के शनिवार को शनि देव की किस तरह पूजा करनी चाहिए। इस बारे में बताने जा रहे हैं।

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शनिवार को करें रूद्राभिषेक 

अधिकमास में शनिवार का दिन अहम माना गया है। इस दिन शनि की पूजा करने से अनेक प्रकार के लाभ मिलते हैं। शास्त्रों के अनुसार अधिकमास के शनिवार को रूद्राभिषेक करना बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। अगर आपको नवग्रहों के द्वारा अशुभ फल प्राप्त हो रहा है तो आपको अधिकमास के शनिवार को उनकी विशेष पूजा करनी चाहिए। अगर आपको शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती है तो आपको शनिवार के दिन रूद्राभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं रहेगी। साथ ही आपका गृहस्थ जीवन भी शांति के साथ बीतेगा। अधिकमास में जिस तरह भगवान विष्णु की पूजा को काफी महत्वपूर्ण मानी गई है उसी प्रकार अधिकमास के हर शनिवार को शनि देव की पूजा करना भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। शनिवार का दिन शनि देव का रहता है और वे अधिकमास में की गई पूजा से आशीर्वाद प्रदान करते हैं। 


इस तरह करें शनि देव की पूजा

अधिकमास में भगवान विष्णु के साथ ही अन्य देवताओं की भक्ति करने का भी शास्त्रों में उल्लेख है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि अधिकमास में शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करने से शनि दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन शनि देव की पूजा करनी चाहिए एवं व्रत रखना चाहिए। जिससे शनि देव की कृपा बनी रहती है। इसलिए अधिकमास के प्रति शनिवार प्रातःकाल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान कर शनि देव के नाम की डुबकी लगाना चाहिए। जिसके बाद भगवान हनुमान व शनि देव की आराधना करते हुए तिल व लौंगयुक्त जल पीपल के पेड़ पर चढ़ाना चाहिए। इसके बार शनिदेव की प्रतिमा के समीप बैठकर उनका ध्यान लगाते हुए मत्रोंच्चारण करना चाहिए। पूजा करने के बाद काले वस्त्र, काली वस्तएं किसी ज़रूरतमंद या गरीब को दान करें। अगर मल मास के अंतिम शनिवार को शनि देव की पूजा के साथ ही साथ हवन व अनुष्ठान किया जाए तो उसका भी विशेष फल प्राप्त होता है। इस तरह से अधिकमास में कि गई शनि देव की पूजा से शनिदोष से मुक्ति मिलती है एवं शनि देव की कृपा बरसने लगती है।

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अधिक मास का महत्व

हिन्दू धर्म में अधिक मास या मलमास का बहुत ही महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय अधिक मास को लोग मलमास कहने लगे थे। जिससे वे नाराज होकर अपनी इस पीड़ा को लेकर भगवान विष्णु के पास चले गए एवं कहने लगे की अधिक मास का कोई स्वामी नही है इसलिए मलमास कहा जाता है। अधिक मास की इस पीड़ा को सुनकर भगवान विष्णु ने अधिक मास को अपना ना दिया। जिसके बाद से अधिक मास को पुरुषोत्‍तम मास कहा जाने लगा। भगवान विष्णु का एक नाम पुरूषोत्तम भी है। कहा जाता है कि अधिक मास को वरदान देते हुए भगवान विष्णु ने कहा था कि अधिक मास में जो भी व्यक्ति मेरी पूजा, उपासना आदि करेगा। उससे वे प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे और हर प्रकार की मनोकानाओं को पूर्ण करेंगे। इसलिए अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। कहा जाता है कि अधिकमास में पवित्र नदी में स्नान करना, पूजन करना, अनुष्ठान करना और दान देने से विशेष फल प्राप्त होते है और हर प्रकार की मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।


- कमल सिंघी

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