ऐलान...ऐलान और सिर्फ ऐलान (व्यंग्य)

By पीयूष पांडे | Dec 04, 2019

देश रेप के मुद्दे पर गुस्से में हैं। सरकार दावा कह रही है कि अबकी बार कठोर कानून बनाएंगे। बलात्कारियों की कमर तोड़ देंगे। जनता का गुस्सा जाया नहीं होने देंगे। रेप की घटनाओं को रोककर ही दम लेंगे। ये दावे ऐसे किए जा रहे हैं, मानो रेप की हर घटना का सरकार को होने से पहले पता रहता है। अभी तक सिर्फ आलस्य की वजह से बलात्कारियों को छूट मिली हुई थी, वरना उन्हें दबोचना दो सेकेंड का काम भी नहीं है। हल्ला रेप पर मचा है, इसलिए चिंता रेप को लेकर है। इससे पहले प्रदूषण पर हल्ला था, तो सरकार भी प्रदूषण पर चिंतित थी। इस कदर कि सरकार के मंत्रीजी ने संसद में खड़े होकर ऐलान किया कि 15 साल में देश से प्रदूषण खत्म कर दिया जाएगा जाएगा।

इसे भी पढ़ें: सरकारी नौकरी की यादें (व्यंग्य)

संविधान की कसम, ऐसे आत्मविश्वास पर बलिहारी होने का मन करता है। हिन्दुस्तान में ही संभव है कि कार्य आरंभ होना तो दूर मंत्री बिना योजना बनाए ही कार्य पूर्ण होने की डेडलाइन दे देता है। इस आत्मविश्वास की कई वजह हैं। पहली, पर्यावरण मंत्री को लगता है कि बलात्कार हो या प्रदूषण, हल्ला सिर्फ बाद दो पखवाड़ों का है तो लोगों को खुश रहने के लिए डेडलाइन दो और काम पर चलो। दूसरी वजह लोगों की कमजोर याददाश्त है। लाखों लोगों को अपने इलाके के सांसद का चेहरा तक तो याद नहीं है। वो सरकार की घोषणाओं को कैसे याद रहेंगे ? सरकार के आत्मविश्वास की सबसे बड़ी वजह है कि देश की जनता बड़ी विकट भोली है। वो कभी घोषणापत्र में लिखे वादों पर तो सवाल नहीं करती, संसद के हो हल्ले के बीच हुए वादों पर क्या सवाल करेगी?

 

हिन्दुस्तान की जनता का जवाब नहीं। 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है', जैसी कविता गाती है, लेकिन सत्ता पर नेता को ही बैठाती है। कुर्सी पर बैठते बैठते नेता का कॉन्फिडेंस इतना तगड़ा हो जाता है कि वो बिन योजना ही डेडलाइन दे सकता है। दावों का तो ख़ैर क्या है। कुछ भी कर दो। करीब 50 साल पहले सरकार ने गरीबी हटाने का वादा किया। आज तक गरीबी हट रही है। जिस सरकार ने वादा किया था, वो आई, गई, फिर आई और फिर चली गई। लेकिन जनता का भोलापन देखिए कि गरीबी हटाने पर कोई बात नहीं करती। गरीबी खत्म करने को तो इतनी योजनाएं बीते 70 साल में सरकार ने बनाई हैं कि कई मंत्री-संत्रियों की 70000000000000 पीढ़ियों की गरीबी खत्म हो गई।

 

भ्रष्टाचार को हटाने की कई योजनाएं भी बरसों से चल रही हैं लेकिन आज तक स्टेशन पर नहीं पहुंची। बेरोजगारी का तो ऐसा है कि सरकार दो मिनट में खत्म कर दे लेकिन कमबख्त बेरोजगार नहीं मानते। सरकार 100 को नौकरी देती है, लेकिन 200 पीछे से नौकरी मांगने चले आते हैं। सरकारें दानवीर सेठ की तरह दो हाथ से नौकरी बांटती रहती हैं, लेकिन पीछे से हर पल 100 आदमी कतार में लगते हैं तो कतार तो बढ़ेगी ही।

इसे भी पढ़ें: तपस्या से तौबा (व्यंग्य)

भुखमरी वगैरह पर तो योजनाएं बनाना ही बेकार है। सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर गांव गांव तक अनाज भिजवाती है। सस्ता अनाज भंडार खुलवाती है। फ्री गेंहू-चावल बंटवाती है। अन्नपूर्णा योजनाओं का संचालन कराती है। क्या-क्या नहीं करती ? बंदा घर से निकलकर अनाज लेने ही ना जाए तो बेचारी सरकार क्या करे? कभी-कभी बंदा व्रत के चक्कर में भोजन ना कर रहा हो, किसे पता? उस पर मीडिया के लोगों का नाटक यह कि कहीं एक मौत हो जाए तो तिल की हेडलाइन बना डालते हैं।

 

ऐसी ही हेडलाइन्स अब रेप के मुद्दे पर बना रहे हैं। उससे पहले प्रदूषण के मुद्दे पर बना रहे थे। सरकार बेचारी क्या करे? वो जो कर सकती है, वो कर रही है। चिंतन, मनन और योजनाओं का ऐलान।

 

पीयूष पांडे

प्रमुख खबरें

Smriti Irani hits Back At Pakistani Leader | चुनाव के बीच राहुल गांधी की तारीफ करने वाले पाकिस्तानी नेता फवाद हुसैन पर स्मृति ईरानी का पलटवार | Watch Video

Uttar Pradesh: प्रेमी युगल ने जहर खाकर की आत्महत्या, मामले की जांच शुरू

Maharashtra: EVM में हेरफेर करने के लिए शिवसेना-यूबीटी नेता से 2.5 करोड़ रुपये मांगने के आरोप में सेना का जवान गिरफ्तार

Air India Express के अनेक विमान कर्मियों ने बीमार होने की सूचना दी, कई उड़ान रद्द