By अनन्या मिश्रा | Aug 16, 2025
आज ही के दिन यानी की 16 अगस्त को भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक रामकृष्ण परमहंस ने अपनी देह त्याग दी थी। वह मां काली के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था रखते थे। उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। रामकृष्ण परमहंस ने ईश्वर के दर्शन के लिए कम उम्र से ही कठोर साधना और भक्ति करनी शुरूकर दी थी। बताया जाता है कि उनको मां काली के साक्षात् दर्शन भी हुए थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
बंगाल के कामारपुकुर गांव में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष में द्वितीय तिथि को 18 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। उनके पिता के देहांत के बाद 12 साल की उम्र में गदाधर चट्टोपाध्याय ने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। हालांकि कुशाग्र बुद्धि होने की वजह से गदाधर चट्टोपाध्याय ने रामायण, महाभारत, पुराण और भगवद् गीता कंठस्थ हो गई थी।
बता दें कि रामकृष्ण परमहंस जब 6-7 साल के थे। तब उनको आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। एक दिन सुबह के समय वह धान की संकरी पगडंडियों पर चावल के मुरमुरे खाते हुए जा रहे थे। उसी समय मौसम ऐसा हो गया, जैसे घनघोर वर्षा होने वाली है। तभी उन्होंने देखा कि बादलों की चेतावनी के खिलाफ सारस पक्षी का एक झुंड भी उड़ान भर रहा था। उस प्राकृतिक मनमोहक दृश्य में में रामकृष्ण परमहंस की सारी चेतना समा गई और उनको खुद की कोई सुधबुध नहीं रही और अचेत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस का यह पहला आध्यात्मिक अनुभव था। जिससे उनके आगे की आध्यात्मिक दिशा तय हुई। इस तरह से कम उम्र में ही रामकृष्ण परमहंस का झुकाव धार्मिकता और आध्यात्म की ओर हुआ।
महज 9 साल की उम्र में रामकृष्ण परमहंस का जनेऊ संस्कार हुआ था। इसके बाद वह धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ करने व कराने के योग्य हो गए थे। रानी रासमणि द्वारा कोलकाता के बैरकपुर में हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया गया। इस मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी रामकृष्ण के परिवार को मिली थी। इस तरह से रामकृष्ण परमहंस भी मां काली की सेवा करने लगे और साल 1856 में उनको इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह मां काली की साधना में पूरी तरह से रम गए। माना जाता है के रामकृष्ण परमहंस को मां काली के दर्शन भी हुए थे।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में स्वामी रामकृष्ण समाधि की स्थिति में रहने लगे थे। उनके गले में कैंसर बन गया था और डॉक्टरों ने उनको समाधि लेने से मना किया था। लेकिन रामकृष्ण परमहंस अपना इलाज नहीं करवाना चाहते थे। इलाज के बाद भी लगातार उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था। वहीं 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस ने अंतिम सांस ली।