By अभिनय आकाश | Dec 31, 2025
जिसकी रक्षा के लिए जो चाल बदल दे काल का, कोई उसका क्या बिगाड़े जो भक्त है महाकाल का । यह पंक्ति शिवजी की सर्वशक्तिमानता और उनके भक्तों पर उनकी असीम कृपा को दर्शाती है और वो हर बाधा को पार कर लेते हैं। इस समय के बाधा बंगाल में ममता बनर्जी के सामने हैं और वो महाकाल के शरण में आती नजर आ रही हैं। आपको याद होगा जब 2025 में नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में केजरीवाल को जब हराया था तो लोग सोच भी नहीं सकते थे। खुद केजरीवाल कहते थे भाई कि हमको कोई नहीं हरा सकता। दिल्ली में केजरीवाल की पॉलिटिक्स निपट गई। बिहार में लालू की राजनीति निपटा दी गई। रिकॉर्ड जीत भी बिहार में दर्ज हुई। देश में राहुल गांधी की राजनीति को निपटाया ही हुआ है। अब नरेंद्र मोदी 2026 में ऐसा क्या करने जा रहे हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी हिली हुई है। ममता बनर्जी को इस वक्त समझ ही में नहीं आ रहा भाई कि वो करें तो करें क्या? कभी बाबरी मस्जिद पर उनकी राजनीति उलझी हुई है। तो वह कभी हिंदू मंदिर की बात कर रही हैं। नरेंद्र मोदी ने 2026 से ठीक पहले क्या खेला किया है कि ममता बनर्जी की पॉलिटिक्स बिल्कुल डिरेल होती दिख रही है। जो खुलकर बीजेपी को चुनौती देती थी कि बीजेपी कुछ भी कर ले उनसे बंगाल में ना जीत सकती। लेकिन ऐसी चुनौतियां तो केजरीवाल भी देते थे। केजरीवाल का क्या हुआ वह पूरा देश जानता है। आज केजरीवाल दिल्ली से गायब है। क्या ममता बनर्जी का भी यही हाल होने वाला है जो मोदी ने केजरीवाल के साथ किया?
2026 में बंगाल में चुनाव होने हैं और उससे पहले मंदिर मस्जिद की राजनीति बंगाल में भी शुरू हो गई है। हुमायूं कबीर जो कभी टीएमसी के नेता हुआ करते थे। उन्होंने बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखी और इसी दरमियान टीएमसी से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। वो अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच अब ममता बनर्जी ने सबसे बड़े महाकाल मंदिर को बनाने का ऐलान कर दिया है। कह दिया है कि जनवरी के दूसरे हफ्ते से उस पर काम शुरू हो जाएगा। दुर्गा आंगन की आधारशिला वो रखती हुई नजर आई हैं। इसी के साथ उन्होंने ना सिर्फ हुमायूं कबीर को सेक्युलर बनने की नसीहत दी हैं बल्कि खुद भी सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल बीजेपी को उसके ही ग्राउंड में घेरने की कोशिश की है।
ममता बनर्जी की राजनीति उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस से काफी मेल खाती है। ममता बनर्जी की पॉलिटिकल अपब्रिंगिंग राजीव गांधी के अंडर में हुई है। आपको याद होगा शाहबानों के लिए राजीव गांधी सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट देते हैं कि मुसलमान ना नाराज हो जाए। फिर मुसलमान नाराज हो गए तो हिंदुओं को खुश करने के लिए विवादास्पद ढांचे का ताला खुलवा देते हैं। उस समय इसे सॉफ्ट हिंदुत्व कहकर प्रचारित किया गया। दूरदर्शन पर लाइव टेलीकास्ट हुआ था। जिस वक्त राजीव गांधी हेलीकॉप्टर में बैठकर दिल्ली से चले लाइव टेलीकास्ट होते हुए अयोध्या में उतरते हैं और वो ताला खोलते हैं। उसी वक्त कांग्रेस की सरकार ने दूरदर्शन पर रमानंद सागर वाली रामायण का प्रसारण करवाया। कांग्रेस की छवि किसी भी तरह से मुस्लिम परस्त पार्टी की छवि नहीं होनी चाहिए हिंदुओं की छवि होनी चाहिए परिणाम क्या निकला इसका? जैसे ही इन्होंने राजीव गांधी ने ताला खोला तो बीजेपी वालों ने कहा कि अब ताला खोला है तो भूमि पूजन कर ही दो। फिर लाल कृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा लेकर निकल गए। उसके बाद हालत ये हुई कि कांग्रेस ना हिंदुओं की रही ना मुसलमानों की रही। मुसलमान बिहार में लालू के पास, यूपी में मुलायम के पास शिफ्ट हुए। ममता के लिए भी कहा जा रहा कि वो उसी स्टाइल की राजनीति कर रही हैं।
ममता बनर्जी के बारे में कहा जाता है कि एक वक्त पर जय श्री राम के नारे से चिढ़ जाती थी। गाड़ी गुजर रही है। कोई जय श्री राम बोल दे तो गाड़ी रोक के क्या बोला? कौन बोला? जय श्री राम जी ऐसे चिढ़ जाती थी। उनके सामने जय श्री राम के नारे लग जाए तो गाड़ी रोक कर भिड़ जाती थी। वो राम मंदिर पर बयानबाजी करती थीं। वही ममता बनर्जी मंदिर पर मंदिर बनवाने में जुट गई हैं। जय मां दुर्गे के नारे लगा रही हैं। ममता बनर्जी ने कोलकाता में दुर्गा आंगन परिसर का शिलान्यास कर दिया। जनवरी के दूसरे हफ्ते में सिलीगुड़ी में महाकाल मंदिर की नींव रखने का ऐलान कर रही हैं। 5 जनवरी को हिंदुओं की तीर्थ गंगा सागर में पुल की नींव रखने वाली हैं। इससे पहले ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन कर दिया। यानी मंदिरों की बात ममता बनर्जी कर रही हैं।
विपक्ष ने बनर्जी को निशाना बनाया है, और भाजपा अब दुविधा में दिख रही है क्योंकि वह मंदिरों के निर्माण का विरोध नहीं कर सकती। ममता बनर्जी बहुत सोच समझकर ऐसीऐसी जगह मंदिर बनवा रही हैं जिससे वह बीजेपी के हिंदुत्व को काउंटर कर सके। जैसे बंगाल में महाकाल मंदिर की लोकेशन आप देखिए। ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले सिलीगुड़ी में महाकाल मंदिर की नींव रखने की घोषणा कर दी। सिलीगुड़ी उत्तर बंगाल का प्रवेश द्वार है। जहां पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने टीएमसी का सूपड़ा साफ कर दिया था। उत्तर बंगाल में बीजेपी की पकड़ मजबूत है। इसकी बड़ी वजह वहां का पहाड़ी समुदाय, आदिवासी और गोरखा समुदाय के लोग हैं। भगवान महाकाल पहाड़ी समुदाय, गोरखाओं और उत्तर बंगाल के आदिवासियों को आरा के आराध्य हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव से पहले महाकाल मंदिर की नीव रखकर उन्हें साधना चाहती हैं।
बंगाल में बाबरी का बड़ा शोर है। बंगाल की बाबरी मस्जिद पर नोट बरस रहे हैं। बंगाल का मुसलमान बाबरी के नाम पर एकजुट हो रहा है। ममता बनर्जी को भी उम्मीद नहीं रही होगी कि बाबरी के नाम पर बंगाल में इस तरह से मुसलमान एक्टिव हो जाएंगे और इससे ममता का बना बनाया वोट बैंक जिसकी तरफ कोई देख भी नहीं सकता ऐसा ऐसा माहौल था उसमें सेंध लगने के कयास लगने लगेंगे या ममता बनर्जी सोच भी नहीं सकती और इसीलिए सवाल उठ रहा है कि क्या ममता बनर्जी को यह दिखने लगा है कि मुसलमान वोट इस बार हो सकता है
वहीं वामपंथी आरोप लगा रहे हैं कि यह टीएमसी सरकार की विकास और रोजगार के वादों को पूरा करने में विफलता को दर्शाता है। भाजपा के विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी, जो मुख्यमंत्री के सबसे तीखे आलोचकों में से एक हैं, ने आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत के हालिया बयान को दोहराया है कि सरकारों को मंदिर नहीं बनाने चाहिए। भगवत ने उदाहरण देते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक ट्रस्ट द्वारा किया गया था। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा हम मंदिरों के निर्माण का स्वागत करते हैं, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। इस मामले में भी मुख्यमंत्री पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए, अधिकारी ने एक बार विधानसभा में दावा किया था कि दुर्गा आंगन परिसर का स्थान स्थानीय मुसलमानों की आपत्तियों के बाद बदला गया था, जिनमें से कुछ ने परियोजना के लिए अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया था। वामपंथी दलों ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार की विफलताओं को छिपाने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति कर रही हैं। मुख्यमंत्री के पास राज्य के विकास, औद्योगीकरण या रोजगार के क्षेत्र में दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। इन सभी पैमानों पर वह विफल रही हैं। वह इस तथ्य को छिपाना चाहती हैं कि सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों में बुरी तरह लिप्त है। इसीलिए अब वह मंदिर की राजनीति का सहारा ले रही हैं और आरएसएस-भाजपा के रास्ते पर चलना चाहती हैं। वह भाजपा की विभाजनकारी राजनीति का अनुसरण कर रही हैं। एक तरफ वह इफ्तार पार्टियों में जाती हैं, तो दूसरी तरफ मंदिर बनवा रही हैं। भला कोई सरकार मंदिर कैसे बनवा सकती है?