केवल 2 मुख्यमंत्री ही पूरा कर पाए हैं अपना कार्यकाल, येदियुरप्पा की राह कितनी आसान?

By अभिनय आकाश | Jul 29, 2019

‘हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं’ साल 1996 में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद पर्याप्त संख्या बल नहीं होने की वजह से भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी ने फ्लोर टेस्ट से पहले भावुक भाषण दिया था यह भाषण कलजिये था। जिसके बाद वह अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपने चले गए थे। उस समय अटल 13 दिन के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने थे। वाजपेयी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस व अन्य पार्टियों के समर्थन से एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे। ठीक 23 साल बाद इतिहास को पीछे छोड़ते हुए एचडी देवगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी के इस्तीफे के बाद बीएस येदियुरप्पा ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार शपथ ली। 15 मई 2018 को कर्नाटक के नतीजे आने के बाद कुछ घंटे का मुख्यमंत्री रहे बीएस येदियुरप्पा ने सदन में बहुमत न साबित कर पाने की वजह से 20 मिनट के भावुक भाषण और फिर से वापस आने की बात के साथ इस्तीफा दिया था। जिसके बाद मई के महीने से जुलाई 2019 तक कलेंडर में तारीख और साल जरूर बदला लेकिन कर्नाटक की सियासत लगातार केंद्रीय राजनीति के गलियारों में सुर्खियां बटोरती रही। कर्नाटक में 14 महीने से चल रहे सियासी ड्रामे का अंतिम सीन भी बेहद नाटकीय और हंगामे से भरा रहा। इसमें सीएम एचडी कुमारस्वामी का भावुक भाषण था, कांग्रेस का बागियों के प्रति गुस्सा दिखा और स्पीकर केआर रमेश कुमार की बेचारगी भी दिखी। जेडीएस-कांग्रेस की सरकार के गिरने के साथ ही राज्य में गठबंधन सरकार के नाकाम होने का अभिशाप भी बरकरार रहा। 

 

लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा ने इससे पहले तीन बार राज्य की सत्ता संभाली है लेकिन तीनों बार वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। साल 2007 में वो 7 दिनों के लिए सीएम बने। दूसरी बार मई 2008 में उन्हें फिर से सीएम बनने का मौका मिला, लेकिन एक बार फिर से तीन साल बाद ही भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें समय से पहले अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। जिसके बाद साल 2018 में वो सिर्फ 48 घंटे के लिए सीएम रहे थे। जिसके बाद 26 जुलाई को एक बार उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल कि क्या पिछले 14 महीने से चल रहे कर्नाटक के सियासी नाटक का अंत हो गया? 

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कर्नाटक के सियासी इतिहास पर गौर करें तो इस प्रदेश में कोई भी गठबंधन सरकार 5 साल का अपना कार्काल पूरा करने में कामयाब नहीं हो पाई है। साल 1983 से लेकर अब तक चार बार कर्नाटक ने गठबंधन सरकार देखी है। सबसे पहली बार 1983 में जनता पार्टी, भाजपा, लेफ्ट व अन्य दलों ने मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन यह सरकार दो साल भी नहीं टिक सकी और महज 1 साल 354 दिन में ही गिर गई। 2004 में कांग्रेस को 65 सीटें मिली थीं, तब भाजपा 79 सीटें पाकर सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन 65 सीटें पानेवाली कांग्रेस ने उस समय 58 सीटें पाने वाली तीसरे नंबर की पार्टी से ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद पर रहने का समझौता कर सत्ता हासिल किया था। लेकिन 20 माह पूरे होते-होते ही कांग्रेस ने उस वक्त जनता दल (एस) के कोटे से मंत्री एस सिद्दारमैया के माध्यम से जेडीएस में ही सेंध लगाना शुरू कर दिया था। उसके बाद तब के उपमुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ 20-20 महीने मुख्यमंत्री रहकर उस विधानसभा का कार्यकाल पूरा करने का समझौता किया था। लेकिन कांग्रेस से धोखा खाए कुमारस्वामी ने भी 20 माह बाद भाजपा को धोखा ही दिया। येदियुरप्पा की बारी आने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ तो लेने दिया, लेकिन सदन में समर्थन देने से कतरा गए और सरकार गिर गई थी। चौथी बार मई 2018 को सबसे कम सीट (37) पाने वाली जेडीएस पार्टी के कुमारस्वामी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस (78) की मदद से मुख्यमंत्री पद बने और सबसे बड़ी पार्टी (104) बनकर भी भाजपा प्रमुख विपक्षी दल बन कर कर्नाटक में रही, लेकिन 23 जुलाई 2019 को उनकी सरकार भी सत्ता से बाहर हो गई।

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कर्नाटक की राजनीति अनूठी है और 1956 में कर्नाटक के बनने से लेकर अब तक इस प्रदेश में केवल 2 मुख्यमंत्री ही 5 सालों का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं। 1972 में डी देवराज ने सत्ता में आने के बाद अपना कार्यकाल पूरा किया था। इसके बाद 2013 में सिद्धारमैया ने पूरे 5 साल सरकार को चलाया था। ऐसे में कर्नाटक के नए स्वामी बने येदियुरप्पा के सामने बहुमत साबित करने के लिए 31 जुलाई तक का वक्त है। तीन विधायकों को स्पीकर आर रमेश कुमार द्वारा अयोग्य घोषित किए जाने के बाद कर्नाटक विधानसभा सदस्यों की संख्या 222 रह गई है। वहीं, बागी 14 विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर द्वारा फैसला सुनाया जाना बाकी है। ऐसे में येदियुरप्पा को बहुमत के लिए 112 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। भाजपा के पास अपने 104 और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। जरूरी है कि 14 विधायक या तो येदियुरप्पा के समर्थन में वोट करें या सदन से अनुपस्थित रहें। इन विधायकों की अनुपस्थिति से बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 105 होगा, जिसे भाजपा आसानी से हासिल कर लेगी।

 

- अभिनय आकाश

 

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