आजादी लेकिन पाकिस्तान के बिना और हिन्दुस्तान के साथ, कुछ ऐसी रही है लोन परिवार की कश्मीर को लेकर सोच

By अभिनय आकाश | Jan 21, 2021

पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन जिसमें जम्मू कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं वो अब धीरे-धीरे बिखरने लगी हैं। पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद लोन ने गुपकार गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया है। गुपकार घोषणापत्र गठबंधन के घटक दलों में जारी वर्चस्व और कलह के बारे में उल्लेखित करते हुए कहा कि कोई दल एक-दूसरे को देखना नहीं चाहते। जिसके बाद सज्जाद लोन ने गुपकार गठबंधन से अलग होने का फैसला किया। बता दें कि डीडीसी चुनावों के परिणाम आने के बाद महबूबा मुफ्ती भी गुपकार गठबंध से किनारा कर रही हैं। वो गुपकार की किसी बैठक में भी शामिल नहीं हुईं। जिसके बाद सज्जाद लोन का ये बड़ा फैसला आया। ऐसे में आज के विश्वेषण में बात करेंगे जम्मू कश्मीर की और कश्मीर के नेता सज्जाद लोन की। जिन्हें पीएम मोदी का करीबी भी माना रहा है। कभी फारूक अब्दुल्ला द्वारा उनके पिता पर कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार भी ठहराया जाता है। तो कभी सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा लोन को बीजेपी की तरफ से सीएम बनाने की तैयारी की बात भी कह दी जाती है। कौन हैं कश्मीर का लोन परिवार जो मुफ्ती का भी करीबी रहा और मोदी का भी। 

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सज्जाद लोन को जानने से पहले उनके पिता अब्दुल गनी लोन को जानना बहुत जरूरी है। एक गरीब परिवार में जन्में अब्दुल गनी लोन की चाह शुरू से ही वकील बनने की थी। अपने मकसद में उन्हें कामयाबी भी मिलती है। लेकिन ये उन्हें तो राजनीति में आना था और यही चाह अब्दुल गनी लोन को कांग्रेस के दरवाजे पर लेकर आती है। वो साल 1967 में कांग्रेस से जुड़ते हैं और फिर धीरे-धीरे अपनी सियासत को मजबूत करने की चाह लिए 1978 में जम्मू कश्मीर पीपुल्स काॅन्फ्रेंस का गठन किया। जम्मू कश्मीर में अब्दुल गनी लोन ने राजनीति तब शुरू की जब शेख अब्दुल्ला की लोकप्रियता चरम पर थी। उसी वक्त लोन कश्मीर को और अधिक दिलाने की मांग लिए अब्दुल्ला की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश में लग गए। लेकिन शुरुआती दो चुनाव में उन्हें पराजय ही मिलती है। 1983 में 10 वोट से और 1987 को 430 वोटों से। जिसके बाद अब्दुल गनी लोन अलगाववाद के रास्ते पर चल पड़ते हैं। उनके साथ मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के भी लोग साथ आ जाते हैं। अब्दुल गनी लोन कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य के तौर पर देखना चाहते थे। अपनी अलगाववादी कार्यों और बयानों की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। पूर्व राॅ चीफ एएस दुलत की किताब कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के मुताबिक 1992 में जब लोन जेल से बाहर आए तो उनके दिमाग में बस अलगाववादियों का एक संगठन बनाने की बात थी। कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के अनुसार लोन इसके लिए आईएसआई से भी सलाह मशवरा किया था। घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की नींव रखी गई। हुर्रियत कांफ्रेंस का काम पूरी घाटी में अलगाववादी आंदोलन को गति प्रदान करना था। यह एक तरह से घाटी में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के विरोध स्वरूप एकत्रित हुई छोटी पार्टियों का महागठबंधन था। इस महागठबंधन में केवल वही पार्टियां शरीक हुईं जो कश्मीर को वहां के लोगों के अनुसार जनमत संग्रह कराकर एक अलग पहचान दिलाना चाहती थीं। हालांकि इनके मंसूबे पाक को लेकर काफी नरम रहे। ये सभी कई मौकों पर भारत की अपेक्षा पाक से अपनी नजदीकियां दिखाते रहे हैं। 90 के दशक में जब घाटी में आतंकवाद चरम पर था तब इन्होंने खुद को वहां एक राजनैतिक चेहरा बनने की कोशिश की लेकिन लोगों द्वारा इन्हें नकार दिया गया। एपीएचसी  की एग्जिक्‍यूटिव कांउसिल में सात अलग-अलग पार्टियों के सात लोग बतौर सदस्‍य शामिल हुए। जमात-ए-इस्‍लामी से सैयद अली शाह गिलानी, आवामी एक्‍शन कमेटी के मीरवाइज उमर फारूक, पीपुल्‍स लीग के शेख अब्‍दुल अजीज, इत्‍तेहाद-उल-मुस्लिमीन के मौलवी अब्‍बास अंसारी, मुस्लिम कांफ्रेंस के प्रोफेसर अब्‍दुल गनी भट, जेकेएलएफ से यासीन मलिक और पीपुल्‍स कांफ्रेंस के अब्‍दुल गनी लोन शामिल थे। अब्दुल गनी लोन कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के काफी नजदीक हो जाते हैं। ओल्ड टाउन श्रीनगर की ईदगाह में मीरवाइज मौलवी फारुख की 12वीं मेमोरियल सर्विस में शरीक हुए थे तभी 21 मई 2002 को अब्दुल गनी लोन की आतंकिों द्वारा हत्या कर दी जाती है। जब अब्दुल गनी लोन की हत्या हुई तो उनके पुत्र सज्जाद लोन ने अपने पिता की हत्या में आईएसआई का हाथ होने की बात कही थी। लेकिन बाद में अपनी मां के कहने पर उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए थे। सज्जाद की मां हनीफा का कहना था कि मैंने अपने पति को खोया है और अब अपना बेटा नहीं खोना चाहती। बाद में सज्जाद लोन ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और अलगाववाद की राजनीति की वकालत शुरू कर दी।

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फारूक ने लोन को कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार ठहराया

नेशनल काॅन्फ्रें, के नेता फारूक अब्दुल्ला ने एक बार अब्दुल गनी लोन को कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार ठहराया था। जिसके पीछे अब्दुल्ला ने इतिहास की एक घटना का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने जब उन्हें निलंबित किया था, उस वक्त अब्दुल गनी लोन उनके पास आए थे। उन्होंने कहा था कि वह पाकिस्तान से बंदूक लाएंगे। अब्दुल्ला ने कहा कि उस वक्त मैंने लोन को बहुत समझाया था, लेकिन वह माने नहीं। 

मुशर्रफ से कहा- पाकिस्तान के बारे में चिंता करें

कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के अनुसार एक बार अब्दुल गनी लोन पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ से मिले तो उन्होंने गनी लोन से पूछा कि कश्मीर के हालात कैसे हैं तो इस पर लोन ने फट से जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर के बारे में चिंता मत कीजिए, पाकिस्तान को देखिए। आपके कट्टरपंथी उसी हाथ को काट लेंगे जो उन्हें खिलाते हैं। 

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सज्जाद लोन की कश्मीर की सियासत में एंट्री

सज्जाद लोन कश्मीर की आजादी की बात करते रहे लेकिन पाकिस्तान के बिना और हिन्दुस्तान के साथ। मतलब आसान भाषा में समझें तो कश्मीर की और स्वायतता की मांग। साल 2002 में सज्जाद लोन के खिलाफ अलगाववादी उम्मीदवारों के खिलाफ डमी उम्मीदवार उतारने के आरोप भी लगे। बाद में उन्होंने हुर्रियत से अलग होना शुरू कर दिया। कश्मीर को लेकर सज्जाद हमेशा से मुखर रहे और साल 2006 में उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात भी की। 2008 में अमरनाथ हिंसा के बाद खुद को सज्जाद लोन ने अलगाववाद से अलग कर लिया। साल 2008 और 2009 के दौरान सज्जाद लोन ने विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन दोनों बार ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2014 में बारामूला में निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए भी उन्हें हार ही मिली। साल 2014 में उनकी पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की और बीजेपी-पीडीपी गठबंधन वाली सरकार में मंत्री बने। बाद में कश्मीर में विधानसभा भंग हो गई थी और सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया था। हाल ही में हुए डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव में जेकेपीसी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है। सज्जाद लोन को पीएम मोदी का करीबी भी माना जाता है। पीएम मोदी के कश्मीर दौरे के दौरान वह उनके साथ नजर भी आ चुके हैं। सज्जाद लोन की एक बहन हैं जिनका नाम शबनम लोन है। वह सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और कश्मीर मुद्दे को लेकर काॅलम लिखती हैं। -अभिनय आकाश



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