Kannauj LokSabha Seat: कन्नौज में अखिलेश यादव ने बढ़ाई भाजपा की धड़कनें

Akhilesh Yadav
ANI
अजय कुमार । Apr 25 2024 4:40PM

सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चुनावी मैदान में उतरने से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में तो उत्साह बढ़ ही गया है, बसपा व भाजपा में भी सरगर्मी बढ़ गई है। सपाई अखिलेश के कन्नौज लोकसभा सीट से उम्मीदवार के तौर पर उतरने की पहले से ही मांग कर रहे थे।

लखनऊ। अंत भला तो सब भला। आखिरकार उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट को बचाने के लिये सपा प्रमुख अखिलेश यादव को यहां से चुनाव मैदान में कूदना ही पड़ गया। 25 अप्रैल को अखिलेश ने कन्नौज से चुनाव लड़ने के लिये नामांकन किया तो तेज प्रताप यादव का चैप्टर बंद हो गया। अब कन्नौज में एक बार फिर सपा मुखिया अखिलेश यादव व सुब्रत पाठक के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा ऐसा ही मुकाबला वर्ष 2009 में कन्नौज में देखने को मिला था। इस चुनाव में अखिलेश यादव को 3,37,751 मत मिले थे। दूसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी डॉ. महेश वर्मा को 2,21,887 मत मिले थे। वहीं, भाजपा के सुब्रत पाठक तीसरे स्थान पर रहे थे। तब उन्हें 1,50,872 मत ही मिल पाए थे। हालांकि वर्ष 2019 में जब सुब्रत पाठक ने डिंपल को हराया तब उन्हें 5,63,087 वोट मिले थे, जो कुल पड़े मतों का 49.35 प्रतिशत थे। 

सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चुनावी मैदान में उतरने से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में तो उत्साह बढ़ ही गया है, बसपा व भाजपा में भी सरगर्मी बढ़ गई है। सपाई अखिलेश के कन्नौज लोकसभा सीट से उम्मीदवार के तौर पर उतरने की पहले से ही मांग कर रहे थे। कन्नौज समाजवादी पार्टी की परम्परागत सीट मानी जाती है। इस लोकसभा क्षेत्र में जनता जातियों में बंटी है। अलग-अलग क्षेत्रवार सबकी अपनी बातें हैं। अब प्रत्याशी के तौर पर अखिलेश मैदान में हैं तो कन्नौज का सियासी रण दिलचस्प हो चुका है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी से ही सपा परिवार की जड़ें यहां कमजोर होनी शुरू हुईं। 2019 में सपाई गढ़ पूरी तरह ध्वस्त हो गया और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव हार गई थीं। सांसद चुने गए सुब्रत पाठक और अखिलेश के बीच उसके बाद से ही जब-तब जुबानी जंग छिड़ती रही है।

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2024 में अब उसी मुलायम परिवार में विरासत संभालने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश एक बार फिर मैदान में हैं। कन्नौज लोकसभा सीट पर 1998 से 2014 के बीच 16 साल में सपा सात मुकाबलों में जीती। दो बार उपचुनाव में भी सफल रही। सपा को फर्श से अर्श पर पहुंचाने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब 2000 में कन्नौज को अलविदा बोला, तब बेटे अखिलेश यादव को गद्दी सौंपी। 2012 में जब अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पत्नी डिंपल यादव को उपचुनाव में निर्विरोध निर्वाचित कराया। इस तरह जब-जब मुलायम परिवार का कोई सदस्य कन्नौज सीट से हटा, बदलाव हुआ, सीट उसे ही मिली। 

2019 में डिंपल के हारने के बाद कई बार सांसद सुब्रत पाठक और अखिलेश ने एक-दूसरे पर निशाने साधे। अब 2024 के चुनाव में सपा ने कन्नौज में पत्ते आखिरी समय में खोले हैं। इससे पहले जब तेज प्रताप के नाम की घोषणा हुई तो फिर भाजपा-सपा के बीच जुबानी जंग बढ़ गई थी। पिछले दो दिन में तेजी से घटनाक्रम बदला। लखनऊ तक सपा कार्यकर्ता गए, कुछ ने सैफई की कोठी में दस्तक दी। फिर 24 अप्रैल को प्रो. रामगोपाल यादव के एक बयान के बाद अखिलेश के मैदान में आने की चर्चा शुरू हो गई। इस बीच सपा के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी ने अखिलेश के चुनाव लड़ने के संकेत दिए। उधर, सपा नेता, कार्यकर्ता व जनता भी अपनी-अपनी बात रखती रही। आखिरकार देर शाम अखिलेश के नाम की मुहर लग गई और आज उन्होंने नामांकन भी कर दिया। कन्नौज में अखिलेश के लड़ने पर यहां की लड़ाई दिलचस्प होगी। तेज प्रताप को कम लोग जानते हैं। वैसे यह क्षेत्र सपा-भाजपा सबके राज में उपेक्षित रहा है। 

समाजवादी पार्टी के पुराने गढ़ कन्नौज में 2019 में भाजपा से मिली शिकस्त के बाद पार्टी नेता अखिलेश से लोकसभा चुनाव लड़ने की मांग कर रहे थे, आज 25 अप्रैल को सपा प्रमुख ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। फिलहाल जिले की तिर्वा, छिबरामऊ और सदर विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इसके साथ ही आठ ब्लाक प्रमुखों से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर भी भाजपा काबिज है। कन्नौज संसदीय सीट पर वर्ष 1998 में पहली बार सपा प्रत्याशी प्रदीप यादव ने जीत दर्ज कर पार्टी का खाता खोला था। इसके बाद वर्ष 1999 में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज और संभल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। दोनों सीटों से चुनाव जीतने के बाद मुलायम ने कन्नौज से इस्तीफा दिया था। वर्ष 2000 में हुए उपचुनाव में उन्होंने बेटे अखिलेश यादव को मैदान में उतारा। इस चुनाव में उन्होंने बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डंपी को चुनाव हराया। इसके बाद अखिलेश वर्ष 2004 और 2009 में भी यहां से जीते। 2012 में प्रदेश में सपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बनने पर अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 2012 में हुए उपचुनाव में डिंपल यादव को निर्विरोध सांसद निर्वाचित किया गया। इसके बाद डिंपल ने वर्ष 2014 में भी जीत दर्ज की, लेकिन वर्ष 2019 में हुए चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को पराजित कर सपा के गढ़ पर कब्जा कर लिया।

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