Book Review: छत्रपति के दुर्गों का जयगान है ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

इस संदर्भ में यात्राप्रिय लेखक श्री लोकेन्द्र पुणे के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रायरेश्वर गढ़ का स्मरण करते हैं। उनके अनुसार इस गढ़ में स्थित शिवालय में 15-16 वर्षीय किशोर शिवा ने अपने कुछ मित्रों के साथ (380 वर्ष पूर्व) स्वराज्य की शपथ ली थी।
युवा साहित्यकार श्री लोकेन्द्र सिंह कृत ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ मूलत: उन दुर्गों का वृतांत है जो सह्याद्रि पर्वतमाला के साथ खड़े, हिन्दू पदपादशाही के निर्माता छत्रपति शिवाजी महाराज का आज पर्यन्त जयगान कर रहे हैं। श्री लोकेन्द्र ने अपनी इस कृति में छत्रपति शिवाजी महाराज के उन दुर्गों का उल्लेख किया है, जिनके दर्शन उन्होंने अपनी श्रीशिव छत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा के दौरान किया। लेखक छत्रपति के इन दुर्गों को ‘स्वराज्य के मजबूत प्रहरी’ निरूपित करते हैं। उनके शब्दों में- “ये दुर्ग स्वराज्य के प्रतीक हैं... और जब देश, विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार में घिरता जा रहा था, तब इन दुर्गों से ही स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी”।
इस संदर्भ में यात्राप्रिय लेखक श्री लोकेन्द्र पुणे के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रायरेश्वर गढ़ का स्मरण करते हैं। उनके अनुसार इस गढ़ में स्थित शिवालय में 15-16 वर्षीय किशोर शिवा ने अपने कुछ मित्रों के साथ (380 वर्ष पूर्व) स्वराज्य की शपथ ली थी। और इस प्रकार यह गढ़ स्वराज्य की संकल्प-भूमि सिद्ध हुआ है।
इस संकल्प के साथ आरंभ हुई स्वराज्य की विजय यात्रा का गौरवशाली विवरण ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ के प्राय: हर पृष्ठ पर अंकित है। उनमें विजित दुर्गों का भूगोल यथा- पुणे से उनकी दूरी, समुद्र तल से उनकी ऊंचाई आदि का वर्णन है और इससे अधिक भारतीय इतिहास के गौरवशाली प्रसंगों का चित्रण भी इसमें बड़ी सजीवता से हुआ है।
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इस कृति में सिंहगढ़ विजय के साथ-साथ तानाजी की उत्सर्ग-कथा, द्वितीय छत्रपति शंभूराजे की बलिदान-गाथा आदि-आदि अनेक ऐतिहासिक घटनाएं वर्णित हैं। उनके अतिरिक्त अनेकानेक लोमहर्षक घटनाएं भी इस पुस्तक में हैं, जो देश के जनमानस को लंबे समय से आलोड़ित-उद्वेलित करती रही हैं और आज भी कर रही हैं।
इस पठनीय पुस्तक में छत्रपति के जीवन को संवारने, उनमें स्वदेश और स्वधर्म के रक्षण-संरक्षण के लिए वांछित संस्कार जगाने तथा उन्हें यथावश्यक दिशा-निर्देश देने में जीजा माता की महनीय भूमिका, छत्रपति का वैभवपूर्ण एवं जन-जन प्रिय राज्याभिषेक, उनकी प्रबंधपटुता, अद्भुत सैन्य व्यवस्था आदि का विशेष उल्लेख है। छत्रपति की राजमुद्रा का संस्कृत में होना भी जनगण के लिए गर्व और गौरव का विषय हो सकता है। कारण मात्र यही है कि इससे पूर्व ये मुद्राएं अरबी या फारसी में हुआ करती थीं।
बहुत संक्षेप में कहा जाए तो यह कहना आवश्यक होगा कि श्री लोकेन्द्र सिंह की उक्त कृति का पठन-पाठन-अनुशीलन समाज को अनेक दृष्टियों से समृद्ध करेगा तथा राष्ट्रसापेक्ष जीवन जीने के लिए अनुप्रेरित करेगा।
इस सोद्देश्य लेखन के लिए युवा लेखक का अनेकश: अभिनंदन।
पुस्तक : हिन्दवी स्वराज्य दर्शन
लेखक : लोकेन्द्र सिंह
मूल्य : 250 रुपये (पेपरबैक)
प्रकाशक : सर्वत्र, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल
- जगदीश तोमर
(समीक्षक, वरिष्ठ साहित्यकार हैं। आप पूर्व में साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश की प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक रहे हैं।)
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