विजयादशमी का त्योहार इस वर्ष 25 अक्टूबर को पड़ रहा है। इस दिन सुबह 7 बजकर 41 मिनट से शुरू ही रही दशमी अगले दिन यानि 26 अक्टूबर को सुबह 9 बजे तक रहेगी। इस बार विजयादशमी की पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 1.12 से लेकर 3.27 बजे तक का बताया जा रहा है। यदि आपके ऐसे कोई कार्य हैं जिनमें अकसर रुकावट आ जाया करती है तो विजयादशमी के दिन से उसकी शुरुआत करनी चाहिए। वैसे तो इस दिन किसी कार्य की शुरुआत पूरे दिन में कभी भी की जा सकती है लेकिन यदि आपने विजय काल में कार्यारंभ किया है तो जीत मिलनी निश्चित है। पुराने समय में राजा-महाराजा विजयादशमी के दिन विजय काल में ही शत्रु पर विजय पाने के लिए निकला करते थे। मान्यता है कि सायंकाल में तारा उदय होने के समय 'विजय काल' रहता है।
क्षत्रियों के लिए तो विजयादशमी बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन क्षत्रिय शस्त्र-पूजन करते हैं तो ब्राह्मण सरस्वती पूजन करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अपराह्न काल के अलावा श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। इस दिन संध्या के समय यदि नीलकंठ पक्षी का दर्शन हो जाये तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है। दशहरे के दिन पूजन के बाद दुर्गा-विसर्जन के अलावा अपराजिता पूजन और शमी पूजन का विशेष फल मिलता है। मान्यता है कि विजयादशमी के दिन भगवान श्रीरामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था इसीलिए विजयकाल में शमी पूजन होता है।
विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है। यह दिन कई प्रकार की सिद्धियां भी दिलाता है और बाधाओं को समाप्त भी कर देता है। कह सकते हैं कि इस दिन राम नाम लेकर जो भी काम करेंगे वह पूरे हो जाएंगे। मसलन आपके परिवार पर कोई नकारात्मक प्रभाव है और आप उसे खत्म करना चाहते हैं तो स्नान के उपरांत दक्षिण दिशा में मुंह करके हनुमानजी के सामने तिल का दीया जला कर सुंदरकांड का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती है। इसी तरह यदि किसी अचानक आये संकट का समापन चाहते हैं तो विजयादशमी के दिन पीला आसन लगायें और तांबे के लोटे में जल भर कर रख लें फिर विराजमान होकर राम रक्षा स्त्रोत का तीन पर पाठ करें और लोटे के जल को पूरे घर में छिड़क देने से समस्या समाप्त होती है। दशहरे के दिन वाहन, इलेक्ट्रानिक सामाना, सोना, वस्त्र आदि खरीदना भी काफी शुभ माना जाता है। यदि गृह प्रवेश करना चाहते हैं तो यह सबसे उत्तम दिन है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है। अन्य दो शुभ तिथियां हैं- चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
दशहरे के दिन जगह-जगह मेले लगते हैं और बुराई के प्रतीक रावण के पुतले जलाये जाते हैं लेकिन इस बार कोरोना काल में यह सब संभव नहीं हो पा रहा है। कुछ ही शहरों में सीमित संख्या में रामलीलाओं को मंचन की अनुमति मिली है और उनकी भव्यता भी पहले जैसे नहीं है। लेकिन फिर भी कोरोना रूपी रावण के खात्मे के लिए हर कोई प्रतिबद्ध है। मैसूर और कुल्लू का प्रसिद्ध दशहरा उत्सव भी इस बार फीका नजर आ रहा है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर 'सिलंगण' के नाम से मनाये जाने वाले सामाजिक महोत्सव की भी इस बार पहले जैसी धूम नहीं है।
-शुभा दुबे