अंंग्रेज चले गए, असम-मिजोरम सीमा विवाद छोड़ गए, क्या है शांति का फॉर्मूला?

Assam Mizoram
अभिनय आकाश । Aug 2 2021 6:09PM

असम मिजोरम पड़ोसी राज्य हैं और एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगाते रहते हैं। मिजोरम के 3 जिले आइजोल, कोलासिब, ममित और असम के 3 जिले का कछार,करीमगंज और है हेलाकांडी एक दूसरे से सटे हुए हैं। सीमा विवाद को खत्म करने के लिए 1995 के बाद से कई वार्ताएं हुई हैं लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ है।

1959 के साल में एक फिल्म आई थी- दीदी, इस फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था- "हमने सुना था एक है भारत सब मुल्कों से नेक है भारत। लेकिन जब नजदीक से देखा सोच समझ कर ठीक से देखा हमने नक्शे और ही पाए बदले हुए सब तौर ही पाए।" साहिर लुधियानवी ने जब ये लिखा था तो वो ऐसा दौर था जब हमारा देश आजाद होने के बाद एक आकार ले रहा था लेकिन विभाजन के दर्द से कराह भी रहा था। तमाम चुभते हुए सवालों के बावजूद गीत की तरह ही हमारा 'मुल्क' उम्मीद का दामन थामें कुछ कर्मयोगियों के प्रयासों का नतीजा है। हम भारत के लोग राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर संविधान को आत्मार्पित करते हैं। लेकिन वही राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली शपथ तब एक सवाल करती है। जब एक देश के दो राज्यों के बीच सीमा-विवाद को लेकर हिंसा होती है। 

562 रियासतों के टुकड़े में बंटे देश को एक राष्ट्र के बांधने वाले सरदार पटेल के हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों हुआ? जिस देश हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक, अटक से कटक, त्रिपुरा से सोमनाथ की बातें करते हुए राष्ट्रीय एकता दिवस मनाते हैं और बात पूर्वोत्तर की होती है। देश की उत्तर पूर्वी बेल्ट एक ऐसी जगह है जहां हम घूमने जाने का प्लान बनाते हैं। कसैली सच्चाई ये है कि इन घूमने जाने के प्लान के अलावा हमारी बातों में, हमारी जिक्रों में, फिक्रों में शामिल नहीं रहता। उसी पूर्वोत्तर की शांति में 26 जून की शाम अचानक एक कोलाहल पैदा होता है। जब खबर आती है कि असम और मिजोरम के मध्य सीमा विवाद उग्र होकर खूनी खेल में बदल गया था। इस खूनी खेल में दोनों राज्यों की पुलिस और नागरिकों के बीच लाठी-डंडे चले और गोलीबारी भी हुई। दोनों राज्यों ने एक दूसरे के अधिकारियों पर मुकदमा भी दर्ज कर लिया। गृह मंत्री का दखल हुआ दोनों राज्यों में सुलह कराने के प्रयास और अब मामला नियंत्रण में दिखता प्रतीत हो रहा है। पूरी कहानी और जड़ तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। समझेंगे कि कैसे ये झगड़ा सिर्फ जमीन का नहीं है। सांस्कृतिक पहचान और रोजगार का है। वो कौन लोग इस विवाद को हवा दे रहे हैं। लेकिन पूरे मामले को समझने के लिए पहले इतिहास को जानना जरूरी है। 

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क्या है जमीन विवाद का इतिहास

अंतरराष्ट्रीय सीमा विवाद में ऐसा कई बार होता है जब दो देशों की सेना आपस में भिड़ जाए। विवाद बढ़ता है तो गोलियां भी चल जाती है। लेकिन अपने ही देश के दो राज्यों की पुलिस या जनता सीमा विवाद में एक-दूसरे की जान लेने को आतुर हो जाए। असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद 146 वर्ष पुराना है। वर्ष 1875 में अंग्रेजों ने मिजोरम-असम के काचर के बीच सीमा का निर्धारण किया था। तब मिजोरम को लुशाई हिल्स कहा जाता था। मिजोरम चाहता है कि असम के साथ उसकी सीमा का निर्धारण 1875 के मुताबिक हो क्योंकि इसमें मिजोरम को ज्यादा इलाका मिलता है। जबकि 1933 में ब्रिटेन ने काचर और मिजो हिल्स के बीच औपचारिक तौर पर सीमा खींच दी। इस प्रक्रिया में मिजा ट्राइब्स को शामिल नहीं किया गया। असम सरकार 1933 के इसी समझौते को मानने की बात करती है। 1875 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न अधिनियम के तहत असम के कुछ जिलों को जनजातियों की संस्कृति और पहचान को सुरक्षित करने के लिए संरक्षित घोषित किया था। इस अधिनियम के तहत पहाड़ी इलाकों को मैदानी इलाकों से अलग कर दिया गया। साथ ही इन जगहों पर जाने के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की जारी किए जाने लगे। नए राज्यों के गठन के बाद भी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में यह परमिट प्रणाली लागू रही। ये इनर लाइन परमिट सिस्टम एकतरफा है। इनर लाइन परमिट के बिना असम को कोई भी व्यक्ति इन चार राज्यों में बिना परमिट के नहीं जा सकता है। लेकिन, इन राज्यों के लोगों को असम में प्रवेश करने के लिए इस परमिट की जरूरत नहीं होती है।

दोनों राज्यों के बीच क्या है सीमा विवाद?

असम मिजोरम पड़ोसी राज्य हैं और एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगाते रहते हैं। मिजोरम के 3 जिले आइजोल, कोलासिब, ममित और असम के 3 जिले का कछार,करीमगंज और है हेलाकांडी एक दूसरे से सटे हुए हैं।

असम से सटीं हैं कई सीमाएं

स्वतंत्रता के बाद भी दोनों राज्यों के बीच का सीमा विवाद नहीं सुलझ सका है। 1986 में स्टेट ऑफ मिजोरम एक्ट को पास किया गया और 1987 में मिजोरम एक अलग राज्य बन गया। 1950 में असम को भारत के राज्य का दर्जा मिला। इसके बाद 1960 और 1970 में इसकी सीमाओं से सटे कई नए राज्य बने। इसकी वजह से असम का बॉर्डर कम होता गया। मिजोरम के लोगों का मानना है कि असम और मिजोरम की सरकारों के बीच हुए समझौते के तहत बॉर्डर में यथास्थिति को नो मैन्स लैंड में बरकरार रखा जाना चाहिए। 

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समझाने की कितनी कोशिश हो पाई?

सीमा विवाद को खत्म करने के लिए 1995 के बाद से कई वार्ताएं हुई हैं लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ है। मिजोरम ने हाल ही में एक सीमा आयोग का गठन भी किया। बीते दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने भी पूर्वोत्तर जाकर बैठक की।

क्या है असल जड़?

मिजोरम के एक अधिकारी ने कहा कि मिजोरम जहां बंगाल पूर्वी सीमांत नियम 1873 के तहत 1875 में अधिसूचित 509 वर्ग मील के आरक्षित वन क्षेत्र के अंदरूनी हिस्से को सीमा मानता है। वही असम 1933 में तय संविधान नक्शे को मानता है। उन्होंने कहा कि 1933 के नक्शे की सीमा थोपी गई थी क्योंकि परिसीमन के समय मिजोरम की राय नहीं दी गई थी और दोनों राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से सीमाओं का सत्यापन नहीं हुआ था। 

पहले भी कई बार हो चुकी हैं हिंसक झड़प

फरवरी 2018 में मिजोरम जिरलाई पार्टी ने जंगल में लकड़ी का एक रेस्‍ट हाउस बना लिया था जिसका प्रयोग किसान करते थे। उस समय असम पुलिस और फॉरेस्‍ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने इसे नष्‍ट कर दिया था। उनका कहना था कि रेस्‍ट हाउस असम की सीमा में बना हुआ था। मिजोरम जिरलाई पार्टी के सदस्‍यों ने उस वक्त असम के नागरिकों के साथ हिंसा की थी। साथ ही मिजोरम से इस घटना को कवर करने गए जर्नलिस्‍ट्स को भी धक्‍का दे दिया था। मिजोरम सिविल सोसायटी की तरफ से ये दावा तक किया गया था कि जंगल में असम की तरफ के गैर-कानूनी बांग्‍लादेशी नागरिक मौजूद थे। अक्टूबर 2020 में असम के कछार जिले के लायलपुर इलाके में असम और मिजोरम के दो समूहों के बीच झड़प के दौरान कई लोग घायल हो गए थे। असम-मिजोरम बॉर्डर के साथ लैलापुर इलाके के पास उपद्रवियों ने कई घरों में आग लगा दी थी। वहीं फरवरी 2021 में मिजोरम से राज्य सभा सदस्य के वनलालवेना मिजोरम-असम बॉर्डर पर स्थित करीमगंज जिले (असम) में आयोजित एक कल्चरल मीट कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे थे, तभी असम-मिजोरम सीमा पर स्थित सिक्योरिटी गार्ड्स द्वारा उन्हें रोक लिया गया और उन्हें असम की सीमा में घुसने नहीं दिया। ये कार्यक्रम थानग्राम स्वदेशी जन आंदोलन द्वारा आयोजित किया जा रहा था। जिसमें असम बॉर्डर पर रहने वाले असम की 'जो' जनजाति के लोग इकठ्ठा होने वाले थे।

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ताजा मामला क्या है?

26 जुलाई को असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद के अचानक खूनी संघर्ष में तब्दील हो जाने से राज्य की “संवैधानिक सीमा” की सुरक्षा कर रहे असम पुलिस के कम से कम पांच जवानों की मौत हो गई और एक पुलिस अधीक्षक समेत 60 अन्य घायल हो गए। आजाद भारत में दो राज्यों की सीमा पर ऐसी खूनी घटना पहले कभी नहीं हुई और न ही ऐसे तनाव के हालात बने। दो राज्यों के बीच 26 जुलाई को शुरू हुआ सीमा विवाद दुश्मनी की हद तक पहुंच गया। पहले असम ने वीडियो जारी कर मिजोरम पुलिस को इस हिंसा का जिम्मेदार ठहराया। फिर मिजोरम ने दूसरे वीडियो के सहारे खुद को सही बताने की कोशिश की। जिसमें असम पुलिस के जवानों को लाइट मशीन गन के साथ तैनात होने की बात कही जा रही है। इस वीडियो के जरिये मिजोरम सरकार ने उस एफआईआर को भी सही साबित करने की कोशिश की जिसमें उसने दावा किया था कि दो सौ हथियार बंद जवानों ने मिजोरम पुलिस के कैंप पर जबरदस्ती कब्जे की कोशिश की। असम और मिजोरम दोनों ओर से अपने-अपने दावे किए गए लेकिन बड़ी और अहम बात ये है कि आखिर ये विवाद सुलझेगा कैसे? पांच पुलिसवालों की मौत के बाद असम की ओर लोगों ने कई जिलों पर ब्लॉकेड कर दिया। जिससे मिजोरम के सामने संकट खड़ा हो गया। इस खूनी खेल में दोनों राज्यों की पुलिस और नागरिकों के बीच लाठी-डंडे चले और गोलीबारी भी हुई। दोनों राज्यों ने एक दूसरे के अधिकारियों पर मुकदमा भी दर्ज कर लिया। गृह मंत्री का दखल हुआ दोनों राज्यों में सुलह कराने के प्रयास और अब मामला नियंत्रण में दिखता प्रतीत हो रहा है। 

असम का किन राज्यों से है सीमा विवाद?

असम का नागालैंड के साथ सबसे भयंकर सीमा विवाद रहा है। 1963 में जब नागालैंड को असम के नगा हिल्स जिले से अलग किया गया तब से विवाद कायम है। वही मेघालय से असम का विवाद 1972 में अलग राज्य बनने से शुरू हुआ। अरुणाचल प्रदेश से असम का विवाद 1990 के दशक में शुरू हुआ। यह मामला 1989 से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

देश में कहां-कहां है सीमा विवाद, सरकार ने संसद में दी जानकारी

केंद्र सरकार ने बताया कि हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, लद्दाख संघ राज्य क्षेत्र-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक और असम-अरुणाचल प्रदेश, असम-नागालैंड, असम-मेघालय और असम-मिज़ोरम के बीच सीमाओं के निर्धारण के चलते सीमा विवाद पैदा हुए हैं और उनके बीच क्षेत्र संबंधी दावे और प्रति दावे किए गए हैं।

केंद्र का क्या रुख रहा है?

इस पर सरकार ने अपना नजरिया बना रखा है। इंटर स्टेट विवाद केवल संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से सुलझे और विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान परस्पर समझ की भावना से हो। इसमें केंद्र सरकार केवल सर्विस प्रोवाइडर की भूमिका में रहे।

क्या कुछ और राज्यों में भी विवाद है?

असम का मेघालय के साथ भी सीमा विवाद है। बीते दिनों असम के सीएम ने विवाद पर शिलांग में अपने मेघालय समकक्ष कोनराड संगमा के साथ चर्चा की। मेघालय सचिवालय की योजना भवन में हुई चर्चा के दौरान मेघालय सरकार ने राज्य के 12 विवाद के स्थानों का दावा किया। इस बीच असम सरकार ने भी दस्तावेजों के साथ ही सही ठहराते हुए कहा कि स्थान कसम के हैं। तय हुआ है कि दोनों सीएम इन स्थलों का दौरा करेंगे।

पीएम मोदी से पूर्वोत्तर सांसदों की मुलाकात

असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर पैदा हुए तनाव के मद्देनजर पूर्वोत्तर के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और आरोप लगाया कि कांग्रेस इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति कर रही है। मुलाकात के बाद पत्रकारों से चर्चा में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने आरोप लगाया कि विदेशी ताकतें उकसाने वाले बयानों और सामग्रियों को तोड़मरोड़ कर बढ़ावा दे रही हैं और ऐसा करके क्षेत्र में आग को हवा देने का काम रही हैं। रिजिजू ने बताया कि प्रधानमंत्री ने सांसदों से कहा कि पूर्वोत्तर उनके दिल के बेहद करीब है, इसलिए क्षेत्र के प्रति उनका प्यार भी स्वाभाविक है। रिजिजू के मुताबिक प्रधानमंत्री ने कहा कि वह इस क्षेत्र को राजनीति के चश्मे से नहीं देखते। इस मुलाकात के दौरान सांसदों के प्रतिनिधमंडल ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा और कहा कि जो भी तत्व असम-मिजोरम मामले को भारत में अव्यवस्था फैलाने के एक माध्यम के रूप में देख रहे हैं, उन्हें वह कहना चाहते हैं कि उनकी शरारत काम नहीं करने वाली है।

बहरहाल, जहां तक सवाल सीमा संबंधी विवाद का है तो देश के नियम-कानून और संविधान के मुताबिक तमाम मंच उपलब्ध हैं, जहां दोनों सरकारें अपना पक्ष लेकर जा सकती हैं। मगर अपने-अपने दावों को दूसरे पक्ष से इस तरह मनवाने और इन कोशिशों में सशस्त्र पुलिस बलों को शामिल करने की इजाजत देश का संविधान नहीं देता है। विवाद को उपयुक्त ढंग से हल करने की प्रक्रिया तो अविलंब शुरू होनी ही चाहिए और झड़प की निष्पक्ष जांच भी होनी चाहिए और ये पता लगाया जाना चाहिए कि हिंसा का असल दोषी कौन है? जिन लोगों ने अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया है। उनके खिलाफ समुचित कार्रवाई होनी चाहिए। इससे यह संदेश दिया जा सकेगा कि इस तरह की भूल स्वीकार योग्य नहीं है।  - अभिनय आकाश

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