गोडसे की वो इच्छा जिसकी चाह में 71 साल बाद भी अस्थियां रखी हैं सुरक्षित

By अभिनय आकाश | Nov 29, 2019

महात्मा गांधी जिनमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मार्टिन लूथर किंग का अक्स दिखता है। महात्मा गांधी जिनके बुनियादी सिद्धांतों से आरएसएस के विरोध के बावजूद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं। दुनिया भर में गांधी के सिद्धांतो का डंका बज रहा है। वसुधेव कुटुंब कम सनातनी वाली संस्कृति के देश में सबको सम्मति का संदेश देने वाले बापू। अहिंसा और सत्याग्रह से देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी। एक हत्यारे की तीन गोलियों ने 71 साल पहले ही महात्मा गांधी के तन को छलनी कर दिया था। लेकिन बापू के विचारों को मारने की ताकत उन गोलियों में नहीं थी। गांधी का नाम इस देश से अलग करने की ताप किसी भी हत्यारे में नहीं थी। लेकिन  21 वीं सदी में महात्मा गांधी के हत्यारे की स्तुति के प्रयास हो रहे हैं। 

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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर के मंच पर जाकर बापू के चरणों में शीश नवाते हैं। इस देश को गांधी का देश बताते हैं। अमेरिका में गांधी को पुष्पांजलि देते हैं। आस्टेलिया में महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण करते हैं। लेकिन यहां भारत में कुछ कथाकथित हिंदुत्व के ठेकेदार बापू के हत्यारे को राष्ट्रभक्त का खिताब देने से बाज नहीं आ रहे हैं। विश्व का कोई ऐसा देश नहीं होगा जिसने गांधी को अपनाकर अपने मुल्क का विकास न किया हो। गांधी की विश्वव्यापी प्रासंगिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार आदि देशों में सैंकड़ों संस्थाएं गांधी सिद्धांत का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। 

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नाथूराम गोडसे को लेकर देश में अलग-अलग विचार धाराएं हैं। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि भरी सभा में महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का बचपन लड़कियों की तरह बीता था। जी हां, आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन ये सच है। नाथूराम गोडसे का असली नाम नथूराम है। उनका परिवार भी उन्हें इसी नाम से बुलाता था। अंग्रेजी में लिखी गई उनके नाम की स्पेलिंग के कारण काफी समय बाद उनका नाम नथूराम से नाथूराम हो गया। इसके पीछे एक लंबी कहानी है। दरअसल नाथूराम के घर में उनसे पहले जितने लड़के पैदा हुए, सभी की अकाल मौत हो जाती थी। इसे देखते हुए जब नथू पैदा हुए तो परिवार ने उन्हें लड़कियों की तरह पाला। उन्हें बकायदा नथ तक पहनाई गई थी। इसी नथ के कारण उनका नाम नथूराम पड़ गया था, जो आगे चलकर अंग्रेजी की स्पेलिंग के कारण नाथूराम हो गया था।

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महात्मा गांधी की हत्या में नाथूराम गोडसे अकेले नहीं थे। दिल्ली के लाल किले में चले मुकदमे में न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई थी। बाक़ी पाँच लोगों विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सज़ा मिली थी। बाद में हाईकोर्ट ने किस्तैया और परचुरे को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था।

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30 जनवरी 1948 की वो तारीख जब 5 बजकर 16 मिनट पर बिरला भवन के पास हमेशा की तरह एक तरफ आभा और दूसरी तरफ मनुबेन का सहारा लिए महात्मा गांधी प्रार्थना के लिए निकले थे। उनके स्टाफ़ के सदस्य गुरबचन सिंह ने घड़ी देखते हुए कहा था, "बापू आज आपको थोड़ी देरी हो गई।" इस पर गांधी ने भागते हुए ही हंसकर जवाब दिया था, "जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है।" इसके दो मिनट बाद ही उनके सामने आ गया नाथूराम गोडसे। उसने पहले मनुबेन को धक्का देकर नीचे गिरा दिया था और नमस्ते बापू कहते हुए महात्मा के सीने में उतार दी तीन गोली। 

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नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे की किताब ‘गांधी वध और मैं’ के अनुसार जब गोडसे संसद मार्ग थाने में बंद थे, तो उन्हें देखने के लिए कई लोग जाते थे। एक बार गांधी जी के बेटे देवदास भी उनसे मिलने जेल पहुंचे थे। गोडसे ने उन्हें सलाखों के अंदर से देखते ही पहचान लिया था। इसके बाद गोडसे ने देवदास गांधी से कहा था कि आप आज मेरे कारण पितृविहीन हो चुके हैं। आप पर और आपके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है उसका मुझे खेद है। लेकिन आप विश्वास करें, 'किसी व्यक्तिगत शत्रुता की वजह से मैंने ऐसा नहीं किया है।' इस मुलाकात के बाद देवदास ने नथूराम को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था 'आपने मेरे पिता की नाशवान देह का ही अंत किया है और कुछ नहीं। इसका ज्ञान आपको एक दिन होगा।

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नाथूराम का शव उनके परिवार को नहीं दिया गया था। अंबाला जेल के अंदर ही अंदर एक गाड़ी में डालकर उनके शव को पास की घग्घर नदी ले जाया गया। वहीं सरकार ने गुपचुप तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। उस वक्त गोडसे के हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता उनके शव के पीछे-पीछे गए थे। उनके शव की अग्नि जब शांत हो गई तो, उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियाँ समाहित कर लीं थीं। उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा गया है। गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा हुआ है। चूंकि गोडसे की एक अंतिम इच्छा थी, इसलिए उनके परिवार ने आज तक उनकी अस्थियों को नदी में नहीं बहाया है। नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर के मुताबिक, नाथूराम गोडसे ने अपनी अंतिम इच्छा के तौर पर अपने परिवार वालों से कहा था कि उनकी अस्थियों को तब तक संभाल कर रखा जाए और जब तक सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में समाहित न हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण न हो जाए। ये सपना पूरा हो जाने के बाद मेरी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित कर दी जाए।

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साल 2017 में महात्मा गांधी का कोई दूसरा हत्यारा भी था? और उन पर तीन नहीं बल्कि चार गोलियां चली थी जैसी थ्योरी के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी। याचिका में अनुरोध किया गया है कि नया जांच आयोग गठित करके गांधी की हत्या के पीछे की बड़ी साजिश का खुलासा किया जाए. याचिका में गांधी की हत्या की जांच के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं जिसमें कहा गया कि क्या यह इतिहास में मामला ढकने की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है और क्या उनकी मौत के लिए विनायक दामोदर सावरकर को जिम्मेदार ठहराने का कोई आधार है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और मोदी सरकार ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ऐसे की भी तरह के जांच का कोई सवाल ही नहीं उठता है। दरअसल, मुंबई के पंकज फणनीस ने अभिनव भारत की तरफ से याचिका दायर की थी। याचिका में महात्मा गांधी की हत्या के पीछे फोर बुलेट थ्योरी दी गई थी। याचिका कर्ता के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा चलाई गई तीन गोलियों से नहीं हुई थी। उनकी मौत उस चौथी गोली से हुई थी जिसे कि अज्ञात शख्स ने चलाया था।  

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नाथूराम गोडसे जिसने महात्मा की हत्या की वो खुद एक हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़ा था। यही वजह है कि समय-समय पर कई हिंदुत्ववादी संगठन सोशल मीडिया पर नाथूराम की देशभरक्ति का ढिढ़ोरा पीटने की कवायदें हुई। फेसबुक पर नाथूराम को देशभक्त बातए जाने वाले पेज चलाए जा रहे हैं।एक नहीं दर्जनों। इससे पहले शिवसेना ने भी नाथूराम गोडसे को देशभर्त बताने की कोशिश की थी। 28 दिसंबर 2010 को शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा गया था कि देश के विभाजन और हजारों हिंदुओं की हत्या से गोडसे का खून उबल रहा था। गोडसे इटली से नहीं आया था। बल्कि वो भारत में पैदा हुआ राष्ट्रभक्त था। कितना अजीब है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं। गांधी के स्वच्छता के संदेश को मिशन के तौर पर देशभर में अपनाने की बातें कर रहे हैं। लेकिन कुछ सिरफिरे गांधी के हत्यारे को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं।