भारत में चीन की कम्युनिज्म को फैलाना चाहते हैं जिनपिंग, इसके लिए हिंदी को बनाया हथियार

By अभिनय आकाश | Nov 20, 2021

अभी ज्यादा दिन नहीं बीता था जब बीजिंग से ये खबर आई थी कि चीन की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के तहत सत्ताधारी पार्टी सीपीसी ने राष्ट्रपतिशी जिनपिंग की राजनीतिक विचारधारा को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था। अब चीन भारत में कम्युनिस्ट विचारधारा को फैलाने की तैयारी कर ली है। इसके लिए बकायदा जिनपिंग ब्रिग्रेड की तरफ से किताबों को हिंदी में प्रकाशित भी किया जा रहा है। इस किताब में चीन के शासन को लेकर उनके सिद्धांत पर प्रकाश डाला गया है।

कई भाषाओं में प्रकाशित हुई पुस्तक 

सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के अनुसार, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में एक समारोह में शी जिनपिंग: द गवर्नेंस ऑफ चाइना का पहला खंड हिंदी, पश्तो, दारी, सिंहली और उज़्बेक भाषाओं में जारी किया गया। यह पुस्तक पिछले कुछ वर्षों में मंदारिन के अलावा अंग्रेजी तथा कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। 

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माओ की बराबरी में जिनपिंग को लाने की कवायद

साल 2012 में सत्ता में आने के बाद से 68 वर्षीय शी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के संस्थापक माओत्से तुंग की तर्ज पर पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में उभरे हैं। उन्होंने नए युग में चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद नामक एक नए वैचारिक रुख का समर्थन किया है।  राष्ट्रपति के तौर पर लगातार दो कार्यकाल पूरे करने के बाद वह अगले साल तीसरी बार भी राष्ट्रपति बने रहेंगे।

स्कूलों में जिनपिंग के गुणगान

अपने देश के छात्रों का ब्रेन वॉश करने की कवायद के साथ ही वो अपनी विचारधारा का फैलाव अन्य देशों में भी करना चाहते हैं। सीपीसी  ऐसा पाठ्यक्रम लाई है जिसके तहत चीन के स्कूल-कॉलेजों में जिनपिंग के विचार पढ़ाया जाएगा। जिससे आने वाले भविष्य में कभी सरकार की नाकामियों या फिर गलत नीतियों के खिलाफ आवाज न उठाया जा सके। नए पाठ्यक्रम के अनुसार प्राथमिक विद्यालय देश, सीपीसी और समाजवाद के लिए प्रेम पर ध्यान केंद्रित करेंगे। वहीं माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में बुनियादी राजनीतिक निर्णयों और मतों से छात्रों की मदद करने के लिए प्रत्यक्ष बोधात्मक अनुभव और ज्ञान अध्ययन शामिल होगा। इसके अलावा अब जिनपिंग के खिलाफ बयान देना अपराध माना जाएगा। पहले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कोई महत्व नहीं देने वाला चीन अब इसे पूरी तरह समाप्त करने की राह पर चलता दिखाई दे रहा है। 

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