विकास हुए लेकिन धीमी है रफ्तार, 10 सालों में भी नहीं बदला बिहार, अब PK करेंगे बात बिहार की

By अभिनय आकाश | Feb 18, 2020

दिल्ली में केजरीवाल सरकार को प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी कराकर अपनी रणनीति का लोहा मनवा चुके प्रशांत किशोर के जेडीयू से निकाले जाने के बाद बिहार की धरती पर कदम रखने का सबको था इंतजार। जैसा कि वो पहले ही ऐलान कर चुके थे कि 18 फरवरी को पटना में आकर ही अपनी बात रखेंगे। जिसके बाद से ये कयास लगाए जाने लगे थे कि प्रशांत कुछ बड़ा ऐलान कर सकते हैं। अलग गठबंधन बनाने की थ्योरी भी दी जाने लगी। जिस पर हालिया में उप्रेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और शरद यादव की मुलाकात से बल भी मिला। कहा जाने लगा कि बिहार में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने को लेकर महागठबंधन में शामिल सहयोगी दल राजी नहीं हैं और सूबे में नए समीकरण बन सकते हैं। प्रशांत किशोर ने बिहार में पटना में प्रेस कांफ्रेंस की।

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बिहार की सियासत में चारों ओर से की जा रही घेराबंदी को बाद तेजस्वी यादव प्रदेश की यात्रा पर निकलने पर मजबूर हुए और आगामी 23 फरवरी से बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर यात्रा निकालने जा रहे हैं। लेकिन प्रशांत किशोर ने प्रेस कांफ्रेस कर जिस अंदाज में नीतीश को सम्मान के साथ विकास का आइना दिखाया है, उसके बाद से लगने लगा है कि वो उनके खिलाफ वो रणनीति का प्रयोग करने को पूरी तरह से तैयार हैं जिसकी बदौलत उन्होंने 2015 में मोदी-शाह को मात देते हुए नीतीश को सत्ता में पहुंचाया था। 

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राजनीति की बातें करने से इतर प्रशांत ने मूल मुद्दे पर जोर दिया और विकासपुरूष की छवि वाले नीतीश के इस दावे पर सीधा प्रहार किया। प्रशांत ने जिस तरह से एक तरफ नीतीश को पितातुल्य बताते हुए ये साफ कहा कि उनका विरोध नीतीश से नहीं है। वहीं दूसरी तरफ पिछले तेरह-चौदह सालों के उनके शासन पर आंकड़ों के आधार पर सवाल भी उठाए हैं। लालटेन राज का नारा देने वाली नीतीश नीत सरकार को प्रशांत ने उसी मुद्दे पर घेरा और कहा कि बिहार में हर घर में बिजली पहुंची है, लेकिन बिजली खपत में बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। उन्होंने कहा कि देश के लोग 900 केवी बिजली खपत करते हैं लेकिन बिहार में ये आंकड़ा 200 के आसपास है। बिहार को जंगलराज और लालू को बिहार के पिछड़ेपन की वजह बताने वाले नीतीश को पीके ने आज की स्थिति से भी अवगत कराया और कहा कि बिहार में देश के मुकाबले वाहनों का मालिकाना हक एक चौथाई है, साढ़े तीन करोड़ लोग आज भी बिहार में गरीबी में रहते हैं। प्रशांत के कहने का मतलब साफ है कि साहब, आपके दौर में भी स्थितियां कुछ खास नहीं बदली। बिहार में प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार 2005 में 22वें नबंर पर था आज भी 22वें नंबर पर ही है। पीके ने कहा कि शहरीकरण हो या फिर जीडीपी का मुद्दा बिहार आज भी देश का सबसे गरीब राज्य है। प्रशांत किशोर ने तो सीधे-सीधे सारे मुद्दों पर जेडीयू के किसी भी नेता से बहस करने का चैलेंज भी दे दिया।

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प्रशांत किशोर ने ये जता दिया कि बिहार में आगे की राह नीतीश के लिए आसान नहीं होने वाली है। भले ही प्रशांत किशोर ने किसी पार्टी का ऐलान नहीं किया हो लेकिन उन्होंने लोगों के मन की बात जानने का प्लान भी बनाया है। 20 फरवरी से पीके एक कैंपेन लॉन्च करने जा रहे हैं जिसका नाम होगा ‘बात बिहार की’। इस दौरान बिहार को देश के टॉप 10 राज्यों में शामिल करने के लिए चर्चा की जाएगी। साथ ही 800 पंचायतों में से 1000 हजार युवाओं को भी जोड़ा जाएगा। 

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जहां तक बात पीके के सफल होने या नहीं होने की है तो वो तो निकट भविष्य में तय होगा, लेकिन एक बात जरूर है कि प्रशांत ने नीतीश के खिलाफ भी वहीं अंदाज चुना जिससे कभी उन्होंने मोदी-शाह के अपराजय माने जाने वाले अश्वमेघ घोड़े को बिहार में महागठबंधन के असंभव प्रयोग से धूल चटाई थी। साल 2015 के चुनाव में जब भी नरेंद्र मोदी की सभा होने वाली होती थी तो प्रशांत वहां के आसपास ही नीतीश सरकार के कार्यों का बखान करने वाले पोस्टर लगवा देते थे। जिसके बाद मोदी उस पर ही प्रतिक्रिया देने पर मजबूर हो जाते हैं और मूल मुद्दों से दूर। वहीं डीएनए वाले बयान को बिहार की अस्मिता से जोड़ने वाले सफल प्रयोग को पीके ने ट्वीटर पर गुजरात का एकाधिकार नहीं जैसी बातें बोलकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। बहरहाल, जिस तरह से मुद्दे की बात पर राजनीति का एक खाका प्रशांत ने खींचने की कोशिश की है अब देखना ये होगा कि नीतीश उस पर ही चलते हैं या हर बार अपने अलग और अनूठे फैसले से सबको चौंकाने वाले सुशासन बाबू इसका रूख अलग मोड़ देते हैं। 

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