चीन की गलतियां और बिगड़ते गए रिश्ते, विदेश मंत्री ने बताए तीन दशक के सबक और संबंध सुधार के 8 मूल सिद्धांत

By अभिनय आकाश | Jan 30, 2021

भारत और चीन दोनों विकासशाील देशों में कई समानताएं हैं चाहे वो संसाधनों से लेकर समस्याओं तक में क्यों न हो। लेकिन 1962 में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा और बाद में 1976 को दोनों राज्यों के संबंध दोबारा बहाल किए गए। अक्टूबर 1954 में नेहरू भी चीन गए उसके 34 साल बाद 1988 में भारत के उस वक्त के पीएम राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया था। जिससे रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और चीन के रिश्तों के उतार-चढ़ाव को लेकर चीन अध्ययन पर 13वें अखिल भारतीय सम्मेलन पर कई बिन्दुओं का उल्लेख किया।  पिछले चीन दशक में बातचीत और विनिमय के दौर में काफी बदलाव देखने को मिला। चीन हमारा एक बड़ा ट्रेडिंग पाटर्नर बन गया। टेक्नालाजी के क्षेत्र में निवेश का महत्वपूर्ण स्रोत। पर्यटन और शिक्षा क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान। बाॅर्डर इलाकों में तनाव रहा लेकिन आपसी समझ और समझौतेके माध्य से सब कुछ सुगमता से चलता रहा। वास्तिवक नियंत्रण रेखा का सम्मान भी होता रहा। लेकिन वक्त बीतने के साथ ही एक एलएसी पर आपसी तालमेल बना रहा पर चीन की ओर से सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण भी होता रहा। साल 2014 में भारत की ओर से चीन के साथ संबंधों की खाई पाटने की और कोशिश की गई। मोदी सरकार की ओर से कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए 2015 में एक अरब डाॅलर की घोषणा भी की गई। चाहे नीतियों और समझौतों को लेकर दोनों देशों के बीच अलग-अलग मत हो लेकिन सच्चाई ये है कि बाॅर्डर का इलाका शांति पूर्ण ही रहता था। 2020 से पहले वहां किसी के जान गंवाने की खबरे 1975 से पहले ही देखने को मिली थी। इसलिए पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख में हुई घटना ने दोनों देशों के रिश्तों को ज्यादा प्रभावित किया। क्योंकि इस घटना ने न सिर्फ प्रतिबद्धता की अवहेलना बल्कि शांति भंग करने की इच्छा भी प्रदर्शित की। 

इसे भी पढ़ें: कोरोना वायरस का सबसे पहला मरीज जिसका हुआ था इलाज, WHO की टीम ने किया उस अस्पताल का दौरा

जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों को पटरी पर लाने के लिये आठ सिद्धांत रेखांकित किये

  • वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रबंधन पर सभी समझौतों का सख्ती से पालन।
  • आपसी सम्मान एवं संवेदनशीलता तथा एशिया की उभरती शक्तियों के रूप में एक दूसरे की आकांक्षाओं को समझना।
  • सीमावर्ती इलाकों में शांति स्थापना चीन के साथ संबंधों के सम्पूर्ण विकास का आधार है और अगर इसमें कोई व्यवधान आयेगा तो नि:संदेह बाकी संबंधों पर इसका असर पड़ेगा
  • दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि बहु ध्रुवीय एशिया इसका एक महत्वपूर्ण परिणाम है। 
  • हर देश के अपने अपने हित, चिंताएं एवं प्राथमिकताएं होंगी लेकिन संवेदनाएं एकतरफा नहीं हो सकतीं। अंतत: बड़े देशों के बीच संबंध की प्रकृति पारस्परिक होती है। 
  • उभरती हुई शक्तियां होने के नाते प्रत्येक देश की अपनी आकांक्षाएं होती हैं और इन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता
  • यह समझना होगा कि मतभेद हमेशा रहेंगे लेकिन उनका प्रबंधन हमारे संबंधों के लिये जरूरी है। 
  • यह समझना होगा कि भारत और चीन जैसे सभ्यता से जुड़े देशों को हमेशा दीर्घकालिक नजरिया रखना होगा

 


प्रमुख खबरें

Mehbooba Mufti को मत मांगने के लिए बच्ची का इस्तेमाल करने पर कारण बताओ नोटिस जारी

BSF के जवान ने अज्ञात कारणों के चलते BSF चौकी परिसर में फाँसी लगाकर की आत्महत्या

SP ने आतंकवादियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की कोशिश की, राम का अपमान किया: Adityanath

तापीय बिजली संयंत्रों के पास मानक के मुकाबले 68 प्रतिशत कोयले का भंडार: सरकारी आंकड़ा