पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित विधेयक को निष्प्रभावी मान लिया जाए: नायडू

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 21, 2019

नयी दिल्ली। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को सुझाव दिया कि उच्च सदन में पांच साल से अधिक समय से लंबित किसी भी विधेयक को निष्प्रभावी मान लिया जाए। उन्होंने उस नियम पर भी विचार किए जाने का सुझाव दिया जिसके तहत लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में विधेयक लंबित होने के दौरान लोकसभा के भंग होने पर वह विधेयक स्वत: निष्प्रभावी मान लिया जाता है। उन्होंने अवरोधों के कारण सदन का समय खराब होने पर चिंता जताते हुए कहा कि वर्तमान में अवरोधात्मक एवं कम कामकाज वाला जो माहौल है उसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक ढांचे को और कमजोर होने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ में सभापति ने कहा कि पिछले माह 16वीं लोकसभा के भंग होने के बाद राज्यसभा में लंबित 22 विधेयक निष्प्रभावी हो गये। इसके अलावा 33 विधेयक ऐसे हैं जो पिछले कई वर्षों से उच्च सदन में लंबित हैं। इसमें से तीन विधेयक 20 साल से अधिक समय से लंबित हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत लोकसभा में उसके पांच साल के कार्यकाल के दौरान पारित किए गये विधेयक यदि राज्यसभा में लंबित रह जाते हैं तो वह संबंधित लोकसभा के कार्यकाल समाप्त होने पर निष्प्रभावी हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि कोई विधेयक राज्यसभा में पेश हो जाए तो वह सदन की संपत्ति रहता है भले ही लोकसभा भंग हो जाए। 

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नायडू ने कहा, ‘‘प्रभावी तौर पर लोकसभा को इन 22 विधेयकों पर विचार कर उन्हें पारित करना होगा। मुझे लगता है कि इसमें कम से कम दो सत्र लग जाएंगे। इसका यह अर्थ हुआ कि इन 22 विधेयकों को पारित करने में लोकसभा के प्रयास व्यर्थ गए।’’ उन्होंने कहा कि जो विधेयक निष्प्रभावी हो गये उनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक, तीन तलाक संबंधी विधेयक, आधार संशोधन विधेयक और मोटर यान विधेयक शामिल है। उन्होंने कहा, ‘‘इसके देखते हुए संसद के उच्च सदन में विधेयकों के निष्प्रभावी होने संबंधी प्रावधान पर विचार किया जाए...मेरा सुझाव है कि राज्यसभा में स्वत: निष्प्रभावी होने के मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जाए।’’ सभापति ने कहा कि पिछले कई सालों से लंबित विधेयकों में सबसे अधिक लंबे समय से विचाराधीन विधेयक भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक 1987 है। यह विधेयक 32 सालों से विचाराधीन है।

 

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