Matrubhoomi | गांधी से पहले हुई थी बूढ़ी गांधी की हत्या| Contribution of Matangini Hazra in Indian freedom

By अभिनय आकाश | Mar 27, 2024

14 अगस्त 2023 की शाम स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का देश के नाम पैगाम। स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने मातंगिनी हाजरा और कनकलता बरूआ जैसी वीरांगनाओं ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। ऐसे में आज आपको भारत के पश्चिम बंगाल राज्य से ताल्लुक रखने वाली महिला स्वतंत्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा के बारे में आपको बताते हैं। स्वाधीनता संग्राम का जिक्र आते ही हमारी नजरों के सामने जो चेहरे घूम जाते हैं उनमें महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले, रानी लक्ष्मीबाई, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कई वीरों के नाम सामने आ जाते हैं। लेकिन क्या हम और आप उन चेहरों और व्यक्तित्व के बारे में जानते हैं जिनका इस आजादी रूपी इमारत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान रहा। जिस प्रकार किसी इमारत के स्तंभ का महत्व होता है कि वो उस इमारत को ऊंचाई देते हैं। लेकिन उस स्तंभ या फिर कहे पिलर्स को बनाने में रोड़ी, ईंट, सीमेंट आदि सामग्री प्रयोग में लाए जाते हैं लेकिन हमें नजर नहीं आते हैं। स्वतंत्रता दिलाने में बड़े बड़े नेताओं की गाथाएं तो आपने खूब सुनी और पढ़ी है। लेकिन क्या आप स्वतंत्रता रूपी यज्ञ में अपनी आहुति देने वाले आजादी के गुमनाम दीवानों की कहानी जानते हैं। 

इसे भी पढ़ें: Dwarka: Mythology Meets Reality | हिंदू पौराणिक कथाओं में द्वारका शहर | Matrubhoomi

12 साल की उम्र में विवाह, 18 साल में विधवा 

1870 में मेदिनीपुर के तमलुक पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में स्थित होगला गांव के पेनुरी में मातंगिनी ने एक गरीब किसान के घर जन्म लिया। वह प्रारंभिक शिक्षा भी हासिल नहीं कर सकीं। घोर गरीबी ने उन्हें बालिका वधू और एक छोटे बेटे की मां बनने के लिए मजबूर कर दिया। मात्र 12 वर्ष की आयु में उनका 62 वर्ष के व्यक्ति से विवाह हो गया। जब वह 18 वर्ष की थी, विधवा और निःसंतान थी, तब वह अपने गाँव लौट आई। इसके बाद मायके आकर स्वतंत्रता के लिए कुछ कर गुजरने का उनका जज्बा जुनून बन गया। इसके बाद हाजरा ने अपने पैतृक गांव में अपना अलग प्रतिष्ठान बनाना शुरू किया और अपना अधिकांश समय अपने घर के आसपास बूढ़े और बीमार लोगों की मदद करने में बिताया। उस समय, उन्हें यह नहीं पता था कि उनका भविष्य उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की एक गुमनाम महिला नायक के रूप में कैसे लिखेगा। 

राजनीति में कैसे हुई एंट्री 

1905 में स्वतंत्रता संग्राम में मातंगिनी की सक्रिय रुचि बढ़ गई और उन्होंने किसी और से नहीं बल्कि गांधी से प्रेरणा ली। दस्तावेज़ों के अनुसार, मेदिनीपुर में स्वतंत्रता संग्राम की विशेषता महिलाओं की भारी भागीदारी थी। हालाँकि, उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ 26 जनवरी, 1932 को आया। गाँव के लोगों ने तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य के बारे में जागरूकता जुलूस निकाला और हाजरा 62 साल की उम्र में समूह में शामिल हो गईं। तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1933 में करबंदी आंदोलन को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गवर्नर एंडरसन तमलुक आए तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ। वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झंडा लिए डटी रहीं। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi | पंचशील को भारत ने शांति समझौता समझ कर दी भूल | China-Tibet-Nehru Saga 

कैसे पड़ा गांधी बुढ़ी नाम 

मातंगिनी को गांधी बुढ़ी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मातंगिनी हाजरा एक कट्टर गांधी अनुयायी थीं। वह स्वयं महात्मा से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं। उनकी तरह, उन्होंने सभी विदेशी वस्तुओं को अस्वीकार कर दिया और सूत काता। गांव में मानवीय कार्यों के लिए लोग अक्सर उन्हें याद करते थे। महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में उनकी जोरदार भागीदारी ने उन्हें पुलिस बैरक में बदनाम कर दिया, खासकर नमक सत्याग्रह आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण। उन्होंने अलीनान नमक बनाने वाली फैक्ट्री में नमक बनाया। अलीनान उनके दिवंगत पति का गांव है। इससे उसकी गिरफ्तारी हुई और लोगों ने एक नाजुक बूढ़ी औरत को उसके चेहरे पर एक भी शिकन के बिना कई मील तक चलते देखा। उसे तुरंत रिहा कर दिया गया। बंगाली में गांधी बरी का मतलब बूढ़ी औरत गांधी होता है। स्वतंत्रता संग्राम के गांधीवादी सिद्धांतों का पालन करने के प्रति उनके समर्पण के कारण स्थानीय लोग उन्हें बुढ़िया गांधी कहते थे। उनकी गिरफ्तारी उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने से नहीं रोक सकी। 

गांधी की तरह मजबूत और दृढ़ 

महात्मा गांधी की तरह, हाजरा का नाजुक शरीर उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने से नहीं रोक सका। वह ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ एक स्थानीय आवाज भी थीं। अपनी गिरफ्तारी के तुरंत बाद, मातंगिनी हाजरा ने चौकीदारी कर के उन्मूलन में भाग लिया - यह कर अंग्रेजों द्वारा ग्रामीणों पर लगाया जाता था ताकि पुलिसकर्मियों के एक छोटे से स्थानीय समूह को ग्रामीणों के खिलाफ जासूस के रूप में इस्तेमाल करने के लिए धन दिया जा सके। अपनी रिहाई के बाद, हाजरा ने कमजोर दृष्टि के बावजूद विरोध के संकेत के रूप में खादी कातना शुरू कर दिया। चेचक महामारी के प्रकोप के दौरान, उन्होंने बच्चों सहित पीड़ितों की अथक देखभाल की थी। 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उप-विभागीय सम्मेलन में भाग लेने के दौरान पुलिस लाठीचार्ज में मातंगिनी भी गंभीर रूप से घायल हो गईं। इस दौरान उसे गंभीर चोटें लगीं और वह घायल हो गई। उनकी विरोध शैली गांधी और वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए उनके अहिंसात्मक स्वतंत्रता संघर्ष के आदर्श वाक्य के समान थी। बाद में 1933 में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर सर जॉन एंडरसन की यात्रा के दौरान, वह सुरक्षा का उल्लंघन करने और विरोध के प्रतीक के रूप में काला झंडा फहराने के लिए मंच तक पहुँचने में सफल रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें छह महीने की कैद से पुरस्कृत किया। 

मातंगिनी हाजरा का सर्वोच्च बलिदान 

अगस्त 1942 में स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने 73 वर्षीय मातंगिनी हाजरा के नेतृत्व में मेदिनीपुर जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों के पास विरोध प्रदर्शन करने की योजना बनाई।एक विरोध प्रदर्शन के लिए मातंगिनी हाजरा लगभग पांच हजार लोगों के साथ सरकारी डाक बंगले पर पहुंच गई। पुलिस ने आईपीसी की धारा 144 का हवाला देकर जुलूस को रोकने की कोशिश की। पुलिसकर्मियों से गोली न चलाने की अपील की गई। बदले में अंग्रेजों ने 73 साल की मातंगिनी हाजरा को गोलियों से छलनी कर दिया। पहली गोली मातंगिनी हाजरा के कंधे पर लगी, लेकिन वह झंडा ऊंचा उठाए हुए आगे बढ़ती रही। अगली गोली चलाई गई, और वह उसके माथे में लगी और उसकी जान चली गई। उन्होंने मरते दम तक तिरंगे को नहीं गिरने दिया। उनके मुंह से वंदे मातरम निकलता रहा। 


प्रमुख खबरें

SRH vs LSG: लखनऊ के खिलाफ सनराइजर्स हैदराबाद ने 58 गेंदों में चेज किया 166 रनों का टारगेट, ट्रेविस हेड और अभिषेक शर्मा की बेहतरीन पारी

Aurangabad और Osmanabad का नाम बदलने पर अदालत के फैसले का मुख्यमंत्री Shinde ने किया स्वागत

तीन साल में पहली बार घरेलू प्रतियोगिता में भाग लेंगे Neeraj Chopra, Bhubaneswar में होगा आयोजन

Israel ने Gaza में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए एक अहम क्रॉसिंग को फिर से खोला