By अनन्या मिश्रा | Jul 29, 2025
19वीं सदी का भारत बदलावों के दौर से गुजर रहा था। एक ओर अंग्रेजी हुकूमत थी, तो दूसरी तरफ समाज में फैली कुरीतियों का अंधेरा फैला हुआ था। ऐसे समय में ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक रोशनी की किरण बनकर उभरे। विद्यासागर ने न सिर्फ लोगों की सोच बदली बल्कि शिक्षा के लिए नई राहें भी खोलीं। आज ही के दिन यानी की 29 जुलाई को ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन हो गया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर ईश्वर चंद्र विद्यासागर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
पश्चिम बंगाल के वीरसिंह गांव में 26 सितंबर 1820 को ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। उनका परिवार काफी गरीब था, लेकिन उनके माता-पिता ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर को अच्छे संस्कार दिए और शिक्षा की अहमियत भी सिखाई। उन्होंने कठिन हालातों में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी और संस्कृत में अपनी पकड़ इतनी मजबूत बनाई कि उनको 'विद्यासागर' यानी की 'ज्ञान का सागर' कहा जाने लगा।
उस समय समाज में विधवाओं की हालत बुरी थी, उनको दोबारा शादी करने का अधिकार नहीं था। बाल विवाह आम था और एक आदमी कई शादियां कर सकता था। विद्यासागर ने समाज में फैली इन गलत प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई और विधवा पुनर्विवाह कानून बनवाने में मदद की। इसके साथ ही उन्होंने समाज को सही रास्ता दिखाने के लिए अपने बेटे की एक विधवा से शादी करवाई।
विद्यासागर का मानना था कि सिर्फ अमीरों या ब्राह्मणों के लिए शिक्षा नहीं होनी चाहिए। बल्कि यह हर इंसान का हक है। उन्होंने बंगाली भाषा को सरल बनाया, जिससे कि आम लोग पढ़ सकें। विद्यासागर ने कई स्कूल और कॉलेज खोले और लड़कियों को पढ़ने का मौका दिया। उन्होंने गैर ब्राह्मण छात्रों के लिए भी स्कूल के दरवाजे खोले। जोकि उस समय बड़ा और साहसी कदम था।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जीवन साहस, सादगी और समाज सेवा का प्रतीक था। वहीं 29 जुलाई 1981 को ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।