महामारी के दौरान भारतीयों को बचाने के लिए एक महीने में भरीं थी तीन उड़ान, मिलिए महिला पायलट लक्ष्मी जोशी से

By निधि अविनाश | Jan 19, 2022

जब 8 साल में पहली बार हवाई जहाज में बैठी तो लक्ष्मी जोशी ने मन में ही ठान लिटा था कि वह बड़ी होकर पायलट बनेगी। अपने सपने को पूरा करने के लिए लक्षमी ने कड़ी मेहनत की और आज उसका नाम उन पायलटों में शामिल है जिन्होंने वंदे भारत मिशन के लिए काम किया और मई 2020 में जब कोरोना वायरस से यात्रा प्रतिबंध लगाए गए तब विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वेदश लाने का जिम्मा इन्हीं पायलटों के हाथों में था। भारतीयों को विदेशों से निकालने की मुहिम शुरू हुई और कई बड़ी संख्या में लोगों को भारत सुरक्षित पहुंचाया गया। हाल ही में अपने अनुभव को लक्ष्मी जोशी ने  ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे (Humans of Bombay) से शेयर किया और बताया कि, अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की और कैसे पायलट बनकर विदेशों में फंसे भारतीयों को सुरक्षित केवल एक ही महीने में तीन उड़ान भर डाली।

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जोशी ने बताया कि, उनके पिता ने कर्ज लेकर उन्हें पढ़ाया ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर पायलट बन सके। उनके पिता ने कहा था कि,  "इसके लिए जाओ, बेटा. आकाश की सीमा है!" दो साल तक लक्ष्मी ने दिल और आत्मा के साथ पायलट के लिए प्रशिक्षण लिया और उन्हें पायलट का लाइसेंस मिला। लक्ष्मी ने कहा कि, "मेरे सपनों को पंख मिल गए थे, मैं उत्साहित थी! इसके तुरंत बाद, मुझे एयर इंडिया, राष्ट्रीय वाहक के साथ नौकरी मिल गई." 

जोशी ने ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को बताया, अपने सपने को पूरा करने में उनके पिता का बहुत बड़ा हाथ रहा, जब लक्ष्मी के रिश्तेदार उनके पिता से पूछते कि, लक्ष्मी कैसे और कब सेटल होगी तो जवाब में उनके पिता कहते,'मेरी बेटी उड़ने के लिए बनी है'। अपनी नौकरी से प्यार करने वाली लक्ष्मी जोशी रूकना नहीं चाहती थी वह बहुत कुछ हासिल करना चाहती थी इसलिए जब महामारी फैली और वंदे भारत मिशन आया तो लक्ष्मी ने पूरी मेहनत से विदेशों में फंसे भारतीयों को बचाने के लिए विदेश जाने के लिए उड़ान भरी।

चीन के लिए भरी थी उड़ान

लक्ष्मी ने महामारी के दौरान चीन के लिए अपनी उड़ान भरी, वह शंघाई के लिए पहुंची और अपने अनुभव को शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि, वह उड़ान कभी न भूलने वाला था। लक्ष्मी ने कहा कि, चीन कोविड का सबसे गर्म स्थान होने के कारण, हर कोई व्यथित था," उन्होंने कहा, "हमारा उद्देश्य वहां फंसे सभी भारतीयों को वापस लाना था। हम सभी ने उड़ान के दौरान खतरनाक सूट पहने थे, मैंने भी एक पहनकर उड़ान भरी। जब भारत टीम पहुंची तो सभी यात्रियों ने चालक दल को स्टैंडिंग ओवेशन दिया। 

एक महीने में भरी तीन उड़ान

लक्ष्मी ने महामारी के दौरान एक महीने में तीन उड़ान भरीं। लक्ष्मी ने बताया कि, सूट पहनने में कठिनाई होती थी लेकिन भारतीयों को बचाना भी जरूरी था। एक समय लक्ष्मी को यात्रियों के बजाय, सैकड़ों कार्टन बॉक्स के साथ यात्रा की थी। लक्ष्मी ने कहा कि, महामारी की तीसरा साल चल रहा है और वंदे भारत मिशन सक्रिय है और फंसे भारतीयों को स्वदेश पहुंचाने के लिए वह दोबारा नेवार्क के लिए रवाना होंगी। पायलट ने कहा, "पापा कहते हैं कि उन्हें मुझ पर गर्व है। उन्होंने हाल ही में मुझसे कहा था, 'मैं तुम्हें आकाश की सीमा बताता था। लेकिन तुमने उसे भी बढ़ाया है! उड़ते रहो!' और मैं यही करने जा रही हूं... उड़ते रहो!"

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