By अभिनय आकाश | Jul 25, 2020
साल 2018, दिसंबर का महीना और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव के नतीजा आने के इंतजार में सभी लोग थे। तभी देश में एक इस्तीफे हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई में हुआ। उर्जित पटेल ने अपने कार्यकाल समाप्त होने से आठ महीने पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के कारण में उन्होंने बस इतना कहा कि उनकी निजी वजहे हैं औऱ आरबीआई का गवर्नर होना उनके लिए सम्मान की बात थी। उसी आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल की एक किताब Overdraft — saving the Indian saver आई है। जिसमें कई खुलासे किए हैं और सरकार से नाराजगी का इशारा भी किया है। ये उस समय की बात है जब पीयूष गोयल को कुछ वक्त के लिए वित्त मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। ये वक्त था मई 2018 से लेकर अगस्त 2018 के बीच का।
पटेल ने अपनी किताब में किसी का नाम तो नहीं लिखा है। लेकिन उन्होंने कहा है कि 2018 के मध्य में दिवालिया मामलों के लिए नरमी वाले फैसले लिए गए, जब अधिकतर कामों के लिए वित्त मंत्री और उर्जित पटेल मामलों से जुड़ी बातों को लेकर एक ही लेवल पर थे। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार मई 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली दिवालिया कानून का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन बीमारी की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्री का कार्यभार सौंप दिया गया। 2018 में पीयूष गोयल ने मीडिया से बात करते हुए कहा सर्कुलर में नरमी लाने की बात कही और बोले कि किसी भी लोन को 90 दिनों के बाद एनपीए नहीं कहा जा सकता। उर्जित पटेल के कार्यकाल के दौरान करीब 10 लाख करोड़ रुपये के बैड लोन की रिकवरी की गई। पटेल ने अपनी किताब में लिखा है कि लगातार निगरानी होती रहनी चाहिए। बता दें कि उर्जित पटेल ने अपने पद से 8 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वक्त समय से आरबीआई और सरकार के बीत तल्खी की खबरें लगातार आ रही थी। कैश रिजर्व, छोटे उद्दोगों को लोन देने का मसला, आरएसएस के चिंतक एस गुरुमूर्ति को बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में जगह जैसी वजहों को उस वक्त उर्जित पटले के इस्तीफे की वजहें के तौर पर विश्लेषकों ने अपने-अपने आधार पर अनुमानित किया था।