अगर आप डायबिटीज़ के मरीज़ हैं तो हो जाएं सावधान, खतरनाक है रात में BP का बढ़ना

By Saheen khan | Oct 08, 2021

नयी दिल्ली। अपने देखा होगा कि अक्सर सोते समय हाई ब्लड प्रेशर और लॉ ब्लड प्रेशर की समस्या लोगों को घेर लेती है। ऐसे कई मामले डॉक्टर्स अक्सर बता हैं कि नींद के दौरान लोगों का ब्लड प्रेशर अचानक से धीमा और तेज़ हो जाता है। लेकिन अगर आप डायबिटीज़ यानी मधुमेह के मरीज़ हैं तो ये अपके लिए घातक साबित हो सकता है। आपको बता दें मधुमेह के मरीज़ों में सोते वक्त लॉ ब्लड प्रेशर की तुलना में हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों के लिए ज्यादा जोखिम होता है।

 

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नींद के दौरान  BP का बढ़ना हो सकता है खतरनाक  

आप मधुमेह के मरीज़ हैं तो, आपको जानना चाहिए कि डायबिटीज के मरीज़ों में ब्लड प्रेशर का बढ़ना जानलेवा साबित हो सकता है। ज़ी न्यूज़ की खबर की रिपोर्ट के अनुसार, एक स्टडी के हवाले से बताएं तो, टाइप-1 और टाइप 2 वाले मरीज जिनका BP रात में अचानक बढ़ जाता है दरअसल उनमें मरने का जोखिम ज्यादा होता है। हालांकि लॉ ब्लड प्रेशर वालों के लिए ये इतना खतरनाक नहीं होता है।

 

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रात में बीपी का बढ़ना खतरनाक क्यों ?

मधुमेह के मरीज़ों के लिए-टाइप-1 और टाइप 2 में जरूरी है कि उनका ब्लड प्रेशर लेवल हमेशा कंट्रोल में रहे। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के हाइपरटेंशन साइंटिफिक में हाल छपी एक स्टडी के मुताबिक, टाइप-1 या टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों को जिनका बीपी रात में सोते समय बढ़ जाता है, उन्हें सावधान रहना चाहिए। रात में बढ़ा हुआ बीपी उन लोगों के लिए लिए खतरनाक हो सकता है।


वैज्ञानिकों ने इस स्टडी को 21 साल के अध्ययन के बेस्ड पर बताया है कि नींद के दौरान बीपी बढ़ने से उन मरीज़ों में ज्यादा खतरा होता है जो डायबिटीज़ के मरीज़ होता है। और उनमें दूसरे मरीज़ों की अपेक्षा ज्यादा खतरा बना रहता है। जिनका बीपी स्थिर या कम रहत है उनके लिए ये बड़ा खतरा नहीं है। नींद के दौरान Blood Pressure सामान्य रूप से कम हो जाता है, लेकिन अगर रात में BP कम नहीं होता, तो इसे नॉन-डिपिंग कहते हैं। वहीं अगर रात में BP बढ़ने लगे, तो इस स्थिति को रिवर्स डिपिंग कहते हैं। स्टडी में सामने आया है कि टाइप-1 या टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में हर 10 में से 1 व्यक्ति को रिवर्स डिपिंग की समस्या हो सकती है। 

 

मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है

स्टडी में ये पाया गया कि डिपर्स की तुलना में रिवर्स डिपर्स वाले लोगों में जीने की संभावना 2.5 साल कम थी, जबकि नॉन-डिपर्स में जीने की संभावना 1.1 साल तक कम देखी गई।



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