Karnataka में कांग्रेस ने साल भर में ऐसी कौन-सी गलतियां कर दीं जिसके चलते जनता इतनी नाराज है

By नीरज कुमार दुबे | Apr 24, 2024

लगभग एक साल पहले कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा की 224 में से 136 सीटों पर जीत हासिल करके प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनाई थी। लेकिन एक साल के भीतर ही कर्नाटक के शहरी और ग्रामीण इलाकों में जिस तरह कांग्रेस के प्रति नाराजगी दिखने लगी है वह दर्शा रही है कि चुनावों में किये गये वादे पूरे नहीं किये जायें तो जनता सबक सिखाने को तैयार रहती है। खास बात यह है कि कर्नाटक में दी गयी गारंटियों को पूरा करने के दावे के आधार पर कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के लिए जारी अपने घोषणापत्र में तमाम तरह की गारंटियां दी हैं। लेकिन जब आप कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटियों के बारे में जनता से राय लेंगे तो पाएंगे कि दिल्ली में जो दावे किये जा रहे हैं वह खोखले हैं।


हमने कर्नाटक के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का कहना था कि बिजली के बिल में कटौती की जगह बिजली की कटौती होने लगी है। शहरी क्षेत्रों में व्यापारियों ने कहा कि कमर्शियल यूज के लिए बिजली की दरों में बार-बार इजाफा किया जा रहा है जिससे हम पर भार पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार हमसे पैसा लेकर दूसरों को सब्सिडी दे रही है जोकि गलत है। गांवों में किसानों और दुग्ध उत्पादकों ने कहा कि हमसे किये गये वादे पूरे नहीं किये गये। शहरी क्षेत्रों में गैर-लग्जरी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा का उपयोग करने वाली महिलाओं ने कहा कि यह देश का चुनाव है इसलिए हम प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से जब हमने मुफ्त यात्रा सुविधा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक तो बसें कम हैं और दूसरा जो बसें हैं वह खटारा जैसी हैं और प्रदूषण फैलाती हैं इसलिए ऐसी सुविधा का हमें कोई फायदा नहीं।

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हमने गांवों और शहरों में एक चीज समान रूप से पाई कि लोग यह कहते दिखे कि हमें मुफ्त की सौगात नहीं चाहिए। लोगों ने कहा कि हम कमा कर खाना चाहते हैं और सभी चीजों का बिल भी अपनी जेब से भरना चाहते हैं। लोगों ने कहा कि हम सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहते इसलिए सरकार को मुफ्त रेवड़ियां बांटने की बजाय रोजगार के अवसर मुहैया कराने पर जोर देना चाहिए। हमने पाया कि कर्नाटक में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास इस चुनाव में बड़े मुद्दे हैं। हमने पाया कि भाजपा से बेहतर बूथ प्रबंधन किसी अन्य पार्टी के पास नहीं है। हमने पाया कि महिला शक्ति का समर्थन सर्वाधिक भाजपा के साथ है। हमने पाया कि युवा शक्ति का समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। हमने पाया कि पहली बार मतदान करने वाले से लेकर बच्चे तक की जुबान पर मोदी का नाम है।


2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 43 प्रतिशत मत हासिल किये थे। पिछले लोकसभा चुनावों में कर्नाटक उन राज्यों में शुमार था जहां भाजपा ने 51 प्रतिशत से अधिक मत हासिल किये थे। इस बार के चुनावों में भी वही स्थिति देखने को मिल सकती है। पिछले चुनावों में भाजपा ने राज्य की 28 में से 25 सीटों पर विजय हासिल की थी, ऐसा लगता है कि इस बार भी वही स्थिति रह सकती है या भाजपा और आगे भी जा सकती है। कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि का लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है और जिस तरह हाल ही में बेंगलुरु के एक कैफे में धमाका हो गया था उसको देखते हुए लोगों के मन में यह भावना प्रबल हुई है कि सुरक्षा हालात भाजपा के राज में ही बेहतर होते हैं।


कर्नाटक में विधानसभा चुनावों के समय साइडलाइन किये गये पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को भाजपा जिस तरह इस बार पूरा महत्व दे रही है उसका जातिगत असर होता भी दिख रहा है। भाजपा ने येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी सौंपी है। येदियुरप्पा का लिंगायत समुदाय पर बड़ा प्रभाव है जोकि राज्य में बड़ा सामाजिक वर्ग है। वहीं जनता दल सेक्युलर का प्रभाव वोक्कालिगा समुदाय के बीच काफी अच्छा माना जाता है। इस समय कर्नाटक में जो सामाजिक समीकरण हैं उसके मुताबिक लिंगायत और वोक्कालिगा की ताकत के साथ जब प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता जुड़ जायेगी तो इस गठबंधन का बेड़ा पार होना आसान हो जायेगा। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा राज्य में काफी सम्मानित नेता हैं। उन्होंने मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया है और लगातार साक्षात्कारों और बयानों के जरिये वह जिस तरह मोदी के लिए समर्थन मांग रहे हैं उसका भी बड़ा असर कर्नाटक की राजनीति में देखा जा रहा है। खुद पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा भी कह चुके हैं कि जनता दल सेक्युलर के साथ गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए ही नहीं है बल्कि यह आगे तक के लिए है।


कर्नाटक में हमने एक चीज और पाई कि भाजपा जहां इस चुनाव को पूरी एकजुटता के साथ लड़ रही है वहीं कांग्रेस बिखरी हुई नजर आ रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने की बजाय अपने-अपने खेमों के लोगों को जिताने के लिए ही प्रयास करते नजर आ रहे हैं। बताया जाता है कि यह सब घटनाक्रम कांग्रेस के कई विधायकों को अखर रहा है। वह पहले से ही इस बात से नाराज हैं कि उनके क्षेत्र में विकास के लिए फंड नहीं दिया जा रहा है। दरअसल ऐसा बताया जाता है कि मुफ्त रेवड़ियां बांटने के चक्कर में कर्नाटक सरकार का खजाना ही खाली हो चुका है और विकास के लिए पैसा नहीं बचा है। यहां सवाल यह भी उठता है कि जब खजाना रेवड़ियां लुटाने में खाली कर दिया गया लेकिन जनता कह रही है कि उसे कुछ मिला ही नहीं तो यह पैसा आखिर गया कहां?


-नीरज कुमार दुबे

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