वैष्णो देवी में हुए हादसे के संबंध में जवाबदेही तय कर कार्रवाई होगी तभी ऐसी घटनाएं थमेंगी

By योगेश कुमार गोयल | Jan 08, 2022

नए साल के अवसर पर माता वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन के लिए जुटी भारी भीड़ में भगदड़ मचने के कारण गत दिनों करीब 12 लोगों की मौत के घटनाक्रम ने प्रत्येक देशवासी को बुरी तरह झकझोर दिया। हालांकि किसी प्रसिद्ध धर्मस्थल पर एकत्रित हुई भारी भीड़ में भगदड़ के कारण हुआ यह कोई पहला हादसा नहीं है बल्कि बीते तीन दशकों में देश ऐसे कई बड़े हादसों को झेल चुका है लेकिन विड़म्बना है कि इसके बावजूद ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लिए जाते और बार-बार ऐसे हृदय विदारक हादसों की वजह से अनेक हंसते-खेलते परिवार उजड़ जाते हैं।

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अगर पिछले ढाई दशकों के दौरान हुए ऐसे ही कुछ प्रमुख हादसों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2016 में वाराणसी के राजघाट पर भगदड़ मचने से 19 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 70 लोग घायल हुए थे। हादसे के समय लोगों की भारी भीड़ पुल से गुजर रही थी कि तभी किसी ने पुल टूटने की अफवाह फैला दी थी, जिससे भगदड़ मच गई थी। 10 अगस्त 2015 को झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ मंदिर में अचानक मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा घायल हुए थे। 13 अक्तूबर 2013 को मध्य प्रदेश के रत्नगढ़ मंदिर के पुल पर मची भगदड़ में 115 लोगों की जान चली गई थी और 100 से ज्यादा घायल हुए थे। 2013 में इलाहाबाद के संगम में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के लिए आए 36 लोगों की जान चली गई थी और कई दर्जन लोग घायल हुए थे।


19 नवम्बर 2012 को छठ पूजा के अवसर पर पटना में अदालतगंज क्षेत्र के एक घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा थी और वहां अचानक भगदड़ मचने से करीब 20 लोगों की मौत हो गई थी तथा बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे। 14 जनवरी 2011 को केरल में सबरीमाला मंदिर में भगदड़ में 106 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी तथा सैंकड़ों घायल हुए थे। 4 मार्च 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के राम-जानकी मंदिर में कृपालु महाराज की पत्नी की पुण्यतिथि के अवसर पर लोगों को कपड़े और खाना वितरित करने का कार्यक्रम था। उस दौरान मंदिर परिसर में करीब 10 हजार लोग जमा थे। अचानक भगदड़ मची और उस हादसे में 63 लोगों ने अपनी जान गंवा दी तथा सैंकड़ों घायल हुए। 30 सितम्बर 2008 को जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ी थी और तब भगदड़ मचने के कारण 120 लोगों की जान चली गई थी तथा करीब 200 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।


3 अगस्त 2006 को हिमाचल प्रदेश के माता नैना देवी मंदिर परिसर में हुए ऐसे ही हादसे में 160 लोगों की जान चली गई थी और करीब 400 लोग घायल हुए थे। 25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधार देवी मंदिर में नारियल फोड़ने से सीढ़ियों पर हुई फिसलन के कारण मची भगदड़ के चलते 291 लोग मारे गए थे। 27 अगस्त 2003 को नासिक में कुंभ स्नान के लिए आए 40 लोगों की भगदड़ के कारण जान चली गई थी और करीब 125 श्रद्धालु घायल हुए थे। हरिद्वार में सोमवती अमावस्या के अवसर पर 15 अगस्त 1996 को हर की पौड़ी पर करीब 20 हजार श्रद्धालु इकत्रित हो गए थे और तब 30 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भगदड़ के कारण 15 जुलाई 1996 को 35 लोग काल का ग्रास बन गए थे।

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इन हादसों में से बहुत सारे हादसे ऐसे थे, जिन्हें प्रशासन की सजगता से आसानी से टाला जा सकता था लेकिन कुंभ मेला हो या अन्य छोटे मेले अथवा विभिन्न धर्म स्थलों पर किसी भी वजह से मचने वाली भगदड़ के कारण लोग मर जाते हैं। यह विडम्बना ही है कि देश में लगातार होते ऐसे हादसों के बाद भी ऐसा तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है, जो ऐसे स्थानों पर एकाएक भीड़ बढ़ जाने पर उसे नियंत्रित करने के लिए कोई अनुशासित व्यवस्था कर सके। देश के किसी न किसी हिस्से से बार-बार सामने आते ऐसे दर्दनाक हादसों को देखते हुए प्रशासन को भीड़ को नियंत्रित करने की अपनी कार्यप्रणाली पर गहन मंथन करने की आवश्यकता है। आज न केवल करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र माता वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा को बल्कि देशभर के अन्य सभी धार्मिक स्थलों तथा कुंभ मेले सहित प्रमुख मेलों की यात्रा को भी पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुए कठोर कदम उठाए जाने की सख्त दरकार है।


-योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कुछ चर्चित पुस्तकों के लेखक हैं और 32 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय हैं)

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