By रितिका कमठान | May 18, 2023
हजारों वर्ष पहले कुरुक्षेत्र के मैदान पर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। महाभारत का युद्ध प्राचीन समय में धरती पर लड़ा गया था। महाभारत के युद्ध में इतना खून बहा था कि इसकी मिट्टी आज भी लाल है। इस युद्ध के जरिए आज भी यही कहा जाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती ही है और भगवान हमेशा अच्छाई और सच्चाई का साथ देते है।
गौरतलब है कि महाभारत का युद्ध पूरे 18 दिनों तक चला था। इस महाभारत के युद्ध में खुद भगवान श्रीकृष्ण भी शामिल थे। इस युद्ध में हिस्सा लेने के दौरान श्रीकृष्ण ने ये तय किया था कि वो किसी तरह का हथियार नहीं उठाएंगे। ऐसे में श्रीकृष्णा ने अर्जुन का सारथी बनकर युद्ध में हिस्सा लिया था। इस युद्ध में एक तरफ 100 कौरवों की सेना थी तो दूसरी तरफ पांचों पांडवों की सेना थी, जिन्हें श्रीकृष्णा का समर्थन भी प्राप्त था। जानकारी के मुताबिक इस युद्ध में कुल 12 योद्धा ऐसे थे जो जीवित बचे थे। इस युद्ध में तीन योद्धा कौरवों में से और 15 योद्धा पांडवों की तरफ से जीवित बचे थे। इनमें सबसे पहले श्रीकृष्ण थे जिन्होंने युद्ध में सीधेतौर पर हिस्सा नहीं लिया था।
ये थे योद्धा
पांडव
इस युद्ध में पांच पांडव जीवित बचे थे जिन्होंने धर्म का साथ दिया था। यही कारण था कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों का ही साथ दिया था। पांडवों में धिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव शामिल हैं। मगर इस युद्ध में अर्जुन और भीम के पुत्र की मौत हो गई थी।
सात्यकि
इस युद्ध में श्रीकृष्ण के मित्र सात्यकि भी जीवित बचे थे, जो कि यादवों के सेनापति थे। उन्होंने अर्जुन से ही धनुर्विद्या सीखी थी। ऐसे में उन्होंने अपने गुरु अर्जुन के खिलाफ कभी युद्ध नहीं करने का प्रण लिया था। ऐसे में वो कौरवों के पक्ष में नहीं बल्कि पांडवों के पक्ष में ही रहे थे।
युयुत्यु
धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्यु भी इस युद्ध में बचा था, जो महाभारत के बाद जीवित रहने वाला अकेला कौरव था। दासी की संतान होने के कारण वो अधिक सम्मान हासिल नहीं कर सका। मगर उसने हमेशा धर्म का रास्ता ही चुना। युयुत्सु कौरवों में सबसे बड़ा था, जिसका जन्म दुर्योधन से भी पहले हुआ था।
अश्वत्थामा
इस युद्ध में बचने वालों में अश्वत्थामा का भी नाम है जो कि द्रोणाचार्य का पुत्र था। उसे अमरता का श्राप मिला हुआ है, जो उसे श्रीकृष्ण ने दिया था कि उसे मौत के लिए भटकना पड़ेगा मगर उसे मृत्यु नहीं मिलेगी।
कृतवर्मा
कृतवर्मा भोजराज ह्रदिक के पुत्र थे जिन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था। ये कौरव की तरफ से सबसे वीर योद्धा थे, जिनके पास 12 हाथियों का बल था।
कृपाचार्य
कृपाचार्य कौरवों के कुल गुरु थे और उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला हुआ था। उन्होंने पांडवों और कौरवों दोनों को ही धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था। उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था इसलिए वो महाभारत में बच गए थे।
वृषकेतु
कर्ण के पुत्र वृषकेतु को युद्ध नीति का ज्ञान था जो उन्हें अपने पिता से मिला था। पांडवों ने कर्ण का पुत्र होने के कारण वृषकेतु को बाद में इंद्रप्रस्थ का राजकाज सौंपा था और उसे राजा भी बनाया था।