भारत रत्न डॉ. विश्वेश्वरैया के चार लाभकारी नियम

By मृत्युंजय दीक्षित | Sep 15, 2016

भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित व नियमों की रक्षा का पालन करने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर 1861 को कर्नाटक की राजधनी बंगलुरू से 38 मील दूर कोलार जिले के चिकबतलिपुर तालुका के एक छोटे से गांव मदनहल्ली में हुआ था। पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री व माता का नाम वेंकचंपा था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी कि वे अपने पुत्र को मनोनुकूल शिक्षा दिलवा सकें। बालक विश्वेश्वरैया ने देश की परम्पराओं और सभ्यता के प्रति आदर भाव और श्रद्धा के संस्कार ग्रहण किये। परिवार की आर्थिक कठिनाइयों से हतोत्साहित न होकर हाईस्कूल की शिक्षा के लिए बंगलौर चले गये और 1881 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्यालय के प्रधानाचार्य की अनुकम्पा के चलते विज्ञान महाविद्यालय में आपका प्रवेश हो गया। छात्रवृत्ति के माध्यम से आपकी पढ़ाई पूरी हुई व 1883 में तत्कालीन बंबई में यंत्रशास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।


तत्कालीन बंबई में सहायक अभियंता के पद पर रहते हुए अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन दिनों सिंध प्रांत जोकि बंबई का भूभाग था, जल समस्या से त्रस्त था। यह कार्य विश्वेश्वरैया को सौंपा गया। उन्होंने सवखर बांध का निर्माण करके सिंध प्रांत के लिये जलकल की समुचित व्यवस्था की। इसी प्रकार बंगलौर, पूना, नासिक, मैसूर, कराची, बड़ौदा, ग्वलियार, इंदौर, कोल्हापुर, नागपुर, धारताड व बीजापुर शहरों की समस्या का निवारण करने में सफलता प्राप्त की जिसके कारण वे काफी लोकप्रिय हो गये थे।

किन्तु सरकारी नौकरी करने में उनका अधिक दिनों तक मन नहीं लगा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी तथा विदेश चले गये। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मैसूर राज्य में कावेरी नदी पर कृष्णराज सागर बांध का निर्माण करना था। इस बांध के निर्माण से मैसूर प्रांत का परिवर्तन हो गया। सबसे पहले जलशक्ति से विद्युत उत्पादन का कार्य चूंकि इस बांध से प्रारम्भ हुआ जिसके कारण पूरा देश आश्चर्य चकित हो गया। मैसूर राज्य के ही मदावती कारखाने की दशा भी आपने ही ठीक की।

 

विश्वेश्वरैया ने अपने जीवन में जितना कार्य किया उतना सम्भवतः 100 इंजीनियर भी मिलकर न कर सके। नियोजित अर्थव्यवस्था विषय पर उन्होंने पुस्तक भी लिखी जोकि 1934 में प्रकाशित हुई। राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की ओर से 1955 में उन्हें भारत रत्न अलंकरण से सुशोभित किया गया। उनसे जीवन का रहस्य जब पूछा गया तो उन्होंने कहा, "सब कार्य समय पर करना। मैं जीवन के सभी काम समय पर करता हूं। जिसमें भोजन और निद्रा भी शामिल है, साथ ही नियमित सैर करता हूं व क्रोध से कोसों दूर रहता हूं।" उनको कार्य करने की लगन थी। उनको आधुनिक मैसूर का निर्माता भी कहा जाता है। किसी भी प्रकार की बाध उनको कार्य करने से न रोक सकी।

 

डॉ. विश्वेश्वरैया कठोर अनुशासन, श्रम की प्रतिमूर्ति के साथ ही प्रतिभावान भी थे। उन्होंने भारतवासियों के आचरण के लिये चार नियम भी बनाये थे।

 

एक− डटकर मेहनत करो।
दो− नियमानुसार व पूर्व नियोजित ढंग से कार्य।
तीन− कार्यकुशलता बढ़ाने का प्रयास।
चार− विनय और सेवा भाव।

 

बहुत सम्मान और पुरूषार्थ के साथ 100 वर्ष की आयु व्यतीत करने के पश्चात बंगलौर में 14 अप्रैल सन 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया।

 

मृत्युंजय दीक्षित

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