मदरसा शिक्षा पर गहराते संकट के मायने को ऐसे समझिए

Madrasa education
ANI
कमलेश पांडे । Mar 25 2024 11:47AM

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रयागराज ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ भी है, जो संविधान के मूल ढांचे का अंग है।

किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं व परम्पराओं को संरक्षण और बढ़ावा देना कोई अनुचित बात नहीं है। लेकिन जब सत्ताधारी दल द्वारा वोट बैंक के नजरिए से किसी धर्म को शह दिया जाए और किसी धर्म को नजरअंदाज किया जाए, तो यह गलत बात है। वहीं, विपक्षी दल द्वारा भी ऐसा किया जाना ठीक नहीं है। इस नजरिए से भारतीय धर्मनिरपेक्षता सदैव शक के कठघरे में खड़ा रहती आई है। 

खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ पक्षपाती प्रावधान वक्त दर वक्त तय किए गए, वो जब न्यायालय के समक्ष किसी जनहित याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो तर्क और नियमन की कसौटी पर कदापि नहीं टिक पाते। कतिपय मामलों में बहुसंख्यक धर्मावलंबियों को भी जब टारगेट करने की कोशिश की गई, तो वो प्रावधान भी कोर्ट में टिक नहीं पाए।

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हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रयागराज ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ भी है, जो संविधान के मूल ढांचे का अंग है। यही वजह है कि हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को योजना बनाकर इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में समायोजित करने का निर्देश दिया। इससे एक बात साफ हो चुकी है कि अब उत्तरप्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त 560 से अधिक मदरसों पर ताला लगेगा।

उल्लेखनीय है कि कोर्ट में याचिकाकर्ता अंशुमान सिंह राठौड़ ने मदरसा बोर्ड की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए मदरसों का प्रबंधन केंद्र व राज्य सरकार के स्तर पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से किये जाने के औचित्य पर सवाल उठाए थे। वहीं, याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बोर्ड धार्मिक शिक्षा दे रहा है, पर राज्य सरकार को ऐसी शिक्षा देने का संवैधानिक अधिकार है। धार्मिक शिक्षा और निर्देश देना, वर्जित या अवैध नहीं है। हां, यह बात अलग है कि ऐसे धार्मिक शिक्षा के लिए अलग से बोर्ड जरूरी है, जिसमें उसी धर्म के लोग हों।

बता दें कि इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मदरसा अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों व शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन करता है, जो संविधान की मूल संरचना है। उन्होंने सवालिया लहजे कहा कि मदरसों में इसे दीनी तालीम तक सीमित कर दिया गया है, जो छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। वहीं, बोर्ड में सिर्फ मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया गया, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। समझा जाता है कि इसी परिप्रेक्ष्य में उपर्युक्त न्यायिक आदेश मिला है।

इस मामले में जस्टिस विवेक चौधरी व जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खण्डपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए इस कानून को अधिकार से परे (अल्ट्रावायर्स) भी बताया। इसलिए सरकार का यह फर्ज बनता है कि ऐसे सभी प्रावधानों की पड़ताल करे और जनहित में सबकी एकरूपता सुनिश्चित करे। ऐसा किया जाना भारतीय धर्मनिरपेक्षता के हित में होगा। हालांकि, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा, आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।

वहीं, यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि फैसले का अध्ययन करने के बाद अगले कदम पर फैसला होगा। इस बात में कोई दो राय नहीं कि 20 साल बाद इस पकानून को असंवैधानिक करार दिया गया है। इसमें कहीं चूक हुई है। हमारे वकील कोर्ट के समक्ष मामले को सही तरीके से नहीं रख सके। उन्होंने कहा, मदरसे बंद होंगे तो कई शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे।

इस प्रकार स्पष्ट है कि उत्तरप्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद अगर अनुदानित मदरसे बन्द कर दिए जाते हैं तो वहां कार्यरत करीब 10,200 शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा। बता दें कि वर्तमान में मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त तहतानिया कक्षा 1 से 5, फौकानिया कक्षा 5 से 8 और आलिया व उच्च आलिया स्तर यानी हाई स्कूल या इससे ऊपर के लगभग 16,460 मदरसे हैं। जिनमें मुंशी मौलवी हाई स्कूल समकक्ष, आलिम इंटर समकक्ष, कामिल स्नातक और फाजिल परास्नातक के समकक्ष पढ़ाई होती है। 

उल्लेखनीय है कि इन मदरसों को संचालित करने के लिए वर्ष 2004 में बने मदरसा एक्ट को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। जिसके बाद मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों व कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है। वहीं, इस बारे में मदरसा शिक्षा परिषद की रजिस्ट्रार डॉ प्रियंका अवस्थी ने बताया कि मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त 16,460 मदरसों में 13 लाख 83 हजार 107 विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। वहीं, इनमें शामिल 560 अनुदानित मदरसों में 1 लाख 92 हजार 317 विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। लिहाजा, हाई कोर्ट के आदेश के बाद मदरसों के शिक्षा पा रहे इन 13 लाख से अधिक विद्यार्थियों के भविष्य पर अंधेरा छा गया है।

गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में 25,000 मदरसे हैं। जिनमें मदरसा बोर्ड से 16,512 को मान्यता प्राप्त है। उनमें से 560 को सरकारी सहायता मिलती है। वहीं, लगभग 8500 मदरसे बिना मान्यता प्राप्त हैं। कहना न होगा कि उच्च न्यायालय का यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है, जब राज्य सरकार के निर्देश पर एसआईटी राज्य में अवैध मदरसों की जांच कर रही है। 

सर्वविदित है कि इन मदरसों को विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद की जांच के लिए पिछले साल अक्टूबर में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था। इसकी जांच में अबतक 13000 मदरसे अवैध पाए गए हैं, जिन्हें बन्द करने की तैयारी चल रही है। 

बहरहाल, उच्च न्यायालय के ताजा आदेश से सरकार के दृष्टिकोण को बल मिला है। बावजूद इसके, इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि सम्प्रदाय विशेष में कोई गलत संदेश नहीं जाए। बेहतर तो यह होगा कि ऐसे सभी कानूनों की जांच राष्ट्रीय स्तर पर की जाए और समय रहते ही उन्हें समनुरूप बनाया जाए, ताकि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धार्मिक वैमनस्यता विकसित नहीं हो पाए।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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