विपक्षी दलों ने NCT संशोधन विधेयक को बताया संविधान के खिलाफ

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Mar 24, 2021

नयी दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल को शक्तियां प्रदान करने के प्रावधान वाले ‘‘राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021’’ का विपक्षी दलों ने राज्यसभा में बुधवार को कड़ा विरोध कियाऔर इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए पिछले दरवाजे से राजधानी की सत्ता पर शासन करने का माध्यम बताया। सदन में वित्त विधेयक, 2021 पर चर्चा पूरी होने के बाद विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह यह असंवैधानिक है। उन्होंने इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। खड़गे ने कहा कि इस विधेयक के जरिए सरकार चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को छीनकर उपराज्यपाल को देना चाहती हैं। इतना ही नहीं सरकार उपराज्यपाल को ही सरकार बनाना चाहती है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसे में चुने हुए प्रतिनिधियों की क्या आवश्यकता है। इस विधेयक को उन्होंने संविधान के खिलाफ बताया और कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन में कोई भी बदलाव संविधान संशोधन के जरिए ही किया जा सकता है लेकिन सरकार इसे एक सामान्य संशोधन विधेयक के रुप में लेकर आई है। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार पिछले दरवाजे से छद्म रूप से दिल्ली सरकार चलाने के लिए सभी कार्यकारी शक्तियां अपने पास रखना चाहती है। लोकतंत्र के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ पंक्तियां उद्घृत करते हुए उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। इसके बाद, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी सदस्य आसन के समीप आ गए और उन्होंने सरकार तथा विधेयक के खिलाफ नारे लगाए। सदस्यों के भारी विरोध के कारण सदन की कार्यवाही दो बार स्थगित भी हुई।

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आप के संजय सिंह ने विधेयक को गैर संवैधानिक और अलोकतांत्रिक करार दिया और इसका विरोध करते हुए कहा कि भाजपा दो बार दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गयी थी। उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही है। केंद्र सरकार उस सरकार की हत्या करना चाहती है, इसलिए यह विधेयक लेकर लायी है। उन्होंने कहा कि विधेयक का विरोध कर वह दिल्ली के दो करोड़ लोगों के लिए ‘‘न्याय’’ मांग रहे हैं। कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने इस विधेयक को राज्यसभा में लाया गया अब तक का ‘‘सबसे बड़ा असंवैधानिक विधेयक’’ बताया और कहा कि यह आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस के बारे में नहीं है बल्कि यह संघवाद के मौलिक अधिकार के बारे में हैं। उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक के बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार ‘‘पपेट’’ (कठपुतली) हो जाएगी। विधेयक की खामियां गिनाते हुए सिंघवी ने कहा कि यह विधेयक दिल्ली सरकार को अधिकारहीन बना देगा। साथ ही उन्होंने दावा किसी कि इसे जब भी अदालत में चुनौती दी जाएगी, इसे संवैधानिक कसौटी पर निरस्त कर दिया जाएग। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि वह और उनकी पार्टी के सांसद बंगाल के चुनाव में व्यस्त थे लेकिन संविधान की रक्षा करने के लिए वह सदन में उपस्थित हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व में केंद्र सरकार सभी संस्थाओं को समाप्त कर रही है। भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने विधेयक का बचाव किया और विपक्ष के आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह संविधान की भावना के अनुरूप है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार कोई निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल को नहीं बताती थी और ‘‘छुपकर’’ निर्णय लेकर वह संघीय व्यवस्था का अपमान करती रही है। इसलिए सरकार यह विधेयक लेकर आई है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की भावना को लागू करने के लिए विधेयक में संशोधन लाए गए हैं।

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