कांटो भरी राह पर चलकर कमल का फूल उखाड़ने की कोशिश, कांग्रेस का ट्राई, टेस्टेड 'प्रियंका' फॉर्मूला हुआ फेल

By अभिनय आकाश | Mar 10, 2022

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सात चरण में 403 सीटों पर मतगणना जारी है। चुनावी नतीजों के शुरुआती रूझानों में बीजेपी एक बार फिर सूबे में सरकार बनाती दिख रही है। वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सूबे में इस बार भी कोई खास प्रदर्शन करती नहीं नजर आ रही है। जनवरी 2019 में जब प्रियंका गांधी वाड्रा को लोकसभा चुनाव के महीनों पहले उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था, तो विचार यह था कि लोगों से उनका जुड़ाव अच्छा रहेगा। ऐसा कहा जाता था कि वह एक स्वाभाविक वक्ता, सहज, करिश्माई व्यक्तित्व की वजह से मतदाताओं से जुड़ने की क्षमता रखती हैं। 

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करीब तीन चार महीने के भीतर ही सारी  बातें मिथ्या साबित हुई।  हिंदी भाषी राज्य में आम चुनावों में उनकी पार्टी की हार हुई थी। यहां तक ​​कि उनके भाई राहुल गांधी को भी अमेठी की अपनी परंपरागत सीट तक गंवानी पड़ गई। दो साल बाद वाड्रा फिर से अप्रभावी साबित हुई हैं। कांग्रेस आज चाहे कुछ भी कहे  कि पार्टी प्रियंका वाड्रा के आक्रामक महिला-केंद्रित अभियान लड़की हूं लड़ सकती हूं की वजह से अपनी जमीन पर मजबूती के बीज बो दिए हैं और दो साल या पांच साल बाद इसकी फसट काटी जाएगी। लेकिन शाश्वत सत्य ये है कि पार्टी का इस बार का प्रदर्शन, साल 2017 में 7 सीटों के उसके सबसे खराब प्रदर्शन से भी नीचे है। 

रैलियों और रोड शो के मामले में सबसे आगे

प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी में कांग्रेस की खोई जमीन को वापस दिलाने के लिए जमकर पसीना बहासा और चुनावी सभा करने के मामले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से भी आगे रहीं। प्रियंका गांधी ने यूपी में कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो किए। वहीं महंत योगी आदित्यनाथ ने 203 रैलियों और रोड शो के जरिये जनता से रूबरू हुए। बीजेपी को चुनाव में बुरी तरह पराजित करने के दावे करने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 131 रैलियों और रोड शो किए।  

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