Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत से जीवन होता है सुखमय

By प्रज्ञा पाण्डेय | May 15, 2025

एकदंत संकष्टी चतुर्थी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश की पूजा के लिए शुभ दिन है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा करने से जीवन में लाभ मिलता है तो आइए हम आपको एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

 

जानें एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, जो भगवान गणेश के अनेक रूपों में से एक ‘एकदंत’ को समर्पित होते हैं। इस दिन व्रत रखने वालों को जीवन की परेशानियों और विघ्नों से छुटकारा प्राप्त होता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है और उनके एकदंत स्वरूप की पूजा विशेष रूप से इस दिन की जाती है। कई महिलाएं यह व्रत अपनी संतान की दीर्घायु और सुरक्षा के लिए रखती हैं, जबकि कुछ दंपत्ति इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से भी करते हैं। इस साल एकदंत संकष्टी चतुर्थी 16 मई को मनाई जाएगी।

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हिंदू धर्म में किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य की शुरुआत करने से पहले देवों के देव महादेव और माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि आती है। इसी तरह पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। पंडितों के अनुसार इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ बप्पा की पूजा करने और व्रत रखने से सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। 


संकष्टी चतुर्थी एक मासिक उत्सव है, जिसे हर माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है। एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा का अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। ऐसे में पंचांग के अनुसार, इस दिन पर चन्द्रोदय रात 10 बजकर 39 मिनट पर होगा।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान पूजा में चढ़ाएं ये चीजें

पंडितों के अनुसार एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजा के दौरान आप गणेश जी को जनेऊ, चंदन, दूर्वा, अक्षत, धूप, दीप, फूल और फल अर्पित कर सकते हैं। इन सभी चीजों को अर्पित करने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसी के साथ गणेश जी को हरे रंग का वस्त्र अर्पित करना भी काफी शुभ माना जाता है, क्योंकि गणपति जी को हरा रंग बेहद प्रिय है। आप एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी को मोकद के साथ-साथ, लड्डूओं का भी भोग लगा सकते हैं, जो गणेश जी को प्रिय माने गए हैं। इसी के साथ आप संकष्टी चतुर्थी के दिन मालपुए का भोग भी लगा सकते हैं। मान्यता है कि मालपुए का भोग लगाने से बप्पा जल्दी प्रसन्न होते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत में दूर्वा अर्पित करने का है खास महत्व 

पंडितों के अनुसार एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजा में गणेश जी को दूर्वा जरूर अर्पित करें। इसके लिए दूर्वा को सबसे पहले साफ पानी से धो लें, इसके बाद दूर्वा का जोड़ा बनाकर गणेश जी को 21 दूर्वा अर्पित करें। ध्यान रखें कि दूर्वा किसी मंदिर, बगीचे या साफ स्थान पर उगी हुई होनी चाहिए। कभी भी गंदे स्थान या गंदे पानी में उगी हुई दुर्वा बप्पा को न चढ़ाएं। आप दूर्वा अर्पित करते समय इस दौरान इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा

पंडितों के अनुसार एकदंत संकष्टी चतुर्थी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है, इसलिए इस दिन भगवान गणेश जी का जलाभिषेक करें। गणेश भगवान को पुष्प, फल चढ़ाएं और पीला चंदन लगाएं। तिल या बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। एकदन्त संकष्टी चतुर्थी कथा का पाठ करें। ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें। पूरी श्रद्धा के साथ गणेश जी की आरती करें।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी, सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को न्योता नहीं है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।


विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता है।


इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर का ध्यान रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।


अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले. सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब तो नारदजी ने कहा कि आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?


पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया. खाती अपना कार्य करने के पहले श्री गणेशाय नम: कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है. हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 16 मई को सुबह 04 बजकर 02 मिनट पर होगा और इसका समापन 17 मई को सुबह 05 बजकर 13 मिनट होगा। इस प्रकार से एकदंत संकष्टी चतुर्थी का पर्व 16 मई को मनाया जाएगा।


एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व 

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने अपने परशु से गणेश पर प्रहार किया था, जिससे उनका एक दांत टूट गया था इसलिए गणपति एकदंत कहा जाता है। एकदंत का अर्थ होता है एक दांत वाला। एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत पर पूजा और व्रत करने से सारे संकट दूर होते हैं। माताएं इस दिन व्रत रखकर संतान की लंबी आयु और घर की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और इस संकष्टी व्रत से सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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