ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन वाले जॉर्ज सोरोस की राष्ट्रवाद से लड़ने की वैश्विक योजना, इस तरह देते भारत विरोधी नैरेटिव को हवा

By अभिनय आकाश | Aug 03, 2021

विश्व के सबसे विवादित चेहरों में से एक-जॉर्ज सोरोस। कुछ के लिए इतिहासपुरूष, फाइनेंसियल गुरु और एक सफल निवेशक, एक अरबपति जो बाजारों को स्थानांतरित करने में सक्षम हैं। एक आदमी जो राजनीति और राय को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन क्या यही सच है? 

कौन हैं जॉर्ज सोरस 

हंगरी मूल के अमेरिकी सोरोस निवेशक और समाजसेवी हैं। ओपन सोयासटी फाउंडेशन जिसका नाम 1945 की ओपन सोसायटी एंड इटस एनीमी नामक एक किताब से प्रेरित है। जिसका काम जीवंत और समावेशी लोकतंत्र बनाना और ऐसी सरकार अपने नागरिकों के प्रति जवाबदेह हो। फाउंडेशन का हेडक्वाटर न्यूयार्क में है और 60 से ज्यादा देशों में सक्रिय है। नास्तिक होने का दावा करने वाले जॉर्ज सोरोस खुद को दार्शनिक कहलाना पसंद करते। साल 1994 में सोरोस ने एक भाषण में बताया कि उन्होंने अपनी मां को आत्महत्या करने में मदद देने की पेशकश की थी, उनकी मां हेमलॉक सोसाइटी की सदस्य थीं। सोरोस इजरायल और अमेरिका के साथ ही विभिन्न विषयों पर दुनियाभर के कुछ बड़े अखबारों जैसे द टाइम, टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्कर वगैरह में लिखते रहते हैं। फरवरी 2018 के आंकड़े के मुताबिक, सोरोस पास कुल 8 अरब डॉलर की संपत्ति है। उन्होंने अपनी समाजसेवी संस्था ओपन सोसायटी फाउंडेशंस को 32 अरब डॉलर से ज्यादा का दान दिया है। जिसमें से 15 अरब डॉलर का वितरण 37 देशों में हुआ। सोरोस अमेरिका की राजनीतिक पार्टी डेमोक्रैट्स के बड़े दानदाताओं में से एक हैं। 

इन पैसों का क्या उपयोग हुआ?

  • शैक्षणिक कार्यक्रम
  • मानवाधिकार आंदोलन
  • स्वास्थ्य शिविर
  • न्याय सुधार
  • वैश्विक शासन
  • कथाकथित लोकतंत्र की मजबूत के लिए

 “बैंक ऑफ़ इंग्लैंड अपने घुटनों पर”

सितंबर 1992 में सोरोस द्वारा ब्रिटिश पाउंड को कमज़ोर करना विदेशी मुद्रा पर उनकी सबसे आश्चर्यजनक सफलता बन गई।16 सितंबर 1992 को हुए अवमूल्यन के संकट के कारण, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दर को बढ़ाया और मुद्रा विनिमय से पाउंड का समर्थन किया। पाउंड को कम करके, जॉर्ज सोरोस ने एक महीने में ही लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का लाभ कमाया। तब से, जॉर्ज सोरोस ने विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के बारे में बार-बार अपने पूर्वानुमान साझा किए हैं। 1992 में ब्रिटेन मुद्रा संकट ब्लैक वेन्ज्डे के दौरान उनके एक बिलियन डॉलर बनाने के बाद वे “उस आदमी जिसने बैंक ऑफ इंग्लैंड को कड़का बना दिया” के तौर पर पूरी दुनिया में मशहूर हो गए। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि सोरस सिर्फ करेंसी ही नहीं पूरे सिस्टम को भी ध्वस्त करने में सक्षम हैं। 

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जॉर्ज सोरोस और बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और गैर सरकारी संगठनों का नेटवर्क

गैर सरकारी संगठनों के अपने नेटवर्क के माध्यम से, जॉर्ज सोरोस ने बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को विकसित किया है जो भारतीय राज्य, विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी सरकार का विरोध करने की दिशा में काम करते हैं। यह सब 1995 में शुरू हुआ जब जॉर्ज सोरोस ने मीडिया डेवलपमेंट इन्वेस्टमेंट फंड की स्थापना के लिए प्रारंभिक सीड फंड का योगदान दिया। अपने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के माध्यम से, जिसने 1999 में भारतीय संस्थानों में अध्ययन और अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति और फैलोशिप की पेशकश करके भारत में अपना संचालन शुरू किया। परोपकारी गतिविधियों को चलाने के नाम पर सोरोस के नेतृत्व में वामपंथी अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने भारत के भीतर के सक्रिय भारत विरोधी तत्वों को समर्थन देकर देश भर में अपना जाल फैलाना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ दशकों में जॉर्ज सोरोस ने समय-समय पर भारत में राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ प्रोपोगेंडा फैलाने का काम किया। 2008 में, सोरोस इकोनॉमिक डेवलपमेंट फंड (SEDF) ने निवेश को बढ़ावा देने के लिए अपने 17 मिलियन SONG फंड लॉन्च करने के लिए ओमिडयार नेटवर्क, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) और Google.org के साथ हाथ मिलाया था।  अन्य नेटवर्क के साथ, सोरोस ने पॉलिटिकल नैरेटिव सेट करने के लिए मीडिया को व्यापक अनुदान प्रदान किया है।

इतने बड़े दानदाता है सोरोस

सितंबर 2012 में जॉर्ज सोरस ने बराक ओबामा की पॉलिटिकल एक्शन केमटी के लिए 1 मिलियन डॉलर का दान किया। साल 2016 में हेलरी क्लिंटन कैंपने को चंदा देने वाले सबसे बड़े दानकर्ता थे। उन्होंने इस कैंपेन के लिए 8 मिलियन डॉलर का दान दिया था। जॉर्ज सोरस ने 4,13,34,320 एंटी ब्रेक्सिट कैंपेन के लिए दिया था। इसके अलावा, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भारत सहित दुनिया भर में पत्रकार सहयोगियों के साथ एक अंतरराष्ट्रीय संगठन, इंटरनेशनल कमेटी ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) को भी फंड देता है। कुछ ICIJ के सदस्य भारतीय पत्रकार इंडियन एक्सप्रेस की रितु सरीन, श्यामलाल यादव और पी वैद्यनाथन अय्यर, आईएएनएस के पूर्व संपादक राकेश कलशियान, मुरली कृष्णन और युसूफ जमील हैं। ICIJ में DataLEADS के संस्थापक और प्रधान संपादक सैयद नज़ाकत भी हैं।

वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवियों के लिए मददगार

मीडिया को फंडिंग करने के अलावा, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवियों के लिए भी मददगार रहा है, जिन्होंने लगातार मौजूदा सरकार के खिलाफ बयानबाजी की है। अमर्त्य सेन, जॉर्ज सोरोस के साथ, एनजीओ नमती (ओएसएफ द्वारा वित्त पोषित) की सलाहकार परिषद का हिस्सा हैं जो भारत में 'पर्यावरण न्याय' के लिए काम करता है। अमर्त्य सेन ओएसएफ में सिर्फ एक नियमित वक्ता नहीं हैं, बल्कि जॉर्ज सोरोस ने सेना के साथ एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाया है। अमर्त्य सेन मौजूदा सरकार के प्रमुख ओलचकों में से एक हैं और नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करने का उनका एक लंबा इतिहास रहा है। एक और विवादास्पद नाम है हर्ष मंदर का जो हाल के दिनों में अपने एनजीओ की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। कांग्रेस के गांधी परिवार के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए जाने जाने वाले हर्ष मंदर ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़े रहे हैं। मंदर ने जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय अनुदान देने वाले नेटवर्क के सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य किया। हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों को भड़काने में उनकी भूमिका, विशेष रूप से दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर के आसपास की हिंसा, पिछले कुछ समय से जांच के दायरे में है। बाद में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर हिंसा भड़काने के आरोप में भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा की गिरफ्तारी की मांग की थी। सोरोस के योगेंद्र यादव से भी संबंध हैं। 2006 में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज में प्रोफेसर के रूप में यादव ने पहली बार भारत आए सोरोस के सामने स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी इन साउथ एशिया (एसडीएसए) अध्ययन प्रस्तुत किया था। 

सोरोस द्वारा प्रायोजित एनजीओ

बुद्धिजीवियों और मीडिया नेटवर्क के अलावा, जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन ने भारत में बड़ी संख्या में संगठनों को वित्त पोषित किया है। 2016 में ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन को भारत सरकार द्वारा निगरानी सूची में रखे जाने से उसे एक बड़ा झटका लगा। जिसके बाद ये साफ हो गया कि किसी भी संगठन को सीधे फंड नहीं दे सकती थी। परिणामस्वरूप, 2016 से OSF को भारत में FCRA पंजीकृत संगठनों को पैसा भेजने के लिए गृह मंत्रालय से पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है। 

वैश्विक मीडिया पर सोरोस का प्रभाव

जॉर्ज सोरोस का अमेरिकी मीडिया पर जबरदस्त प्रभाव है। मीडिया में लिबरल सोच की जांच के लिए 1987 में स्थापित एक अमेरिकी मीडिया वॉचडॉग मीडिया रिसर्च सेंटर (MRC) ने पाया कि 30 से अधिक प्रमुख समाचार संगठनों के जॉर्ज सोरोस से संबंध थे। इन संगठनों में वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, एसोसिएटेड प्रेस, एनबीसी और एबीसी शामिल हैं। उन्होंने नेशनल पब्लिक रेडियो (NPR) को आर्थिक रूप से भी सपोर्ट किया है। इन सबके अलावा, जॉर्ज सोरोस के हफ़िंगटन पोस्ट से भी संबंध हैं। यह भी बताया गया है कि 2003 के बाद से, जॉर्ज सोरोस ने "पत्रकारिता स्कूलों, खोजी पत्रकारिता और यहां तक ​​कि उद्योग संगठन - समाचार के बुनियादी ढांचे सहित मीडिया संपत्तियों में $48 मिलियन से अधिक धन खर्च किया है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म को भी OSF से व्यापक फंड मिला। जॉर्ज सोरोस ने द नेशनल फेडरेशन ऑफ कम्युनिटी ब्रॉडकास्टर्स, द नेशनल एसोसिएशन ऑफ हिस्पैनिक जर्नलिस्ट्स और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स जैसे कई अन्य पत्रकारिता संघों को भी वित्त पोषित किया है।

भारत के खिलाफ जॉर्ज सोरोस की कार्रवाई

WEF में दिए गए अपने बहुप्रचारित भाषण में सोरोस ने अपने विचारों से दुनिया को अवगत कराया जब उन्होंने उभरते हुए राष्ट्रवाद को खुले समाज का सबसे बड़ा दुश्मन बताया। जॉर्ज सोरोस जिसने  भारत को हिंदू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ता हुआ बताया था। जॉर्ज सोरोस ने वर्ष 2020 ने मोदी सरकार को भारत के लिए खतरा बताया था। सोरोस ने अपने प्रभाव का उपयोग करके और भारत की सड़कों पर अराजकता पैदा करने की कोशिश करके अंतर्राष्ट्रीय प्रेस में भारत सरकार विरोधी आख्यान को प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।-अभिनय आकाश

 


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