उत्तराखंड बाघों के संरक्षण में प्रथम स्थान पर: रावत

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 29, 2019

देहरादून। उत्तराखंड के वन मंत्री हरक सिंह रावत ने सोमवार को बताया कि 2018 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में 442 बाघ हैं और राज्य के क्षेत्रफल और बाघों की संख्या के अनुपात के हिसाब से प्रदेश बाघों के संरक्षण में प्रथम स्थान पर है। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में शिरकत करते हुए वन मंत्री रावत ने यह जानकारी दी।  यहां जारी एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, वन मंत्री रावत ने बताया कि 2018 की गणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में 526 एवं कर्नाटक में 524 और उत्तरखण्ड में 442 बाघ हैं लेकिन बाघों के आंकड़े और राज्य के क्षेत्रफल का अनुपात में देखा जाए तो उत्तराखंड बाघों के संरक्षण में प्रथम स्थान पर है। 

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उन्होंने कहा कि कॉर्बेट टाइगर डिवीजन में भी बाघों की संख्या 250 है जो पूरे देश में प्रथम स्थान पर है।  रावत ने कहा कि तीसरे आधार को भी देखा जाए तो ‘नॉन टाइगर डिवीजन’ के आधार पर भी उत्तराखंड में बाघों की संख्या पूरे भारत के किसी भी राज्य के नॉन टाइगर डिविजन में सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, उत्तराखण्ड के सभी 13 जिलों में टाइगर की मौजूदगी प्राप्त हुई और इसके अलावा भारत के किसी भी अन्य राज्य में सभी जिलों में बाघ नहीं पाया गया है अर्थात इस दृष्टि से भी बाघ संरक्षण की दिशा में उत्तराखण्ड प्रथम स्थान पर है।  वन मंत्री ने यह भी बताया कि बाघों की गणना राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की देख-रेख में की गई है, जिसकी उन्होंने स्वयं निगरानी की।

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मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी यहां एक बयान जारी कर उत्तराखंड में बाघों की संख्या बढने पर खुशी जाहिर की और कहा कि उत्तराखंड जैव विविधता, पर्यावरण व वन्य जीव संरक्षण के लिए संकल्पबद्ध है।  उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 2010 में उत्तराखंड में 227 बाघ थे जो 2014 में बढकर 340 और 2018 में बढकर 442 हो गए हैं। वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा-पत्र में वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि भारत ने यह लक्ष्य चार साल पहले ही हासिल कर लिया है जिसमें उत्तराखंड का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।मुख्यमंत्री ने कहा कि वन व वन्य जीवन का संरक्षण उत्तराखंड की संस्कृति में है। बाघ को पारिस्थितिक तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बताते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा कहा भी गया है कि  वन हैं तो बाघ हैं और बाघ हैं तो वन हैं।  मुख्यमंत्री ने कहा कि कल मसूरी में हिमालयी राज्यों के सम्मेलन में भी सभी प्रतिभागी राज्यों के प्रतिनिधियों ने विकास व पर्यावरण संरक्षण में संतुलन रखते हुए सतत विकास का संकल्प लिया है और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हम सतत विकास के लिए प्रयत्नशील हैं।

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