By सुखी भारती | Apr 19, 2021
जिस देश में कन्या का पूजन भी हो और उसे गर्भ में मारा भी जाता हो, ऐसे लोगों की मानसिक्ता को आप किस श्रेणी में रखेंगे? विडंबना तो यह है कि यह कन्या पूजन करने वाले देश भारत का ही एक क्रूर चेहरा है। हमारे यहाँ जितनी श्रद्धा व सम्मान से कन्या का पूजन किया जाता है, उससे भी कहीं ज्यादा क्रूरता से उसको मारा भी जाता है। आज कहने को तो सब कहते हैं कि पुत्रा और पुत्री, स्त्री-पुरुष में कोई फर्क नहीं परंतु सच्चाई कुछ और है। हम मनसा देवी, चिंतपुरनी की पूजा तो करते हैं, लेकिन जब यही देवी हमारे घर बेटी रूप में जन्म लेने लगती है तो अपनी देवी रूपी कन्या के प्रति हमारे मन की सारी भावना काफर हो जाती है। हम इसे चिंतपुरनी की कृपा नहीं अपितु अपनी चिंता मान लेते हैं। दूसरा जिन लड़कों को पाने के लिए कन्या भ्रूण हत्या की जाती है, क्या कभी उन लड़कों की कहीं पूजा होती देखी है? बडे़ शर्म की बात है, कि जिस कन्या को घर बुलाकर उसकी पूजा करते हैं, जब उसकी आहट खुद के द्वार पर होती है तो उसे आने से पहले ही मसल दिया जाता है। आज का पाखंडी समाज अपनी ही जननी का समूल नाश करने पर आमदा है।
हमारे शास्त्रों का कथन है कि पुत्र व पुत्री दोनों ही नरक से तारने वाले होते हैं। अगर पुत्रा नरक से तारने वाला है तो पुत्री नरक से तारने वाली है। हैरानी की बात है कि हम चीटियों, को तो दाना डालते हैं लेकिन भ्रूण हत्या भी धड़ल्ले से करते हैं। आज समाज का अध्कितर हिस्सा पुत्रा मोह का शिकार है। अगर घर में कन्या का जन्म होता है तो उसे पत्थर कहा जाता है। अगर बेटा जन्म ले तो मिठाईयां, बधईयां एवं बेटी जन्में तो रूसवाईयां।
इन्सानियत के स्तर पर खड़े होकर सोचा जाए तो प्रमात्मा ने सब जीवों को समान रूप से जीने का अधिकार प्रदान किया है। बिना किसी गलती के किसी की हत्या करनी राक्षसी प्रवृत्ति का द्योतक है। लेकिन लगता है आज मानव के अंदर से, दया का स्रोत ही सूख गया है। उसकी इस मनोवृति को पोषित करने में वैज्ञानिक खोजों का गलत इस्तेमाल हो रहा है।
भारत देश की भूमि जहाँ दिवंगत पित्रों को भी भोजन-पानी दिया जाता है। वहीं पर किसी जिन्दा जान को मौत के घाट उतारने का कुकर्म हमारी संस्कृति का मुँह चिढ़ा रहा है। भ्रूण परीक्षण की शुरूआत आज से तीन दशक पहले हुई थी। जिसे अमीनो सिंबोसिस कहा जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रहे भ्रूण के, क्रोमोसोम संबंधी जानकारी प्राप्त करना था। ताकि इनके अंदर, किसी भी प्रकार की विकृति, जो गर्भास्थ शिशु की मानसिक, शारीरिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो, उसे सही समय पर खोजकर उसका इलाज करना था। लेकिन इस तकनीक का स्याह पक्ष यह सामने आया कि ज्यादातर माता-पिता, बालक के स्वास्थ्य की चिंता छोड़कर भ्रूण परीक्षण केन्द्रों पर सिर्पफ यह पता लगाने के लिए जाने लगे कि गर्भ में पल रहा भ्रूण लड़का है या लड़की। और लड़की होने की स्थिति में उस भ्रूण से छुटकारा पा लिया जाता है। ममता व दया का सागर मानी जाती माँ भी उस चीख को अनसुना कर देती है। हमारे मनीषियों ने माँ को ईश्वर का दूसरा रूप कहा है। जिस प्रकार ईश्वर हमारे ऊपर बिना किसी स्वार्थ के परोपकार करता है, ठीक वैसे ही माता भी अपने सुख की परवाह किए बिना हमारे ऊपर अपनी ममता, दुलार, स्नेह, सुख, आराम सब न्यौछावर करती है। हैरानी की बात है कि बच्चे की परवरिश के लिए अपना सर्वस्व लुटाने वाली माँ, अपने अजन्मे बच्चे को मारने की इजाजत कैसे दे देती है? यद्यपि हमारे महापुरुषों ने भ्रूण हत्या को एक जघन्य अपराध कहा है-
यत्पापं ब्रहमहत्यायां द्विगुणं गर्भपातने।
प्रायश्चितं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते।।
जो पाप ब्रह्म हत्या से लगता है, उससे दोगुना पाप गर्भपात करवाने से लगता है एवं इस अपराध के शमन हेतु कोई पश्चाताप नहीं है। जैन दर्शन में भ्रूण हत्या को नरक की गति पाने का कारक माना गया है। अमेरिका में सन् 1984 में छंजपवदंस त्पहीज जव स्पमि ब्वदअमदजपवद नामकएक सम्मेलन हुआ। जिसके अंदर अंदर क्वबजवत ठमतदंतक छंजींदेवद ने एक अल्ट्रासाउंड फिल्म दिखाई। जिसके अंदर कन्या भ्रूण की एक मूक चीख दिल दहलाने वाली थी। उसके अंदर दिखाया गया था कि 10-12 हफ्तों के भ्रूण की ध्ड़कन जब 120 प्रति मिनट की गति से चलती है तो वह बहुत ही चुस्त होती है, वह करवट बदलती, अंगूठा चूसती दिखाई देती है। परंतु ज्यों की पहला औजार गर्भ की दीवार को छूता है तो बच्ची डर से कांपने लगती है व सिकुड़ना शुरू कर देती है। औजार के स्पर्श से उसे आभास हो जाता है कि अब मेरे ऊपर हमला होने वाला है। वह अपने बचाव हेतु बहुत हाथ पैर मारती है।
सबसे पहले उसके पैरों व कमर पर हमला किया जाता है। इन्हें गाजर मूली की तरह काट दिया जाता है। कन्या दर्द से तड़प उठती है। अंत में उसकी खोपड़ी को तोड़ा जाता है। वह अपने बचाव हेतु अपना सिर पटकने की कोशिश करती है व मुँह खोलकर चीखने का प्रयास करती है। परंतु वह खुद को नहीं बचा पाती व एक मूक चीख के साथ उसके प्राणों का अंत हो जाता है। जिस डॉकटर ने यह पिफल्म बनवाई परंतु जब उसने भ्रूण के साथ होती वीभत्सा को पर्दे पर देखा तो उसने अपने काम को सदैव के लिए छोड़ दिया।
और सबसे दुःख की बात तो यह है कि इस शर्मनाक काम को करने वाले अनपढ़ लोग नहीं अपितु शिक्षित वर्ग भी इसी परंपरा की अर्थी उठा रहा है। आज देश के समृ( कहे जाने वाले राज्य पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं गुजरात में लिंग अनुपात सबसे कम है। 2001 की जन गणना अनुसार पंजाब में एक हज़ार लड़कों के पीछे मात्रा 798 लड़कियां थीं। हरियाणा में 819, गुजरात में 883 जो कि चिंता का विषय है। पंजाब में ताज़ा सर्वेक्षणों के अनुसार यह गिनती 780 पर आ पहुँची है। इसलिए पंजाब के हाथ खून से रंगे है। आंकड़े बताते हैं कि अगर कन्या भू्रण हत्या इसी रफ्ऱतार से जारी रही तो भारतीय जनगणना में लड़कियों की घट रही संख्या से भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा। जो देश के प्रबु( वर्ग के लिए चिंता का विषय है। उनका मानना है कि आने वाले कुछ सालों में यह स्थिति आ जाएगी कि लड़कों की शादी के लिए लड़कियां नहीं मिलेंगी।
यह शायद आज के समाज का सबसे शर्मनाक पहलू है कि बढ़ रहे पदार्थवाद ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। आज अस्पताल इलाज का केन्द्र न होकर व्यापार के अड्डे बन गए हैं। जहाँ पर किसी की जिंदगी खत्म करने के लिए सौदा किया जाता है। कई डॉक्टरों ने कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहित करने के लिए इश्तिहार तक बनवा डाले कि 500 खर्च करो 5 लाख बचाओ। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में डॉक्टरों की भूमिका सबसे निंदनीय है। यद्यपि डॉक्टर समाज का सबसे ज्यादा जागरूक वर्ग है। अगर ये चाहे तो समाज से इस बुराई का समूल नाश करने में महती भूमिका अदा कर सकता है। आज देश के अंदर लगभग 30,000 कलीनिक हैं जहाँ पर भ्रूण का परीक्षण कर उसकी हत्या की जाती है। यूनीसैफ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि सरकार दोषी डाकटरों के विरूद्ध कोई सख्त कारवाई नहीं करती जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण हत्या जैसी घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं। जरा विचार करना कि जिस नारी से मानव जाति का जन्म होता है। उस नारी के भ्रूण को जन्म से पहले ही नष्ट कर देना मनुष्य का एक घिनौना कुकर्म नहीं तो क्या है?
अंत में इतना कहना चाहते हैं कि हमारा कंजक पूजन व देवी पूजन उस दिन ही हमारे लिए वरदायक होगा जिस दिन हम वास्तविक रूप में इन्हें अपने मन व आत्मा में स्थान दे देंगे। यूं दोगला व्यवहार हमारी भक्ति को पोषित नहीं कर पाएगा। याद रखना सुयोग्य व संस्कारी कन्याओं के सुंदर गुणों के साथ ही परिवार व समाज सुंदरता भरपूर बनेगा। क्योंकि अगर इस धरती पर देवी स्वरूपा औरत न होती तो यह धरती कभी भी इतनी सुंदर न होती।
- सुखी भारती