The 5th India Pakistan War Book का विमोचन, Maj Gen GD Bakshi की पुस्तक में भारत को रणनीतिक आक्रामकता बनाए रखने की दी गयी सलाह

By नीरज कुमार दुबे | Nov 01, 2025

वरिष्ठ सैन्य विश्लेषक और भारतीय सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी मेजर जनरल जी.डी. बख्शी ने अपनी नई पुस्तक “The 5th India Pakistan War: Operation Sindoor” का विमोचन किया। यह पुस्तक वर्ष 2025 में संभावित भारत-पाकिस्तान संघर्ष की काल्पनिक (hypothetical) रूपरेखा प्रस्तुत करती है और भारत के लिए अधिक सशक्त, आत्मविश्वासी और निर्णायक सैन्य रणनीति की वकालत करती है।


इस पुस्तक में बख्शी ने एक समन्वित त्रि-सेना दृष्टिकोण (Tri-Service Synergy) का समर्थन करते हुए बताया है कि भविष्य के युद्ध में थल, वायु और नौसेना— तीनों सेनाओं का एकीकृत संचालन ही विजय की कुंजी होगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पाकिस्तान के परमाणु खतरे को पारंपरिक तरीकों— जैसे वायु शक्ति, एकीकृत रक्षा तंत्र और तकनीकी श्रेष्ठता, के माध्यम से निष्प्रभावी किया जा सकता है, बिना युद्ध को परमाणु स्तर तक पहुँचाए।

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हम आपको बता दें कि पुस्तक में आधुनिक तकनीक जैसे AI आधारित खुफिया प्रणाली, ड्रोन, सेंसर नेटवर्क और एकीकृत सॉफ्टवेयर सिस्टम के उपयोग पर भी विस्तृत चर्चा की गई है। बख्शी का मानना है कि भारत को अब रक्षात्मक मुद्रा छोड़कर “प्रोएक्टिव” यानी अग्रसक्रिय रणनीति अपनानी चाहिए, ताकि सीमापार आतंकवाद और अस्थिरता के खिलाफ ठोस जवाब दिया जा सके।


देखा जाये तो भारत की सुरक्षा नीति वर्षों से एक संतुलन साधने की कोशिश करती रही है, न तो युद्ध की चाह, न अपमान की सहनशीलता। लेकिन मेजर जनरल जी.डी. बख्शी की नई पुस्तक “ऑपरेशन सिंदूर” इस परंपरा को सीधी चुनौती देती है। यह केवल एक सैन्य कल्पना नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक है जो कहती है— “अब समय है रक्षात्मक से आक्रामक सुरक्षा सोच की ओर बढ़ने का।”


हम आपको बता दें कि बख्शी ने अपनी पुस्तक में 2025 के काल्पनिक भारत-पाक युद्ध की रूपरेखा खींचते हुए यह दिखाया है कि कैसे भारत त्रि-सेना समन्वय, तकनीकी एकीकरण और त्वरित निर्णायक कार्रवाई के जरिये युद्ध के चरित्र को बदल सकता है। यह कल्पना भले ही काल्पनिक हो, पर उसके भीतर छिपा रणनीतिक सन्देश वास्तविक और सामयिक है।


पुस्तक का सबसे साहसिक विचार यह है कि परमाणु हथियारों की ढाल के पीछे छिपे पाकिस्तान के आतंकवादी रवैये को पारंपरिक सैन्य शक्ति से भी निष्क्रिय किया जा सकता है। बख्शी का दावा है कि यदि भारत अपनी वायु सेना, मिसाइल डिफेंस और साइबर क्षमताओं का समुचित उपयोग करे, तो वह बिना परमाणु युद्ध की दहलीज पार किए पाकिस्तान की युद्ध क्षमता को पंगु बना सकता है। देखा जाये तो यह दृष्टिकोण न केवल सैन्य बल्कि राजनीतिक सोच में परिवर्तन की मांग करता है। दशकों से भारतीय नेतृत्व "रणनीतिक संयम" की नीति पर चलता रहा है। परंतु जब पड़ोसी राष्ट्र उस संयम को कमज़ोरी समझने लगता है, तब संयम स्वयं सुरक्षा जोखिम बन जाता है। बख्शी की यह पुस्तक उसी खतरे की याद दिलाती है।


“ऑपरेशन सिंदूर” में तकनीक को युद्ध का नया निर्णायक आयाम बताया गया है— AI-आधारित खुफिया सूचना, ड्रोन स्वार्म्स, सैटेलाइट निगरानी और एकीकृत नेटवर्क युद्धकला। यह सब केवल उपकरण नहीं, बल्कि रणनीतिक शक्ति गुणक (force multipliers) हैं। यदि भारत इन क्षेत्रों में स्वदेशी नवाचार और रक्षा अनुसंधान को प्राथमिकता देता है, तो भविष्य के युद्धों में उसका पलड़ा स्वाभाविक रूप से भारी रहेगा।


बख्शी की पुस्तक एक और सशक्त संदेश देती है कि राष्ट्र की सुरक्षा अब केवल सैनिकों के साहस पर नहीं, बल्कि नीति-निर्माताओं की दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। सीमाओं पर डटे जवान तभी प्रभावी होंगे जब दिल्ली की रणनीति दृढ़, निर्णायक और आत्मविश्वासी होगी।


बहरहाल, “ऑपरेशन सिंदूर” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा सोच में संभावित परिवर्तन का घोषणापत्र है। यह हमें याद दिलाती है कि सुरक्षा अब प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि नीतिगत आक्रामकता और तकनीकी दक्षता का खेल है।

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