स्वतंत्रता (कविता)

By संतोष उत्सुक | Aug 14, 2018

हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ लेखक संतोष उत्सुक ने स्वतंत्रता नामक कविता में आजादी के विभिन्न आयामों पर दृष्टि डाली है।

 

ग़लत चीज़

होती है स्वतंत्रता 

जो चाहे जब चाहे 

इसका ग़लत फायदा उठाता है

छोटा आदमी, छोटा खेल खेलने को

तैयार होता रह जाता है……

बड़ा आदमी बड़ा खेल, खेल जाता है

सबको उकसाती है स्वतंत्रता 

लुभाती है ......

भरमाती है इतना कि

ज़िंदगी बेशर्म हो जाती है 

बड़े छोटे का फर्क सिमट जाता है

अफसर मंत्री ठेकेदार का अंतर मिट जाता है

बाप बेटे का रिश्ता हिल जाता है

मां बेटी में वक्त ठन जाता है

गुरु शिष्य एक हो लेते हैं

शेर बकरी एक फ्रेम में हँसते हैं......

सच यह भी है कि

मानवीय रिश्ते बोझ हो जाते हैं

अपने ही बच्चे अवांछित

पैसा अतिरिक्त, मगर मन रिक्त

दिशाओं पर संचार छाया मगर

हर एक की ओर से 

समय समाप्ति की घोषणा……

 

स्वतंत्रता 

का रियल्टी शो है यह

इतना स्वतंत्र हो उठा है 

आदमी

जितना कि गधा……।

वह गधा जो सड़क के बीच में

खड़ा है और

पीछे से लगातार, हार्न दे रहे समय के

ट्रक से भी नहीं डरता

 

-संतोष उत्सुक

प्रमुख खबरें

पुलवामा हमले के वक्त Modi फिल्म की शूटिंग करने में व्यस्त थे : Farooq Abdullah

South China Sea में परिचालन संबंधी तैनाती के लिए भारतीय नौसेना के तीन पोत Singapore पहुंचे

China के राष्ट्रपति ने वरिष्ठ राजनयिक Xu Feihong को भारत में अपना नया राजदूत नियुक्त किया

Sikh अलगाववादी नेता की हत्या की कथित साजिश में भारत की जांच के नतीजों का इंतजार : America