राजनीति का पप्पू, जिसका सिंहासन मनमोहन और मोदी भी नहीं हिला सके

By अभिनय आकाश | Mar 06, 2020

नवल, ताजा या कहे नवीन, शब्द अलग-अलग लेकिन मतलब सिर्फ एक यानि कि नया। वैसे तो 20 साल एक लंबा वक्त होता है और राजनीति में एंटी इनकंबेंसी भी एक चीज होती है। वैसे भी लोग एक ही चेहरा लगातार देखते हुए बोर हो जाते हैं। लेकिन एक चेहरा जो हमेशा ओडिशा के लोगों के लिए नया और भरोसेमंद माना जाता रहा है वो भी पिछले बीस सालों से जिसके तिलिस्म को भेदने के लिए मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक प्रयास करते रहे कि वो पप्पू का तिलिस्म तोड़ दें। तिलिस्म जो 20 साल से कायम है। पप्पू शब्द का इस्तेमाल नवीन पटनायक के लिए कर रहा हूं। नवीन पटनायक जिनके घर का नाम पप्पू है। जो बीजू जनता दल के सर्वे-सर्वा हैं और पिछले 20 वर्षों से लगातार ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं और ओडिशा की राजनीति की धुरी भी हैं। ओडिशा की सियासत के बादशाह कहे जाने वाले नवीन पटनायक ने मुख्यमंत्री के तौर पर बीस साल का सफर पूरा कर लिया है। बीजू जनता दल के मुखिया और सीएम के तौर पर नवीन पटनायक ने ऐसी सियासी बिसात बिछाई है कि उनके मजबूत दुर्ग को न तो कोई भेद सके और न ही उनकी सत्ता के सिंहासन को हिला सके। मार्च 2000 में नवीन पटनायक ने ओडिशा की सत्ता की कमान संभाली थी और 20 साल के बाद भी उनकी बादशाहत बरकरार है।

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साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी पूरे देश में दौड़ी, लेकिन मोदी की सुनामी से एक राज्य बिल्कुल ही अछूता रह गया। एक ऐसा राज्य भी है जिसकी सियासत उसके राजनेता की तरह ही शांत, सौम्य और संक्षिप्त हुआ करती है। ऐसी शख्सियत के स्वामी हैं नवीन पटनायक जो ओडिशा की जनता की नस-नस से वाकिफ हैं। 20 सालों से ओडिशा का नेत़त्व कर रहे हैं। जनता की नजर में नरेंद्र मोदी देश की मजबूती हैं तो ओडिशा में पटनायक प्रदेश के विकास के लिए जरूरी हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा की पैठ बढ़ाने की कवायद के मध्य नवीन बाबू के नाम से लोकप्रिय नवीन पटनायक खड़े हो गए। पटनायक के चुनावी तरकश से निकले तीर ने भाजपा के ओडिशा जीतने के अरमान, हौसले और उम्मीदों को छलनी कर दिया।

नवीन पटनायक के बारे में कहा जाता है कि जब वो ओडिशा विधानसभा का चुनाव लड़ने आए तो उन्हें उड़िया बोलनी नहीं आती थी, क्योंकि तब तक उन्होंने लगभग अपनी पूरी उम्र ओडिशा के बाहर बिताई थी। लेकिन इसका उन्हें फ़ायदा हुआ। उस समय ओडिशा में राजनीतिक वर्ग इतना बदनाम हो चुका था कि लोगों को नवीन का उड़िया न बोल पाना अच्छा लग गया। लोगों ने सोचा कि इसमें और दूसरे राजनेताओं में फ़र्क है और ये ही हमें बचाएंगे। इसलिए उन्होंने नवीन को मौका देने का फ़ैसला किया।

नवीन पटनायक अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में आए। 1997 में हुए उप-चुनाव में वह जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। 1997 में जनता दल टूट गया और नवीन पटनायक ने खुद की पार्टी 'बीजू जनता दल' बना ली। 

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नवीन साल 2000 में जीते थे 'इस्टैबलिशमेंट' यानी सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध करते हुए। इसके बाद सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद 2004 में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए नवीन पटनायक का जादू लोगों को सिर चढ़कर बोला और वो एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। साल 2007 में बीजेपी से उनके रिश्तों में खटास पैदा हुई और गठबंधन टूट गया। नवीन पटनायक ने 2009 में नवीन पटनायक ने अकेले चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की और 21 मई 2009 को मुख्यमंत्री के तौर पर नवीन पटनायक ने सत्ता की हैट्रिक लगाई। साल 2019 में वो ख़ुद 'इस्टैबलिश्मेंट' बन गए। ये सभी मानते हैं कि ओडिशा में कोई औद्योगीकरण नहीं है। आप ये भी नहीं कह सकते कि ओडिशा एक अमीर राज्य बन गया है। इसके अलावा ओडिशा के सियासी युद्ध पर गौर करें तो इस बार पटनायक के सामने दोहरी चुनौती थी। एक तरफ शक्तिशाली और देश विजय का सपना संजोये भाजपा का प्रखर और राष्ट्रवादी कैंपेन व विश्व विख्यात ब्रांड मोदी थे तो दूसरी तरफ प्रदेश की सियासत में 19 सालों से लगातार काबिज होने की वजह से सत्ता विरोधी लहर का सामना करने जैसी बातें। लेकिन नवीन पटनायक ने जहां भाजपा के ओडिशा विजय के सपनों को साकार नहीं होने दिया वहीं एंटी इंकम्बेंसी जैसे मिथकों को भी विराम दिया। 

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स्कूल के दिनों में पप्पू नाम से पुकारे जाने वाले नवीन बाबू ने सीएम का सफर तो 20 साल पहले शुरू किया था लेकिन जब धारा खिलाफ में बह रही हो, हवाओं में विरोध के बारूद सुलग रहे हों और बैजयंत पांडा जैसे अपनों के विभीषण बन जाने से खतरा दिन-रात मंडरा रहा हो तब भी खुद पर भरोसा कैसे किसी पप्पू को एक राज्य का भाग्य नियंत्रक बना देता है, नवीन पटनायक इसकी शानदार मिसाल हैं। 

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नवीन के पिता से जुड़ी भी एक दिलचस्प कहानी है जिसके बारे में भी आपको बताते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बीजू पटनायक न होते तो आज जम्‍मू-कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान का कब्‍जा होता। दरअसल, उड़ीसा (अब ओडिशा) के दो बार मुख्‍यमंत्री रहे बिजयानंद पटनायक उर्फ बीजू पटनायक को दूसरे विश्‍वयुद्ध और 1948 में कश्‍मीर युद्ध के दौरान बतौर पायलट किए गए साहसी कार्यों के लिए भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि अगर बीजू पटनायक भारतीय सेना की टुकड़ी को श्रीनगर में नहीं उतारते तो आज जम्‍मू-कश्‍मीर पाकिस्‍तान के कब्‍जे में होता। बतौर कारोबारी बीजू पटनायक ने कलिंगा एयरलाइंस की शुरुआत की थी। बंटवारे के बाद 1947 में जब पाकिस्तानी हमलावरों ने कश्मीर पर हमला किया, तो बीजू पटनायक पायलट थे। वह डकोटा डीसी-3 विमान उड़ाते थे। उन्होंने 27 अक्टूबर को अपने विमान से श्रीनगर की हवाई पट्टी के लिए उड़ान भरी। उनके साथ सिख रेजिमेंट के 17 जवानों की टुकड़ी थी। उन्‍होंने विमान को हवाई पट्टी के बहुत नजदीक उड़ाया ताकि देख सकें कि वहां दुश्‍मनों का कब्‍जा तो नहीं है। उन्‍होंने रास्ता देखकर विमान को उतारा। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को वहां से खदेड़ दिया। जब बीजू पटनायक का देहांत हुआ तो उनके ताबूत पर तीन देशों के झंडे लिपटे हुए थे - भारत, रूस और इंडोनेशिया।

सोनिया के फ्रॉक की तारीफ 

मशहूर पत्रकार तवलीन सिंह ने अपनी बहुचर्चित किताब 'दरबार' में साल 1975 की दिल्ली की राजनीतिक गतिविधियों का बहुत सजीव चित्रण किया है। वो लिखती हैं कि आपातकाल की घोषणा के कुछ दिनों बाद मार्तंड सिंह द्वारा खाने के निमंत्रण पर हम दोनों (तवलीन सिंह-नवीन पटनायक) अपने ड्रिंक्स लेकर उनकी बैठक के कोने में बैठे हुए थे। अचानक हमने देखा कि सामने के दरवाजे से राजीव गांधी और सोनिया गांधी अंदर आ रहे हैं। राजीव ने सफेद रंग का कलफ लगा कुर्ता पायजामा पहन रखा था, जबकि सोनिया ने एक सफेद ड्रेस पहन रखी थी जो उनके टखनों तक आ रही थी। नवीन ने कहा कि वो उनके पास नहीं जाएंगे, क्योंकि शायद उन्हें मुझसे मिलना अटपटा लगे, क्योंकि कुछ दिन पहले ही राजीव की मां इंदिरा गांधी ने मेरे पिता बीजू पटनायक को जेल में डाला था। तभी मार्तंड की भाभी नीना हमारे पास आकर बोलीं कि सोनिया गांधी पूछ रही हैं कि कोने में नवीन पटनायक तो नहीं खड़े हैं? हम दोनों ने सोचा कि अब चूंकि हमें पहचान ही लिया गया है, तो क्यों न उनके पास चल कर उन्हें हेलो कर ही दिया जाए। जब हम उनके पास पहुंचे तो नवीन ने सोनिया की सफेद फ्रॉक की तारीफ करते हुए कहा कि क्या इसे आपने वेलेन्टिनो से खरीदा है? इसपर सोनिया ने कहा, 'नहीं, इसे खान मार्केट में मेरे दर्जी ने सिला है।

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नवीन के बारे में मशहूर है कि वो शायद भारत के सबसे ज्यादा चुप रहने वाले राजनेता हैं जिन्हें शायद ही किसी ने ऊँची ज़ुबान में बात करते सुना है। कभी कभी तो लगता है कि वो राजनेता हैं ही नहीं. लेकिन सच ये है कि भारत में उनसे बड़े राजनीतिज्ञ कम लोग हैं। वो न सिर्फ़ राजनीतिज्ञ हैं बल्कि निर्मम राजनीतिज्ञ हैं। इस हद तक कि पहुंचे हुए राजनीतिज्ञ भी उनका मुक़ाबला नहीं कर सकते। नवीन पटनायक मौजूदा समय में कांग्रेस और बीजेपी में से किसी भी पार्टी के गठबंधन के साथ खड़े नहीं हैं। हालांकि कई मौकों पर केंद्र सरकार के साथ नजर आते हैं। सफेद-कुर्ता पायजामा पहनने वाले नवीन पटनायक ने केंद्रीय राजनीति से हमेशा अपने आपको दूर रखा। दिल्ली आते हैं और वापस चले जाते हैं और किसी को खबर भी नहीं लगती है। पटनायक राजनीति में नवीन के बाद कौन नेतृत्व करेगा, इसे लेकर संशय है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उनका भतीजा राज पटनायक उत्तराधिकारी के रूप में राजनीति में आ सकता है। उनके बड़े भाई व राज के पिता प्रेम पटनायक भी राजनीति में उतर सकते हैं। हालांकि खुद नवीन ने इसे लेकर कोई संकेत अब तक नहीं दिए हैं।- अभिनय आकाश

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