NCLT ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की याचिका पर Subhash Chandra के खिलाफ दिवाला कार्यवाही का आदेश दिया

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 23, 2024

नयी दिल्ली । राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण(एनसीएलटी) ने सोमवार को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की याचिका पर मीडिया दिग्गज सुभाष चंद्रा के खिलाफ दिवाला कार्यवाही का आदेश दिया। एनसीएलटी की दो सदस्यीय दिल्ली पीठ ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लि. (जेडईईएल) के मानद चेयरमैन चंद्रा के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) शुरू करने का निर्देश दिया। उन्होंने एस्सेल समूह की कंपनी विवेक इंफ्राकॉन लिमिटेड को दिए गए कर्ज के लिए गारंटी दी थी। 


हालांकि, एनसीएलटी पीठ ने दो अन्य वित्तीय संस्थाओं आईडीबीआई ट्रस्टीशिप और एक्सिस बैंक की तरफ से दायर ऐसी ही याचिकाओं को खारिज कर दिया। एनसीएलटी केविस्तृत फैसले का अभी इंतजार है। वर्ष 2022 में विवेक इंफ्राकॉन के लगभग 170 करोड़ रुपये का भुगतान न करने के बाद इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईएचएफएल) ने एनसीएलटी का दरवाजा खटखटाया था। विवेक इंफ्राकॉन, चंद्रा द्वारा प्रवर्तित एस्सेल ग्रुप का एक हिस्सा है। हालांकि कुछ समझौता वार्ताएं हुई थीं, लेकिन आईएचएफएल को कोई भुगतान नहीं किया गया था। 


सीआईआरपी की शुरुआत के बाद, चंद्रा दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों के तहत आ जाएंगे और उन्हें किसी भी संपत्ति को बेचने, निपटान करने या अलग करने की अनुमति नहीं होगी। दिवाला न्यायाधिकरण द्वारा एक समाधान पेशेवर नियुक्त किया जाएगा, जो सभी कर्जों का मिलान करेगा और वित्तीय कर्जदाताओं को अपना पैसा वसूलने में मदद करेगा। इससे पहले, चंद्रा ने दलील दी थी कि व्यक्तिगत तौर पर गारंटी देने वाला दिवाला कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकता है और एनसीएलटी के पास उसके खिलाफ प्रक्रिया शुरू करने की कोई शक्ति नहीं है। हालांकि, मई 2022 में एनसीएलटी ने इसे खारिज कर दिया और न्यायाधिकरण ने माना कि उसके पास व्यक्तिगत दिवाला कार्यवाही पर फैसला करने का अधिकार है। 


इसके बाद, इसे चंद्रा ने अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के समक्ष चुनौती दी। हालांकि, मामला वापस ले लिया गया क्योंकि सभी पक्षों ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का फैसला किया। हालांकि, इस साल की शुरुआत में आईएचएफएल ने मामले को फिर से उठाया क्योंकि चंद्रा के साथ समझौता नहीं हो पाया था। सरकार ने वर्ष 2019 में, आईबीसी के प्रावधानों में संशोधन किया, जिससे कर्जदाताओं को व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के खिलाफ दिवाला कार्यवाही दायर करने की अनुमति मिल गई। इस प्रावधान को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने नवंबर 2023 में इन प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा।

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