इन वजहों से देश की आर्थिक हालात में आई है सुस्ती

By मंगलेश सोनी | Oct 09, 2019

देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। अर्थव्यवस्था के तमाम इंडीकेटर यही संकेत काफ़ी समय से देते रहे हैं, हालाँकि सरकार इसे लेकर तरह तरह के प्रयास करने में लगी हुई है। आइये हम जानते है कि मंदी के आने के आखिर क्या कारण रहे। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था कई सेक्टर पर आधारित रहती है। ऑटो मोबाइल, पॉवर, रियल स्टेट, एग्रीकल्चर, कमोडिटी, सेंसेक्स, आदि। किन्तु भारत में सबसे अधिक प्रभावित करने वाला सेक्टर कृषि है, इस वर्ष की वर्षा और बाढ़ का अनुमान लगाते हुए ऐसा लगता तो नही है कि मंदी का यह समय जल्दी जाने वाला है, क्योंकि खेतों में लहलहाती फसलें ही तय करती है कि व्यापार चलेगा या नही, गाड़ियां बिकेंगी या नही, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक समान, आदि पर कितना खर्च होगा। इसी को देखते हुए आने वाले समय में भी बाजार में मंदी ही रहने वाली है ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि बाढ़ और अत्यधिक वर्षा के कारण देश के अधिकतर लोगों की फसलें खराब हो गई। घर गृहस्ती बर्बाद हो गई। कई लोग तो खाने के अन्न के लिए तरस गए। ऐसे समय में मंदी का यह दौर जल्दी जाता प्रतीत नही हो रहा है। हां इतना अवश्य है कि आने वाले 1 वर्ष में यह स्थिति बदल भी सकती है। अगले वर्ष तक किसान और छोटे मजदूरों की स्थिति में सुधार के साथ ही व्यापार भी बढ़ेगा।

 

यदि हम ऑटोमोबाइल सेक्टर की बात करें तो गाड़ियों की बिक्री गिरी है जो अर्थव्यवस्था में मंदी का एक और संकेत है। ताज़ा रिपोर्टों के मुताबिक़, मोटरगाड़ी उद्योग की हालत इतनी बुरी है कि पिछले दो साल में गाड़ी बेचने वाले सेक्टर को लगभग 2100 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है। इस दौरान 350 से ज़्यादा डीलरों को अपना कामकाज बंद कर देना पड़ा है और कम से कम 4000 लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान निसान मोटर ने 38 तो हुंदे ने 23 डीलर बंद कर दिए। होंडा, मारुति, महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स के डीलर भी कामकाज समेटने पर मजबूर हुए। मोटरगाड़ी बिक्री में कमी से यह संकेत मिलता है कि लोगों के पास गाड़ी खरीदने लायक पैसे नहीं है, यानी उनकी क्रय शक्ति घटी है। क्रय शक्ति में गिरावट से यह साफ़ होता है अर्थव्यवस्था में मंदी है। मोटरगाड़ी बिक्री में गिरावट, ऑटो मोबाइल सेक्टर में कार्य करने वाली बड़ी कंपनियों की दूरदृष्टि ना होना इसका प्रमुख कारण है। कंपनियां हर वर्ष अपना एक लक्ष्य लेकर कार्य करती है, जिसे हर वर्ष बढ़ाने का प्रयास होता है। मारुति ने ही पिछले वर्ष के अपने टारगेट को 25% बढ़ाकर इस वर्ष का टारगेट तय किया था। लगभग इसी तरह से सभी बड़ी कंपनियां काम करती है। किंतु यह रणनीति इस वर्ष अनुपयुक्त सिद्ध हुई।

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आम जन की क्रय क्षमता घटने के कारण गाड़ियों की बिक्री कम हुई, जिससे अतिरिक्त स्टॉक का बोझ कंपनियों पर आ गया। उत्पादन को रोकना पड़ा। जिसके बाद यह चिंतन शुरू हुआ। जिसे अधिक उत्पादन के पहले ही सोचा जाना चाहिए था। दैनिक दिनचर्या में बढ़ते खर्च ईएमआई की जीवन शैली का दबाव अब लोगों में दिखाई देने लगा है। इनमें कई मामलों में अपने स्तर को पड़ोसी या समकक्ष अधिकारी से उच्च दिखाने के लिए भी अक्सर अधिक खर्च करने वाली मानसिकता बन जाती है। जो परिवार के बोझ को बढ़ाती है कम नही करती। किसी उलझन में यदि नोकरी छूट जाती है तब यही किस्तें हमारी आफत बन जाती है जीवन नरक के समान लगने लगता है। आर्थिक मंदी के मुख्यतः निम्न कारण माने जा रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपए के स्तर का नीचे आना। डॉलर के मुकाबले रुपया 70 के आंकड़े को पार कर 72 पर पहुंच गया है। रुपए की घटती कीमत से अर्थव्यवस्था को संभालने में परेशानी आ रही हैं।  चीन और अमेरिका के ट्रेड वार ने अर्थव्यवस्था को आर्थिक मंदी की तरफ धकेल दिया है। दुनिया के ये दो बड़े देश आपस मे उलझ कर व्यापार को संघर्ष की स्थिति में ले जा रहे है, जिससे कम मूल्य की वस्तु का अधिक मूल्य चुकने के कारण व्यापार कमजोर है।

 

ईरान पर प्रतिबंध व अन्य कई कारणों से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल लगातार ऊंची कीमत पर जा रहा है। इससे उत्पादन की कीमत बढ़ रही हैं।

 

वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा बैंकों को राहत देने व ब्याज दर कम करने के कारण देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा है, पिछले कई दशक से सरकार लगातार राजकोषीय घाटे को घटाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इससे सरकार पर लगातार कर्ज बढ़ रहा है। आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से विदेशी मुद्रा के कोष में कमी आई है। वैश्विक स्तर पर आई इस आर्थिक मंदी का प्रभाव दिख रहा है। इन सब समस्याओं से निपटने के लिए सरकार बेहतर तरीके व रणनीति से काम कर रही है। किंतु कई मामलों में सरकार पर भी अर्थव्यवस्था निर्भर नही। जैसे ऑटोमोबाइल सेक्टर में आई मंदी बड़ी कंपनियों की कमजोर रणनीति व दूरदृष्टि के कारण अधिक उत्पादन इसका कारण रहा। सरकार ने व्यापार में मुद्रा की द्रव्यता बढाने के लिए कई छोटे बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया है, विलय होने के कारण अब सही व्यक्ति तक मुद्रा लोन व पैसा पहुँच सकेगा, इससे व्यापार व अर्थव्यवस्था को थोड़ी राहत मिली है, सरकार द्वारा कर्ज की दरों में कमी के कारण भी बाजार में रियल स्टेट व कंस्ट्रक्शन सेक्टर में थोड़ा सहयोग मिलेगा। यह हाथों हाथ नही होगा, कुछ निर्णयों के परिणाम दूरगामी होते है, बैंकों के विलय का यह दूरगामी निर्णय है जो अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा।

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सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री आवास योजना जिसमें हजारों घर बने इसकी सामग्री और निर्माण से कई लोगों को रोजगार मिला। स्वच्छता अभियान में बनी लाखों शौचालय से भी बाजार से करोड़ों का व्यापार हुआ। प्रधानमंत्री सड़क निर्माण योजना के अंतर्गत भी लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है, आदि कई महत्वपूर्ण योजनाओं को निरन्तर जारी रखने से भी आम जन को अभी अर्थिक मंदी का उतना अनुभव नही हुआ जितना कि बड़े उद्योगपति कर रहे है। क्योंकि इन योजनाओं से जो रोजगार, नोकरी, व्यवसाय लोगों को मिला है उससे बहुत कुछ समस्याएं हल हुई है। प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना से लाखों युवाओं ने अपना स्वयं का उद्यम स्थापित किया, साथ ही वे कई लोगों को रोजगार दे रहे है।

 

मंगलेश सोनी

 

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