गजब UP की अजब कहानी, सरकारी खजाने से भरा जाता है CM, मंत्रियों का आयकर

By अनुराग गुप्ता | Sep 13, 2019

क्या आपने सोचा है कि अगर आपका टैक्स सरकारी खजाने से भरा जाए। लेकिन ऐसा संभव नहीं है और क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में जन प्रतिनिधियों का आयकर सरकारी खजाने से या यूं कहें कि आपकी जेब से भरा जाता है। जी हां, देश की राजनीति में दिशा और दशा तय करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में एक दिलचस्प कानून है। जिसके तहत वहां के नेताओं का आयकर सरकारी खजाने से भरा जाता है। 

देश के बड़े समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक 38 साल पहले उत्तर प्रदेश का नेतृत्व करने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक ऐसा कानून बनाया था जिसके मुताबिक प्रदेश की जनता का नेतृत्व कर रहे नेताओं का आयकर सरकारी खजाने से भरा जाता है। 

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वीपी सिंह के जमाने में उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज एंड मिसलेनिअस एक्ट 1981 बनाया गया था। उस समय विधानसभा में यह कहा गया था कि मंत्रियों की तनख्वाह इतनी ज्यादा नहीं होती कि वह अपना कर भर सकें। ऐसे में उन्हें गरीब बताकर सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया जाने लगा।

लेकिन चुनावों के दौरान मंत्रियों द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए शपथ पत्र पर ध्यान दिया जाए तो इन्हीं नेताओं की सम्पत्तियां करोड़ों की होती हैं और वह महंगी गाड़ियों में चलते हैं। तो ऐसे में अमीर नेताओं का टैक्स चुकाने वाला यह राज्य सबसे गरीब राज्यों की सूची में कैसे है ?

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जब वीपी सिंह ने कहा था मंत्री गरीब हैं

साल 1981 में उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज एंड मिसलेनिअस एक्ट बनाए जाने के बाद वीपी सिंह ने कहा था कि प्रदेश सरकार आयकर भरे क्योंकि ज्यादातर मंत्री गरीब हैं और उनकी आमदमी बेहद कम है। इस एक्ट के एक भाग में कहा गया है कि सभी मंत्री और राज्य मंत्रियों को पूरे कार्यकाल के दौरान हर महीने एक हजार रुपए सैलरी मिलेगी। जबकि सभी डेप्युटी मिनिस्टर्स को हर महीने 650 रुपए मिलेंगे। इसमें कहा गया है कि उपखंड 1 और 2 में उल्लेखित वेतन कर देनदारी से अलग है और टैक्स का भार राज्य सरकार उठाएगी।

किसी CM ने कानून को निरस्त करने की बात नहीं सोची

तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीपी सिंह द्वारा बनाए गए उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज ऐंड मिसलेनीअस ऐक्ट, 1981 को किसी भी नेता ने बदलने या निरस्त करने पर विचार नहीं किया। इतना ही नहीं वीपी सिंह के बाद 19 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं, लेकिन कानून अभी भी कायम है। आप जरा सोचिए क्या कल्याण सिंह, वीर बहादुर सिंह, नारायण दत्त तिवारी,  मुलायम सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव जैसे बड़े और अमीर नेताओं का आयकर सरकारी खजाने से भरने की आवश्यकता है ? लेकिन जब यह नेता सत्ता में थे तो इनका आयकर सरकारी खजाने से भरा गया था। इतना ही नहीं इनके अलावा अलग-अलग पार्टियों के 1000 नेता इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद मंत्री बन चुके हैं और उनका भी आयकर भरा जा चुका है।

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मुख्यमंत्री योगी और उनके मंत्रियों का भी कर भरा गया

साल 2017 में चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश का जिम्मा संभाला और मंत्रिमंडल का गठन कर मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन इन हाई प्रोफाइल मंत्रियों ने भी इस कानून पर विचार करने की बात तक नहीं की। पिछले दो वित्त वर्ष से योगी आदित्यनाथ ही नहीं उनके तमाम मंत्रियों का आयकर भी प्रदेश के सरकारी खजाने से भरा जा रहा है। अगर हम इस वित्त वर्ष की बात करें तो 86 लाख रुपए भरे गए थे। अगर हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तनख्वाह की बात करें तो उन्हें हर महीने भत्ते मिलाकर 3 लाख 65 हजार रुपए मिलते हैं।

अमूमन यह देखने को मिलता है कि अगर एक हजार रुपए का भी हेरफेर हो तो आम आदमी के पास आयकर विभाग का नोटिस आ जाता है लेकिन इन जन प्रतिनिधियों का कर सरकारी खजाने से भरा जा रहा है और आगे कब तक भरा जाएगा इसकी कोई सीमा नहीं है...

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