पेट्रोल-डीजल कीमतें बढ़ने पर हंगामा करने वाले सरकार में आने पर चुप हैं

By विजय शर्मा | Sep 25, 2017

2013 के मुकाबले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के रेट आधे हैं लेकिन भारत में पेट्रोल-डीजल 2013 के भाव बिक रहा है। सितंबर 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत 109.45 डॉलर प्रति बैरल थी। तब पेट्रोल के दाम दिल्ली में 76.06 पैसे प्रति लीटर, कोलकाता में 83.63 पैसे प्रति लीटर, मुंबई में 83.62 पैसे हो गए थे और भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में धरना-प्रदर्शन करके खूब पुतले फूंके थे और कई बार लोकसभा तथा राज्यसभा की कार्यवाही बाधित की थी। इस साल सितंबर 2017 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की क़ीमत है 54.58 डॉलर प्रति बैरल है। सितंबर 2013 की तुलना में इस महीने पेट्रोल 54.89 डॉलर प्रति बैरल सस्ता है। आज दिल्ली में पेट्रोल 70.49 पैसे, कोलकाता में 73.25 पैसे, मुंबई में 79.62 पैसे प्रति लीटर के भाव बिक रहा है और जनता में भारी रोष है। रोष विपक्षी पार्टियों से भी है क्योंकि पूरा विपक्ष इसको मुद्दा बनाने में विफल रहा है।

दरअसल मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घटी तेल की कीमत का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया है बल्कि घटती तेल की कीमतों के साथ ही मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाती रही है और पिछले तीन वर्षों में एक लीटर पेट्रोल पर करीब 12 रूपए सिर्फ एक्साइज टैक्स में बढ़ा दिये हैं। सरकारी कम्पनियों को तेल लगभग 27 रूपए में मिलता है जिसमें परिवहन और दूसरे खर्च लगभग 3.75 रूपए और करीब 21.50 रूपए केन्द्रीय कर मिलाकर यह करीब 52.50 पैसे का हो जाता है। डीलर का कमीशन 3.25 और स्टेट टैक्स और सेस करीब 15 रुपये लगने के बाद इसकी कीमत 70 रूपए के पार हो जाती है और कुछ राज्यों और अधिक टैक्स के कारण इसकी कीमत 80 रूपए के पार हो चुकी है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी से बाहर रखने के कारण यह केन्द्र और राज्यों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गया है। लेकिन आग में घी का काम तो मोदी सरकार की एक्साइज ड्यूटी ने किया है।

 

भारत में पड़ोसी देशों के मुकाबले पेट्रोल और डीजल के दाम सबसे अधिक हैं और इसलिए हैं क्योंकि मोदी सरकार मानती है कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों से अधिक विकसित है इसलिए सरकार को अधिक वसूली का अधिकार है। विपक्ष को चारों खाने चित करने और जनता के रोष से बचने के लिए मोदी सरकार ने पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन पेट्रोल और डीजल के रेट तय करने शुरू किये हैं और इसी दौरान पेट्रोल और डीजल के भाव 10 रूपए प्रति लीटर तक बढ़ गये और किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई। अब जब आम आम जनता पर इसका असर दिखना शुरू हुआ है तब तक तो लाखों करोड़ रूपए से वारे न्यारे हो चुके हैं। सरकार का दावा है कि पेट्रोल-डीजल के दाम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है और यह सही है लेकिन पैट्रो उत्पादों पर टैक्स के नाम पर जो वसूली हो रही है, वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के नियंत्रण में है और तेल की घटी कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को न देकर सरकार उनसे छल कर रही है। अब तो सरकार के मंत्री खम ठोक कर कह रहे हैं कि गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के लिए ऐसा करना अनिवार्य है। लेकिन वह यह नहीं जानते कि पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने पर सबसे ज्यादा मार गरीबों को ही पड़ती है़।

 

देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 3 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं और जनता परेशान है। जब कच्चे तेल के दाम लगातार गिर रहे हों और देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ रही हों तो जनता के मन में सरकार की मंशा पर सवाल उठने लाज़मी हैं। जब 2014 के मई-जून में कच्चे तेल की कीमत लगभग 107 डॉलर प्रति बैरल थी, उस वक्त पेट्रोल आज से सस्ता मिल रहा था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोदी सरकार गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर देश के मध्यम एवं निम्न वर्ग से ही अत्यधिक वसूली कर रही है और इसके मंत्री खम ठोककर दावा कर रहे हैं कि गाड़ी चलानी है तो पैट्रोल और डीजल की मनमानी कीमत देनी होगी। पूर्व नौकरशाह से मंत्री बने केजे आल्फोंस ने बयान दिया है कि "पेट्रोल ख़रीदने वाले भूखे नहीं मर रहे हैं। हम उन्हीं लोगों पर कर लगा रहे हैं जो कर अदा कर सकते हैं। जिनके पास कार है, बाइक है, निश्चित रूप से वह भूखे नहीं मर रहे हैं। जो चुका सकता है उसे चुकाना चाहिए।" ऐसे मंत्रियों को जमीनी जानकारी नहीं है। किसान से लेकर सफाई कर्मचारी तक के पास आज मोटरसाइकिल है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अमीर हो गये हैं। अपने घरों से 20 से 40 किलोमीटर दूर जाकर अपनी रोजी रोटी कमी रहे हैं लेकिन सरकार को वे चुभने लगे हैं। मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है और अब मेहनत मजदूरी से रोजी रोटी कमा रहे निम्न एवं मध्यम वर्ग पर सीधे चोट कर रही है। एक्साइज ड्यूटी के नाम पर हजारों करोड़ों के मोदी सरकार वारे न्यारे कर चुकी है लेकिन वह पेट्रोल और डीजल उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर निम्न एवं मध्यम वर्ग से ही वसूली कर रही है।

 

लेकिन उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों से पूरे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का यह बयान हैरत पैदा करता है कि पेट्रोल और डीजल के दाम राज्य सरकारों के टैक्स से बढ़े हैं लेकिन वह यह बताना भूल गये कि एक लीटर पेट्रोल और डीजल पर उपभोक्ता से कितना केन्द्रीय कर वसूला जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमतें अब तक 18 फीसदी बढ़ी हैं, जिससे दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 65.40 रुपये से बढ़कर 70.45 रुपये तक पहुंच गई है। साल 2014 में कच्चे तेल की कीमत 107 रुपये प्रति बैरल होने के बाद दिल्ली में मई-जून 2014 में पेट्रोल की कीमत 71.51 थी।

 

एसोचैम ने भी पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि पर हैरानी जतायी है और कहा है, "जब कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल थी, तो देश में यह 71.51 रुपये लीटर बिक रहा था। अब जब यह घटकर 53.88 डॉलर प्रति बैरल आ गई है तो उपभोक्ता तो यह पूछेंगे ही कि अगर बाजार से कीमतें निर्धारित होती हैं तो इसे 40 रुपये लीटर बिकना चाहिए।" वित्त मंत्री को बजट में ही इसकी घोषणा कर देनी चाहिए थी कि पेट्रोल, डीजल और अन्य चीजों के दाम और उपकर सरकार आम जनता पर कभी भी लगा सकती है। जनता कृषि कल्याण उपकर और स्वच्छ भारत उपकर के साथ-साथ शिक्षा उपकर तो दे ही रही है, अब पेट्रोल और डीजल पर जो टैक्स वसूला जा रहा है, उससे गरीब मजदूर से लेकर किसानों और मध्यम वर्गीय शहरी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। किसानों की आय बढ़ाने की दावा करने वाली सरकार को इस बात का आभास ही नहीं है कि इससे किसानों की माली हालत कितनी खराब हो रही है। बेरोजगारी कि मार झेल रहे युवा वर्ग को तो मोदी सरकार भूल चुकी है।

 

पेट्रोलियम मंत्री ने दावा किया था कि राज्य सरकारों ने पेट्रो उत्पादों पर वैट बढ़ा दिया है इससे दाम बढ़े हैं, लेकिन एक अनुमान के अनुसार सरकार की आय 1 लाख 72 हज़ार करोड़ से बढ़कर 3 लाख 34 हज़ार करोड़ हो गई है। साफ है कि केन्द्र ने ज्यादा शुल्क बढ़ाए हैं। पेट्रोलियम उत्पादों से राज्यों को होने वाली आय में 29-30 हज़ार करोड़ रुपए की ही वृद्धि हुई है जबकि केन्द्र की आय दुगुनी से ज्यादा हुई है और ऐसा पेट्रो उत्पादों पर अत्यधिक करों की वजह से संभव हुआ है और यह सब आम जनता की कीमत पर हो रहा है। मोदी सरकार यदि काले धन पर लगाम लगाने और पकड़ने का दावा कर रही है तो उसे आम जनता के उपयोग की वस्तुओं पर इतना टैक्स लगाने का क्या आवश्यकता है? अगर मोदी सरकार हर मोर्चे पर इतनी ही सफल है तो फिर उसे औद्योगिक और व्यापारिक  घरानों की चिंता छोड़कर आम जनता की चिंता करनी चाहिए वरना जनता आजकल अपना मन बड़ा तेजी से बदल लेती है। 2004 में भी भारतीय जनता पार्टी इंडिया शाइनिंग के नारों के साथ चुनावों में उतरी थी लेकिन वह शाइनिंग इंडिया केवल भाजपा को ही दिखाई दे रहा था और जनता ने विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के अभाव में भी कांग्रेस को चुना था जबकि भाजपा के पास अटल बिहारी वाजपेयी जैसा यशस्वी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार था। तब जिस तरह जनता को भाजपा की नीतियों से निराशा हुई थी, कहीं 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते भाजपानीत सरकार से आम जनता का फिर से मोहभंग न हो जाये।

 

-विजय शर्मा

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